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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 8, 2017

बौडरा सिपै

गढ़वाली कविता - महेंद्र ध्यानी 
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तू भारती सपूत मां कु लाडलु छैई।
धन त्वेखुणि रै भाई बौडरा का सिपैई।
कै तै च नौटों को रंग
कै जवनी की उमंग
क्वी नशा मा पेकि भंग
कै चढ्यूं बड़पन को रंग
क्वी बि कै भी रंग मा रंग्यूंsssss
पर-- त्वैतैं प्यारू तिरंगा बौडरा का सिपैई।
दुशमनौं की नाक काटी
बौडरा का खड्वळा भ्वरदी
हम सिंया खतड़ी क पुटग
तु स्हैणू कांठौं कि सरदी
त्यरा देश का बच्चा बूढा
निसफिकरी सेई जालाsss
सर्य रात्यूं बिजि रै जन्दि बौडरा का सिपैई।
बढदू रै तू अगाड़ी बौडरा का सिपैई
हम छां त्यारा पिछाड़ी बौडरा का सिपैई।
धर्म तेरो भारती छ सेवा तेरी आरती छ।
कर्म तेरो पूजा पाठ चंदन देश को माटु।
ये देश की लाज राखीsss
सिपै दिदा--'
देश त्यरा हथ्यूं मा बौडरा का सिपैई।
अपणू भि ख्याल राखी बौडरा का सिपैई।
हम बि त्यारा पिछाडी बौडरा का सिपैई।
ल्यप्ट राइट ल्यप्ट राइट। अटैनसन।
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सर्वधिकार @ महेंद्र ध्यानी 

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