रचना -- रत्नाम्बर दत्त चंदोला (थापली , कफोळ स्यूं १९०१-१९७५)
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ऐंसू कि रूडी मा छन घाम खूब चमक्याँ I
बरखा जरा नि होई , छन इंद्र देवता रूठ्यां I I
पाणी बिना तिसाला , छन गोरु भैंसा भटक्यां I
होवन जाणो कि यूँका, ताळू म प्राण अटक्याँ ई
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ह्वेगे बरीक देखा, सूखिक पाणी धारा I
गदना गाड नाळा , सुखी गैन सारा II
काफळ कि डाळयूँ मा , बैठिक पंछी प्यारा I
गीतू न अब कंदूड़ s , भरदा नि छन हमारा II
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डाळो का फौंगा पाता , सुखी गैन डांडियों मा I
लमडी गेन भुइयां , लगुला का सगोड़ीयों मा II
भौंरा निरस 'र' सुख्या , फूलूं कि डाळियूँ मा I
रोना सि चहन विचारा, बैठिक फौंकियों माँ II
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रिक, बाग़, पंछी, बांदर, गाड, गधेरा, जंगळ I
हिसरा खुमानी आरू ; किनगोड़ा बेडु काफळ II
अच्काल ये सबी ही जड़-जीव फूल अर फल I
छन दांत भैर गादी पाणी बगैर केवल II
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ह्वेगे फसल इबारे की दां उजाड़ सारी I
सुप्पी गणेलि वख तs जख हून्दी कत्ति खारी II
रोगू न साँस लेणो मुस्किल हुयुं छ भारी I
नाना दुखू न ह्वेगे हां दुरदशा हमारि II
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केकु अकाळ रुपी विष, दैव घोलणा छन I
ईं देही मां किलै जी हां प्राण रोपणा छन II
देखा जथै उथै इनु लोग बाग बोलणा छन II
निज पापी प्राण सणि हां ! सब जीव कोषणा छन II
( गढ़वाली कवितावली, १९३२ से साभार )
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