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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, June 8, 2017

*. मेरु गढदेश. *

My Garhwal ' Poetry by Chandi Prasad Bangwal 
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यूं ऊंचि डाड्युं मां हिंवांलि कांठ्युं मां। 
देबतौं कु देश मेरु प्यारु गढदेश।। 

*स्वर्ग बटीक पैलि जख गंगा आई। 
शिवजी की जटा मां जख वा समाई। 
ब्रह्माजी गैन जख शिव जी का 
पास 
शिवजी  रंदांन तै ऊंचा.  कैलाश।।
   युं ऊंचि डाड्युं-------

पंच बदरि जख पंच केदार.। 
तीर्थू मां तीर्थ. जख हरि हरिद्वार। 
हे देवभूमि तेरा पंच प्रयाग। 
मनख्युं. का पाप ध्वैक कैदा उद्धार
युं ऊंचि डाड्युं - --------

देबी भगवति जख नौ छन बैणीं। 
दैत्यों को. नाश कन ह्वैन जु दैंणीं
अष्ट भैरब जख नौ नारसिंग। 
जै जै घंडियाल देब जै कैलापीर। 
युं ऊंचि डाड्युं - - - ---

पावन पवित्रजख द्यबतौं का धाम
गंगोत्री यमुनोत्री. स्वर्ग. समान। 
हे देवभूमि. त्वैकैं शत-शत प्र णाम
भारत कि धरती. मां तेरि छ शान। 
युं ऊंचि डाड्युं मां -------
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. . . . . . . . चण्डी प्रसाद. बंगवाल

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