सोल्यूशन - Garhwali Satire
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व्यंग्य -सुनील थपल्याल घंजीर
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भौत बरसु मा गौं मा छौं अयूं !
जख ह्वाला ,जनै ह्वाला गौंकरा ? तैल्या मैल्या ख्वाल माख्यूं कु भिमड़ांट,मनिख्यूं की गंद ना बास !
तबरि दलेदर दा दिखे ग्या अपंणि चिरपरिचित छवि मा ... बलदु फर हा हा ,दो दो , बो बो हंकरदा !
बल्दू की गौलिंद पुरंणि घांडीयूं की सुरीलि ध्वनि टंणमण टंणमण , अहा !
अर ठेठ गंवड़्या छाप दलेदर दा कु वी उत्साह , वी बीड़ि फर सोड़ मनो यूनिक इसटैल ।
आज बि वे का कांधम् हैल देखी जिकुड़ी कु उमाल नि थम्याई !
दादा खूब छौ ? मिन कालू चश्मा अपंणा खरमुंड फर अटकै क् दादा पूछी !
/ आं भै आं ... जु ह्वेला तब ? दलेदर दा अपंणि पुश्तैनी दलेदरी फर उतरि ग्या ( दादल पैछांण कनम कमचूसी कैर द्या )
/ दादा मि गुंदकी छौं ! तैल्या ख्वाल ! पटवरि जी कु नाती ।
/ ओ हो ! कन आँखि फुटीं मेरी ... हब्बै ! गंज्यलि बौ कु अधमंजरु नौनु छै तु !
/ हां हां ... दादा एकदम करैक्ट !
/ कनु भै ? कनु रै ?
जनै जनै डबका लगेंणि ह्वेली अचकल्यूं ? द्वारि मोरि त् तुमरी सर्या सरग सोरि ग्या ।
क्य मनिख ,क्य गोर , क्य गूंणि क्य बाग सब्बु खुणि खुल्यां छन तुमरी कूड़ी का फाटक । भितरखंड भैरखंड एक बरौबर हुयां छन तुमरा ... अब त् असमान ही छत च् तुमरी ।
कूड़ी ,सगोड़ी ,पाती फर तुमरा अवारा बुझ्यों की नजर लगीं च् ,खूप निजरकु कै मौल्यां छन कब्जा जमै क् । बाग त् होटल बंणै क् बैठ्यूं च् वख ठाठ से ! डैर लगद उनै तुमर ख्वाल जनै...
भुल्ला अपंणि कूड़ी जनै न जै हो !
/ पर भैजी मीथै खुद लगीं च अपंणि फटलीयूं की !
/ खुद थै खड्या दे वखि अपंणा पचास गजा पिलाटा कै कूंणा मा ! ई सोल्यूशन च् भुला अब त् ।
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Copyright @ सुनील थपल्याल घंजीर
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