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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 22, 2017

विकाश

Modern Garhwali Short Story by Jasvir 
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Presented on internet by Bhishma Kukreti 
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ये साल गर्मीयूं कि छुट्टीम गौं जयूंछायी,  मेरी मां ल बथै कि हमरा सैणाक पुगुंड फर सडक कटेणी च बल।   मि हैरान ह्वे ग्यों, यो पुगुंडु त हमरु सबसे बडु पुगडु छौ, येकै नाज से त हम पलेन्दा छा। 

ब्यखुनि दौं  मि धुमुणकु चलि ग्यों सारी जने,  द्य्याखा त सैर्या पुंगुडु कटै ग्या, द्वी JCB अर पाचं मजदूर लग्यां छा खैंण्डण फर। मि निराश ह्वे कि पुंगडक एक किनरा फर बैठि ग्यों,   तबरि म्यारू ध्यान पुगंडक ढीसक पोड फर गा, म्यारा आखोंन्द आंसु  ब्वगण लगगी, आखों अगने धुन्धकार ह्वे ग्या, मीथै अपणु बचपन दिखेण बैठ ग्या।

चैत का मैनेौं कि सट्टी (धान) बुतैम येयी पोडाक मुडि बैठिक कल्योरोटी खान्द छाया, मेरी मा मीखुणी बोदि छै, लखडु अर ग्वपला टीपीकि ल्यायु आग जगोंला अर च्या (चाय) बणौला। 

म्यारू दादा (बडु भै) मीसे काफी बडु छाै यांलै वो हैल लगांदु छौ, अर मी खुणि ब्वदा छा तु डाला फोड, सबसे बेकार काम छौ मीथै भारी गुस्सा औन्दु छो पर म्यारा पिताजी कि डैरकु  मि चुप रैजान्दु छौ ।   मी थै सिनक्वलि भूख लग जान्दी छै, मि बार-बार मेरी मां थैं सनकाणु रैन्द छौ, मेरि मां हैंसिकि बोदि छै,  मूडि गदन  छोयाम जा अर पाणि लियो फिर रोटि खौंला। 

मि खुश ह्वेकि हथ फरकु कूटू एक तरफ चुटैकि पाणी कु कैन हाथ म पकडि कि दौडुदु छौ छोंया कि तरफ, तवरि पिछनै भटी म्यारा पितजिकी खतरनाक अवाज सुणेन्दी छै, कन भूख ह्वे रे त्वे खुण,    अभित अद्दा पुगुंडु भि नि बुते, के कु कबलाट हुयूं त्वेफर ?  फिर मि रुवण्यां सि मुख बणा खै अपणी मां जनै देखुदु छौ अर तब मेरी मां बोदि छै, नन्नु लौडु च भूख लग गे होली वेथैं, आल्यावदि खै ल्यूंला बगत ह्वेतग्या। फिर हम सब्या येई पोडक मुडि बैठिक कल्योरोटी खाणकि तैयरी करदा छाया।  पिताजि तैल -मैल पुंगडक हल्यों थैं धै लगांन्दा छाया, आवा भारे रोटी खै जावा।

असूजक मैना मेरी मां ब्वलदि छै बुबा आज इसगोलकि   छुट्टी कारो आज सैणाक  पुगंडक सट्टी मन्डणी, सर्या सार मुके ग्या हमरु ही हमरु रै ग्या, लोखुल गोर छोडयलीं सारि । मि मेरी मां दगड एक शर्त धरुदु छों कि मिल तभ आण  जो तिल  कखडिकु रैलु अर भात बणाण अर एक कखडी कच्ची खाणा कु लिजाण नथर मिल नि आणु I  मेरी मां  तैय्यार ह्वे जान्द छै। सुबेर मेरी मां भात और रैला थे भान्डाउन्द धैरि क अपणी पुरणी धोती का कत्तर चीरि कि एक फन्ची बणा कि मेरि भुल्ली का मुण्डम धरदि छै और हथ फर पाणी कु कैन लेकि  भुल्ली अगने भटै अर मां अर मी पिछनै भटे मोलकु ब्वर्या मुन्डम धैरीक रस्तालग जान्दा छाया। 

पुंगडम पौंछिकि जब मि सट्यूंकु कुन्डकु देखुदु छौ, जो कि मी से भी उच्चु रैन्दु छौ त म्यारू सबि साहस खत्म ह्ने जान्दु छौ । सट्टी   मंडै, पराल फ्वलै, फिर बोरि भ्वारा अर धार सरै, थकि -थुकि खै फिर ये ही पोड मुडि बैठिक रैलु भात खयेन्दु छौ, मेरी मा आन्दी-जान्दी बेटी-ब्वारीयूं थै धै लगै- लगै कि बुलान्दि छै, आजावा हे कखडी खा जावा, .. अर तब  मिल-जुलिखै  हारा मठ्ठा दगडि हैरि कखडी कि फडकी खयेन्दि छै।

फागुणक  मैना स्कूल १० बजी लगदी छै, हमरा गौंक  लौडौंकि एक टीम छै, सुवेर-सुवेर पैलि हम एक धात मोल घोल्यान्दा छाया सैणाक पुंगडों, दगुडु बणेकि जान्दा अर आन्दा छा, रस्ता म एक गौं प्वडुदु छों, वख भटै अमरूद च्बरणा, खूब गालि खयेन्दी छै पर मजा भी खूब आन्दु छो।

 मि इन्नि बचपन का सपना देखुणु रौं तबरि गाड का पलिछाल मडगट भटि म्यारू सि दद्दा आंद दिख्या, ... मि हैरान ह्वे ग्यों दद्दा थैं म्वर्यांत कै साल ह्वेगीं पर इबरी यख ..कनखै ?      दद्दा नजदीक ऐैग्या, दद्दा कु मुख गुस्साल लाल हुययूं छौ, अर अन्दिचोट दद्दा JCB वला मजदूर फर पिलची ग्या।     कनु रै हराम का बच्चा . . .किलै उजाड रे तुमुल यो पैरु ? ....तुम थैं पता मिल अर मेरी सैणिल मूडि गाड भटै सर्यां छी ये पैरा खुणि ये ढुन्गा, सर्या भीड्ड उजाडयाल? . . मजदूर ब्वनु, हे ब्वाडा सडक बनणीच यख, ... उनभित बन्जर ही छो स्यू प्वडीयूं, किलै छौ गुस्सा हूणा ?  यां का पैसा मिलणी तुम थैं। 

अरे बुबा कतग पैसा जि देला तुम ? कतग खैरि खंयीच मेरी यीं पुगंडी बार, अपडि शैणिकु बुलाक, गुलाबन्द अर कन्दुडुकि मुर्खी बिकै कि मिल या पुगुंडि मोल ल्या, तीन दिन का बासा फर पैदल भूखू- निर्भुखु  पौडि गौंमि येकि रजेस्ट्री कराणा खुणि, मेरी खैरिक क्या कीमत दे सकदौ तुम ? ....पर निर्भे छव्वारा केखुण खैन्डणा छो तुम यीं सडक थै ? 

अरै ब्वाडा विकास आणुच बुना ..गढवालम यीं सडकाक रस्ता, मजदूर बोनु । 

पर बुबा कतग बडु च वो विकास जै खुण इतग बड़ी सडक चैन्द ? 

 अरे ब्वाडा बहुत बडुच यत कुछ भि नीच वे खुण त सैर्या गढ्वाल खैन्डेणू च ।, 

सचें ब्वनु छै तू? 

हां ब्वाड़ा। 

तबरी दद्दा  कि नजर मीं फर पोडिग्या, ... कनु रै निर्भग्याओ किलै छोडियीं तुमल पुगंडि बन्जी ? ...... मि डैर ग्यों, क्या बोलु, फिरभी हिम्मत कैरिक मिल ब्वाल ... कैल कन खेति - पाति ब्वे - बाप अब दाना ह्वेगीं। 

दद्दा कु गुस्सा अब सातों असमान फर चैडिगे, .... कनु तुम थैं जैर अयूंच करदा ? 

डरदा- डरदा मिल ब्वाल ....दद्दा हम द्विया भाई शहर रन्दौ नौकरी फर।, 

पर ब्वारि त ह्वेली तुम्हरी धारम ?, दद्दाल  पूछ 

मि-   न - न वो भि हम दगड ही रन्दन ।

 पर किलै ? दद्दा हैरान ह्वेकि

मि-  नौनौ थैं पडाना खुणि ..

दद्दा  गुस्साम -  पर यख किलै नि पढाया ? .... तुमल भित यखि पाढा। 

मि- दद्दा यखकि पडै मा और वख कि पडै मा भौत फर्क च । 

दद्दा हैरानी से -  क्या फर्क च रै ? 

मि-  दद्दा यख पैडिकत हम जन ही बणला, पर वख पाडला त भौत बड़ा आदिम बणला। 

दद्दा - बड़ा आदिम ? कतग बड़ा रै? 

मि-   भौत बड़ा दद्दा,  इतग बडा कि फिर वो मूडि ब्वे-बाप, नाता-रिस्ता, बोलि-भाषा, तीज-त्योहार कैथै नि देखि सकदा, बस विकास थै की देखिदीं।

दद्दा -  बिकास ? ......को .... जो यीं सडका रस्ता आणुचं ....वी ?  

मि- हां दद्दा ।     
  
दद्दा क मुख फर निराश छा ग्या, ठिक च बाबू.... बोलिकि,  फर फरकि, एक नजर उजड्रयां पैराक तरफ ढ्याख  फिर पुगंड जनै ढ्याख.... अर  फिर स्यां-स्यां मडगट जनै जाण लग गीं। मि रुण बैठग्यों, जोर से धै लगैं, ....दद्दा .... मी थै भि लीजा अफु दगडि, पर दद्दाल  फरकि खै भि  नि ढ्याखु, अचानक मेरी तन्द्रा टु्टी, मिल द्याख कि मित पुगंडक किनरा फर बैठ्यूं छौं अर मजदूर काम कना छा। दद्दा थैं म्वरयां त तीस साल ह्वे गीं पर शोर अभि भी पुगंडियूं फरै च । दद्दा थै सायद बिकास समझ नि आयी, पर मेरित गेड बन्दी च, कि विकास आलु त यूं सडक्यूं कै रस्ता आण ।


                                 जसवीर

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