उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Wednesday, August 5, 2015

प्रेम विषय पर स्वर सम्राट नेगी जी तै करारा , करकरो अर कैड़ो जबाब

  भीष्म कुकरेती

                          वैदिन पौड़ी मा भारतौ महान गितांग /गिताड़ नरेंद्र सिंह नेगी जीन श्री चन्द्र सिंह राही सम्मान [खौळ म्याळ] मा बोली बल गढ़वळि  मा जवान छ्वारा छोरी प्रेम साहित्य नि रचदन.
मीन 'खबर सारमा बांच अर मै तै कण्डाळी जन झीसचरमरि लगिन  कि नेगी जीन इन कनो बोलि दे मै सरीखा ज्वानु जवान प्रेम अनुभवी लिख्वार न अबि तलक प्रेम कथा नि ल्याख .
  मीन दिल पक्को कार बल आज ना भ्वाळ  इ सै एक दुनिया कि महान प्रेम कथा लिखण अर फिर मी नेगी जी तै बतौलु बल गढवळि मा म्यार सरीखा मै जवान छोरा बि प्रेम कथा लेखी सकुद च.

                    अब कथा लिखण ह्वाओ त पैल कथा प्लाट सुचण इ पड़द .  अपण अनुभव कर्याँ या दिख्यां विषय पर सबसे बढिया कथा लिखे सक्यांद. त मीन घड्याइ बल अपण प्रेम अनुभव पर इ कथा लिखे जाओ अर नेगी जी तै  दिखाए जाओ कि गढवळी मा  बढिया प्रेमसाहित्य ह्व़े सकुद च.

              मीन स्वाच बल अपण बाळापन म हुयुं प्रेम पर कथा लिखे जाव ! 

                  सुचद सुचद मी गाँ पौंछि ग्यों जब मि  दस सालौ  छौ . म्यार समणि मेरी हमउमर सूमा छे ज्वा मेरी जातिक नौनि    छे. हम द्वी एक हैंको गात  हिरणा छया कि हम दुयुंक  गात मा इथगा फरक  भेद किलै च . मीन पूछ बल ये सूमा तेरी छाती अर मेरी छात्युं मा इथगा फरक  च ना ?सूमा न बोली ए भीषम ! त्यार कमर तौळ अर म्यार कमर तौळ मा बि भौत फरक च नाचलो झुल्ला उतारला अरदिखला  बल कथगा फरक च ! हम दुयुंन अपण अपण झुला उतारीन अर जनि हम एक हैंकाक गात का फरक समजदा कि  दुयुं पर थपड कि चमकताळ पोड़ी गेन . हम द्वी बबरै गेवां कि हमन क्या गुनाह कार जु सूमा क ब्व़े न इन चमकताळ  लगाई. सूमाक   ब्व़े न ब्वाल,'तुम द्वी भै बैणि  छंवां अर भै बैणि इन एक हैंको तै नंगी नि दिखदन." हमर समज मा तैबारी नि आयो कि एक हैंको तै नंगी दिखण किलै   बुरु च  " बस तै दिन बिटेन भौत मैनो  तलक इच्छा ह्वेक  बि मि कै हैंकि नौनि क गात अर अपण गातु फरक नि खुजे  सौकु. अब गाँ मा हमारि जातिक ह्वावन या दुसर जातिक ह्वावन सौब त बैणि इ छ्या . त बाळपन मा नौनि-नौन क गात फरक जाणणोबान  ज्वा प्रेम कथा ह्व़े सकद उन कथा त मि  लेखि नि सकुद. 

                  अब मीन स्वाच बल 'टीन एज लवया पन्दरा सोळा सालम जु प्रेम होंद वै विषय  पर कथा लिखे जाओ त वा कथा अमर ह्वे जालि.

             अब मि अपण पन्दरा  सोळा मा हूण वळु प्रेम कथा कि खोज मा  जवानी  क देळि म पौन्छु. अहा क्या दिन छया वै बकती शरीर मा कुज्याण क्या बदलाव आणा छया अर  तैबारी नाड्यु मा अजीव सि मस्तानी खून कि दौड़ महसूस करदो छौ .एक अदिखीं ऊर्जा महसूस होंदी छे.  जनि क्वी नौनि दिख्याओ या नजीक ह्वाओ त नाक पर एक अपछ्याणि गंध आँदी छे. आँख कतड्याण बिसे जांद छया कि बस नौन्युतै दिखणु रौं.  हाथ खुट गात पर खजी लगदी छे अर  ज्यु बुल्यांदु छौ कि कै नौनि क सरैल पर अपण सरैल  रगोड़ी द्यूं. कै नौनि तै पकड़ी द्यूं .  कै बि जनानी देखिक मन मा एक अजीव तूफ़ानऔडळ बीड़ळ आंदो छौ. इन निपतौअजीब औडळ बीडळ अब मन मा चैक बि नि आन्दन. वा ऊर्जावा जनान्यु क न्याड़ ध्वार रौणै हवसजनान्यु सरैल  पर अपण सरैल  रगोंड़णो  तीब्र इच्छा क भाव अब इच्छा कौरिक बि नि आन्दन. वै दिन गोर मा समण्या क  गौं  कि  सदभामा अर मि गोर मा छया.वा जजमान छे अर मि बामण छौ.  वींक उमर बि मर्दुं सरैल रगोंड़नै ह्व़े गे छे.  बांजौ डाळ तौळ हम एक हैंकाक नशीली  गंध क  मजा लीणा छया. एक हैक तै बार दिखणा छ्या. नजीक से आण वळि जनानी गंध से म्यार सरा सरैलौ ल्वे तातो  हूणु छौ इन लगणु छौ म्यारो सरैल तपणु ह्वाऊ पण बेहन्त रौंस आणु छयो  कि क्वी जनानी बिलकुल बगल मा च. म्यार कंदुड़ गरम अर लाल हुयाँ  छ्या.  अर सदभामा कंदुड़ बि लाल छया. अर मै लगणु छौ कि वींन   बेहोशी दवा पे द्याई ह्वाओ. बेहोशी लक्षण दुयूं पर इकजनी छौ.  मेरि अर वींक  जिकुड़ी मा  उमाळ उठणि छे. ना वीं पता ना में पता कि इन बौळ  किलैबस हम अफिक जरा जरा कौरिक एक हैंकाक नजीक आंदो गेवां फिर हम बिलकुल एक हैंक तै चिपटिक/ चिपकिक  बैठी गेवां. अब तलक ना वीन कुछ ब्वाल ना मीन कुछ ब्वाल.  बस अब हम बिलकुल चिपकिक देर तलक बैठ्याँ रौनवान. मीन अपण हथ वींक हथ मा धार अर जोर से सदभामा क हथ मरोड़ण सि लग्युं  वा बि म्यार हथ जोर जोर से मरोड़ण मिस्याई. दुयूं पर एक अजाण अपछ्याणकोबौळ बेसुधी ऐ गे छे . समणि तौळ ब्यासचट्टी मा गंगा अर नयार कु संगम दिखयाणु  छौ  जख गंगा छ्लार से नयार तै उब ढकेळणि छे अर नयार फिर समू ह्वेक गंगा मा विलीन हुणि छे. अब मीन जरा अपण एक हथ वींक   हतहु  से  छुडाइ i अर उना   लिजाणो  उठाइ छौ कि जन बुल्यां बादळ फ़टी गे ह्वाओ धौं . मथि बिटेन सदभामा   क काकी क किडकताळि आयी। अर काकिन ब्वाल्," ये निर्भागण ! स्यू  तयार भतिज लगद ,   अर तेरी स्या सदभामा फूफू लगद. क्य ह्व़े ग्याई जु तुम एकी गांवक नि छंवां छा त  फूफू भतिज ना.    फूफू भतिजइन चिपटी क बैठदन क्या?. 
  अर वैदीन बिटेन नौनी देखिक बौळ जरूर उठदी छे उमाळ आँदी छे पण वा उमाळ दीदी -फूफू क फूकन सर भ्यू ऐ जांद छौ. 

                     फिर  जब मि कॉलेज पढ़दो छौ त एक सुमित्रा से प्रेम जन कुछ ह्व़े ग्याई. अर वीं तै बि सैत च प्रेम कि बीमारी हुण शुरू ह्वाई . साधु ना देखे ज़ात पांत अर प्रेम ना देखे ज़ात पांत वळि बात छे. सुमित्रा लोहारण  छे। मीन एक  लम्बू  प्रेम पत्र सुमित्रा कुण भेजी द्याई . जु कवि विहारी अर कालिदास ईं प्रेम चिट्ठी पढ़दा त दुयुन शर्माण छौ कि भीष्म त अलन्कारु मामला मा  ऊं दुयूं से अगनै निकळी ग्याई .
                प्रेम पत्र दे त सुमित्राक हथुं  मा  छौ पण उ प्रेम पत्र सुमित्राक ब्व़े क हथ पोड़ी ग्याई. मि अपण ख़ास रिश्तेदार क इख रौंदू छौ.  अर वैदीन सुबेर ल्याखन सुमित्रा क ब्व़ेबुबा अर द्वी तीन हौरी लोक उख ऐ गेन. अर सौब समजाई गेन कि भले इ सुमित्रा जातिक लोहारण च पण रिश्ता मा मेरी मौसी लगद. अर क्वी अपण मौसिक कुण इन चिट्ठी भेजदु क्याअर तब बिटेन देहरादून क्या इख मुंबई मा मै तै सौब छोर्युं  सूरत मा मौसी क सूरत इ दिखेण लगी गे. 
            मीन कथगा इ घड्याइ बचपन से लेकी ब्यौ हूण तलक म्यार प्रेम अधूरा इ राई किलैकि बैणि  फूफू अर मौसी से त श्रृंगारिक प्रेमह्वेई नि सकद. 
                     त जब में तै प्रेम कु अनुभव कु क्वी विषय नि मील त मीन प्रेम कथा लिखण स्थगित करि दे.  अर फिर महान गायक नरेंद्रसिंग नेगी जी कुणि स्या चिट्ठी भेजि दे .

 आदरणीय नरेंद्र सिंह नेगी जी ! 
समनैन   ! 
                       नेगी जी आप बि बड़ा मजाकिया छंवां  जु गढवळि लिख्वारो से प्रेम साहित्य की उम्मीद करणा छंवां .
 जी हम तै त दूधि क दगड पिलाए  जांद कि गाँ अर न्याड़ ध्वारक गाँ कि सौब बेटी मेरी बैणि हून्दन.  मि कें बैणि  क नख सिख वर्णन कौरी सकुद क्या में से त नि हूंद कि मि बैणि .क नख सिख वर्णन कौरूं .
श्रृंगारिक या सौन्दर्य पूर्ण प्रेम का वास्ता क्वी ना क्वी  नायिका चयांदी. अर जब क्वी नायका फूफू या मौसी ह्वेली त नेगी जी ! मि नाट्य शास्त्र क हिसाब से सम्भोग श्रृंगार युक्त  या विप्रलंभ श्रृंगारिक प्रेम कथा लेखी सकुद क्यामें से त बैणिफूफूमौसी से श्रृंगारिक प्रेम क बारा सुच्यांद इ नी च .
                     नेगी जी मीन सूण कि आप में से बि उम्मेद लगाणा छया कि मि गढवळि  मा क्वी प्रेम कथा लिखुल . त नेगी जी में से त उम्मीद छोड़ी दियां कि मि क्वी प्रेम कथा लिखुल. जब मीन बचपन से यो इ सूण कि गांवक सौब छोरी मौसीफूफू अर बैणि होन्दन त फिर इन मा वा मानसिकता पैदा ह्व़े इ नि सकद जै  मानसिकता मा श्रृंगारिक प्रेम पैदा ह्वाओ. त नेगी जी! आप म्यार भर्वस नि रैन  कि मि प्रेमकथा क बारा मा सोचि बि ल्यूं. प्रेम का मामला मा मेरी  गढवळि मानसिकता बांज च .
नराज नि हुंयाँ कि मीन आपक बुल्यूं नि मान.  

आपक  कणसु  दगड्या
भीष्म कुकरेती 

Copyright@ Bhishma Kukreti 21/8/2012 

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments