उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Thursday, June 22, 2017

भगत रैदास (लोक कथा)

Compiled and Edited by Mahesha Nand 
-

रैदास भगत जल्मि छा तेरा अर चौदा सौ कS ओरा-धोरा। छा यीं भारत भुम्मि कs सगंढ संत। वूंकि ब्वे कु नौ कलसा देबि अर बुबा जी कु नौ छौ- संतोक दास। ददि जी लखपति देबि त् दादा जी कालूराम। वूंकु ब्यौ ह्वा लोनादेबि जी दग्ड़ि। नौनु ह्वा विजयदास।
रैदास जी छा छाळा सरेला मनिख। वु डंगडफान(झूठा दिखावा) नि मन्दा छा। सकळा जिकुड़ा बटि ज्वा धांण(काम) ह्वेगि त् वs परमेसुरौ खुंण सिळSए (समर्पित)जांदि छै। जुत्ता सिल्दा छा इन, जन ब्वलेंद वु क्वी भजन गांणा हून। जुत्ता सिल्द-सिल्द वु परमेसुर थैं सैंदिस्ट द्येखि दींदा छा। वु मुंथा थैं अढ़ांदा छा--- पूजा कैकि क्य हूंण ? सरेलम कटग्यार भ्वर्यूं च। पैलि वे थैं खंण्येकि आ। परमेसुर अंण्थ नी, तुम्मरै घटपिंडम्(अन्तरात्मा) च। जु भला मनिख वूंकि भलि बांणि सुंण्दा, वी वूंकS च्याला बंणि जांदा छा।
एक दिन वु बाठा छोड़ जुत्ता सिन्ना छा कि वूं थैं गंगाराम जी जात्रा जांद दिख्ये ग्येनि। गंगाराम जी कुम्भ नहेंणु जांणा छा। वून मुंड नवै कि पंडा जी थैं स्यवा लगा--- "सिमन्या पंडा जी! सिमन्या! अमंणि सिदंत ?"
"ओम नमो नारैंण! ओम नमो नारैंण! सिब-सिब, कै निरभग्यू मुक दिख्या सुबेर लेक।" पंडा जी हर्बि जाप कना अर हर्बि सौंफळि मना छा। वून रैदास जना सप्पा नि द्येखि। रैदास जीन् धै लगैनि-- "पंडा जी थै का घड़ेक, म्यरि जांण तुम गंगा नहेंणु जांणा छंवा। आंण त् मिल बि छौ गंगा माँ कs दरसन कनू पंण कामा ठ्यक्क(ढेर) लग्यांन्। ल्या म्यरि भेंट बि ल्ही जा।"
गंगाराम जी भरि फिंगर्ये(चिढ़ गये) ग्येनि। वून कड़ु गिच्चु कैकि बोलि-- "लोळु तीन कौड़्यू, गंगा माँन त्वे मलीच थैं दिंण्न रै दरसन?"
रैदास जीन् खलड़ौ(चमड़े का) एक पैंसा सि बंणा अर छिंछ्याट कै अटगिनि पंडा जी कS पैथर। जन्नि रैदास जी पंडा जी कs समंणि आंणा तन्नि पंडा जी फुंडै-फुंडै ठसगंणा। रैदास जीन् हत जोड़ी बोलि- "पंडा जी, म्यरि यीं भेंट थैं ल्ही जा। मै थैं ढीटु च, यीं भेंट थैं पखुंणू गंगा माँ लप्प हत पसारि द्यालि।"
गंगाराम जी झिझड़ै(घृणा होना) ग्येनि। वून छिछगारि रैदास-- "फुंड धुळ्यूं खत्यूं माचदनै। त् कतरि बकिबात ब्वन्नु च, ब्वालदि। इन जि गंगा माँ त्वे जनै भेंट अमंणाण(स्वीकार करना) बैठि गि त् ह्वे ग्या रै! खलड़ौ पैंसा पखंण रै मिला ! माँ कुम्प (कुपित) ह्वे जालि। हर-हर गंगे! हर-हर गंगे!"
रैदास जी बिंड्डि ल्वेपुड़ा बंणि ग्येनि त् गंगाराम जीन् बोलि--फूक कांडा लगौ, इन कैर कि तै पैंसा थैं म्यारा लाठा तौळ चिप्टै दि। मिन तै फर हत त् नि लगांण। रैदास जीन् उब्बरी वु पैंसा पंडा जी कs लाठा तौळ चिप्टै द्या। पंडा जी लाठु टेकी अटगंण बैठिनि। गंगछला ऐकि वनू लाठु फुंड चुटा अर नहेंण बैठिनि। न्हये-धुये कि जाप-थाप कन बैठिनि। पंडा जीन् छकंण्या चलंण निबै द्येनि पंण गंगा माँ नि पुळ्या(प्रसन्न)। वून छक्क धै लगै द्येनि कि गंगा माँ दरसन दि। कैकि गंगा माँ! गंगा माँ कु पांणि पंडा जी जना इन आंणु जन ब्वलेंद वूं थैं फुंड धिकांणु हो। पंडा जी ऐंस्ये ग्येनि। कपाळ पखड़ी गुंण्यांण(विचार करना) बैठिनि-- गंगा माँ कुम्प ह्वे ग्या। मि रैदासौ खलड़ौ पैंसा इक्ख तक ल्हौं। मि अपबेतर ह्वे ग्यौं। नहेंण प्वाड़लु।
गंगाराम जीन् एक दां फेर झुल्ला निख्वळिनि अर नहे ग्येनि। गंगा माँ कु जाप कैरि। धै लगैनि-- "गंगा माँ! मे थैं दरसन दि। मि ओद घाली अयूं छौं।" बिंड्डि अबेर तकै वु माँ थैं फुळस्यांणा रैनि पंण गंगा माँ त् अलोप हुयीं छै। पाछ गंगाराम जीन अपड़ु लाठु उठै द्या। रैदासा पैंसा थैं वून लाठु ठकठ्ये कि फुंड चुलै द्या। पैंसा फुंड चुलै कि ब्लदा--"माँ, मिन रैदासौ पैंसा फुंड चुलै यालि। अब त् द्या दरसन।" न बै, गंगा मां त् खिबळांणि छै। निरSस्ये कि पंडा जी ड्यरौ खुंण पैटि ग्येनि। जन्नि वून ड्यारौ बाठु पखड़ी तन्नि आंखौं उंद रात पोड़ि ग्या। बाठ्वी नि दिख्या। जिकुड़ा उंत हिदरा पोड़ि ग्येनि। गिच्चा बटि अचंणचक छुटि ग्या-- "गंगा माँ मि कांणु ह्वे ग्यौं, मे थैं सांणु कैर!" जन्नि पंडा जी गंगा माँ जना फरकिनि, तन्नि अछीकि कु सांणा ह्वे ग्येनि। हत जोड़ी पंडा जी गंगा माँ कि आरति कन बैठिनि। बगछट्ट ह्वेकि वूंन ड्यरा जना मुक कैरि। द निरभगि जोगा! आंखा फेर कांणा ह्वे ग्येनि। पंडा जी पित्ये ग्येनि। वून कळ्यूर ह्वेकि बोलि--"गंगा माँ, यांक्वी औं मि त्यारा दरसन कनू। क्य पा मिल इतुनु बाठु ल्हत्येड़ि ? बिनसिरि बटि नीना पेट छौं। त्यारा नौ कु बर्त धर्यूं च म्यारु। इन कुगSता नि कैर ब्वे!" पंडा जी रूंण बैठि ग्येनि। वून गंगा जना हेरि त आंखा सांणा ह्वे ग्येनि।
तबSरि पंडा जी थैं गंगा माँ कि भौंण सुंण्या-- "रैदासन् ज्व भेंट द्ये छै, वS कक्ख च गंगाराम ?" ख्वज्यांण पोड़ि पंडा जी थैं वु पैंसा। जन्नि वून वु पैंसा गंगा जना चुलांणै छौ, तन्नि गंगा माँन लप्प हत पसारि द्या। गंगा माँन् अपड़ा हतौ एक सूनौ कंगण निखोळि अर पंडा जीमा दींद बोलि-- "ये कंगण थैं रैदास थैं द्ये दे।" पंडा जी थैं गंगा माँ कु एक्कि हत दिखेंणु। अपड़ा सरेलै लगांणै छै पंण माँ सर्र अलोप ह्वे ग्या।
ड्यरा बाठा फर हिट्दि दां पंडा जी गंगजांणा-- वे जुत्ता बंणाण वळाथैं माँन् कंगण बि द्या अर वु खलड़ौ पैंसा बि सैंकि द्या। मि बर्सु बटि गंगा माँ कि स्यवा-भगति कनु छौं म्यरि सप्पा नि सूंणि। सूना कंगण थैं हरकै-फरकै कि दिखंणा अर खकळांणा(ईर्ष्या जनित पश्चाताप) --वु खत्यूं रैदास च ये कंगणा लैक। वेकि फुंड धुळीं सैंण पैरSरलि ये कंगण थै। यु कंगण त् बंमण्या हत फर बिराजलु। नS मि वे पैंडा सप्पा नि जंण्या। अमंणि जै निरभग्यू मुक द्येखि ह्वलु। सुबेर बटि असगुनि-असगुन हूंणा छन।
गंगाराम जी नि ग्येनि वीं पैंडा जना रैदास जी जुत्ता सिन्ना छा। पंडा जीन हैंकु बाठु पखड़ि द्या। धंध! रैदास जी ऐथर बैठी जुत्ता सिल्द दिख्ये ग्येनि। पंडा जी फर्र फरकिनि अर हैंकS पैंडा फर लगि ग्येनि रक्वड़ा-रकोड़। च्वाबै! तना बि रैदास जुत्ता सिल्द दिख्ये ग्येनि। ब्वन्न क्या च--- गंगाराम जी जैंयी पैंडा जांणा, तनैयी वूं रैदास जी दिखेंणा। जब बिंड्डि कै वु रींगि ग्येनि अर थकड़्च(थककर चूर होना) ह्वे ग्येनि त् निगड़द्यू(अन्तत:) झपड़क रैदासै कि काख फर बैठि ग्येनि। सुद्दि बैरां-दुसमना वून गंगा माँ कु दिंयूं कंगण रैदास जना चुलै कि बोलि--"ब्वाला धौं, त्वे फर गंगा माँ खिलपत ह्वे ग्या अर मि जु सकळु भगत छौं, मे थैं मुक नि लगा।"
रैदास जीन् पंडा जी अढ़ैनि ---
"जाति-जाति में जाति है, जे केतन के पात।
रैदास मनुस ना जुड़ सकै, जब तक जाति न जात।।
"पंडा जी, तुम मे थैं नि अमंणादा। मे द्येखी घिंण्ता करद्यां। जु मनिख, मनिख स्ये घिंण्यावु; वु परमेसुरौ खुलबितु(प्रिय) कनकै ह्वे सकद ? गंगा माँ खुंण तुम क्य छंया अर मि क्य छौं। वूं थैं वु मनिख भला लगदन जौंकS घटपिंडा सकळा हुंदन। तुम सदनि द्यू-धुपंणु करद्यां, नहेंदा-धुयेंदा छां। सगळ्या दिन बरड़ाणा रंद्या-- ओम नमो नारैंण, ओम नमो नारैंण। क्य हूंदु यान ? मि न त नहेंदु छौं, न धुयेंदु छौं। न मि द्यू-धुपंणु कर्दु, न जापु-थापु कर्दु पंण परमेसुर थैं दिखंणी लग्यूं रांदु। मि जिकुड़ा मैल थैं कुड़गुटेंण (सूख कर कठोर होना) नि द्यूंदु। म्यरि सकळि पूजा च तजबिज कै जुत्ता बंणाण। जु जुत्ता तुमSरा खुट्टों फर नि बिनाउन। तुम फर क्वी कांडु नि बैठ। परमेसुर यी च्हांद। तुमSरि कै धांण(कार्य) सरै कि क्वी हैंकु मनिख खिलपत ह्वे जांद त् बींगा कि तुम परमेसुरा नेड़ु जांणा छंया। सरेलै जात्रा जु तुमुन कैर्यालि त् तुम परमेसुर थैं सैंदिस्ट द्येखि सकद्यां। बुसिलि(नि:सार) जात्रा निखर्त(बेकार) च। गंगा माँ छाळि च अर छाळा सरेला मनिख्यूं थैं गंणखद(सम्मान देना) बोल्यादि गंगा मान हौर क्य बोलि ?"
"हां रैदास, वून बोलि बल वु त्यारा ड्यार आलि। तु भग्यान छै रैदास।" गंगाराम जी झम्म झिंवर्यां सि छा। वु गर्रा सरेल लेकि उठंणी लग्यां छा कि एक मनिख्यांण रौंका-धौंकि कै रैदास जी कि समंणि आ।" वीन हत जोड़ि बोलि--"भगत जी, मि गंगा माँ कि जात्रा फर जयूं छौ। नहेंदि दां म्यारा हतौ कंगण गंगा जी मा हर्चि ग्या। क्वी उयार बथा।"
रैदास जीन् अपड़ा काठा भांडा मा हत घालि, ज्यांमा वु खलड़ा भिजांदा छा। वुक्ख बटि एक कंगण गाडी वून वीं मिख्यांण थैं दिखांद बोलि--"तुमSरु कंगण इन्नि छौ ?"
"हां भगत जी, यी च म्यारु कंगण। जुबराज रंया। मिन ड्यार जैकि अमंणि भरि गाळि खांण छै।" वीं मनिख्यांणल रैदास जी थैं स्यवा लगा अर खिलपत ह्वेकि ड्यार सट्गि ग्या। गंगाराम जी अकळा-तकळि रै ग्येनि। वे दिन बटि गंगाराम जी रैदास जी कS च्याला बंणि ग्येनि।
गंगा माँ ब्यखुनि दां रैदास जी कS ड्यार ऐनि। रैदास जीन् वूंकि छक्क स्यवा कैरि।



Thanking You . 
Presented on online Jaspur Ka Kukreti

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments