Garhwali Satire on Anger (विभू जोशी)
सिरड़,गुसा ह्वा चाये चिंग्वात आ मनखि की इ अवस्था
खड्वळुन्द लिजाण जुगा मन गाणि छन । सिरड़ सबसै पैलि वे मनिख कु हि उज्याड़ खान्द जु हौरु फर सिरड़ेणु रैन्द । ब्वळणा कु मतलब यो चा कि सिरड़ सबसै पैलि अपड़ि मौ खान्द । पर यो भि सच चा कि मनिख जीवन का दगड़ा-दगिड़ि सिरड़ भि हिटणीं रैन्द, ज्यांका वजै से आदिम दिन-राति फिनकौं मा इनु जळणु रैन्द, जनु अमलटु लखुडु मसमस कैकि भितर हि भितर फुक्कैकि रंगुणु ह्वै जांद | बस सिरड्या मनिख का हाल भि उनि समिझि ल्याव । सिरड़/ गुसा कनभानिक भला मिठ्ठु स्वभौ थैं भि इनै-उनै लमडै-पिच्गैकि चिंग्वत्या स्वभौ कु बणै दींद | जु लणैं झगड़ा अर तकणातकड़ कु खिर्तु कराणु रैन्द । भिण्यां दां सिरड्या आदिम अपुणु गुस्सा थैं सै बताणा का बाना झणि कतगा मसल,आणा-भ्वीड़ा अर बत्था बिंगाणु रैंद । अपणि एक गल्ती थैं लुकाण छिपाणा का बाना गुसा/ चिंग्वात करण से त भलु यो च कि यीं सिरड़ से हि कुछ सीख ल्हिये जा । सिरड़,गुसा अर चिंग्वात अपणा ख्वाळ-द्वारम भि बिक्क फौळ्ये दींद अर आदिमा कि जिकुड़ि कटफोड़ चखुळि बणि वैका भितर उड्यार अर खगन-बिघन करिणि रैन्द । इन लगद कि ताना,हिणतैं, नड़ाक,नाकटिंवाळ, भुक्खरा अर अणतोस आदिम फर गुसा अर सिरड़ ल्यदिं । कबरि-कबरि त बरसु बटैकि नि छडयीं बिमरि, बुढ्यात,यकुंलास इनि हौरि भि कतगै बत्था गुस्सा अर सिरड़ बढाणि रंदिन, पर यो कै भला अर सयणा आदिमा का लच्छन नि छन । जै बिरति, जै सगोर अर जै आदतल मयळ्दु शरैळ, जिकुड़ि ठण्डकरै जा त इनि बिरति, आदत कु नास टक लगैकि करण चैन्द । य बात भि सच चा कि हम हौरु थैं अफु जन त नि बणै सकदा अर न अफु थैं मारि बांधिकि हौरि जनै ढळ्कै सकदंवा पर बरखा हूण फर बीज त खड्डै सकदंवा । दुसमनै हुणी माने अपणा भैर-भितरा की सुख-शान्ति लुच्छणी । दुसमनै त गुसा,सिरड़ अर चिंग्वात की भिभड्यट्या अगिन चा ।पैलि बटैकि कै का बारा मा अपणो मन ब्यग्ळ्याणु नि चैन्दु । पैलि वै थैं भलिकैकि हर्ती-बर्ती ल्हिण चैन्द । कै खुणै कुछ ब्वलण से पैलि कुछ स्वचुणु जरुरी हूंदा । जै गिच्चल तू ब्वळणा वै गिच्चला तुम ब्वळणु सौंगु चा । गुसा,सिरड़ अर चिंग्वात जु अजकाला का टैम मा हमरा खास स्वारा अर आबत-अस्नौ बण्यां छन अगर युं खुणै हम यकुळि नि छोड़ि सकदवा त कम से कम युं म्वरणा फर चुप त रै सकदवा । मन मारिक,जीब डमै कै से सिरड़,गुसा थैं तैळ्या मूंड धोळि त सकदवा । कम से कम वै थैं मैळ्या मूंड आणा मा कुछ टैम त लगलो अर तबरि तक हम अपणा भै-बन्दो दगड़ छज्जा मा बैठिकि खुट्टि त लबणंदि त कैर सकदवां । त गुसा,सिरड़ अर चिगैं खुण कारा --- बै-बै--टा-टा ||
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