मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन
सम्पादन : भीष्म कुकरेती
Edited by : Bhishm Kukreti
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages )
(इस लेखमाला का उद्देश्य मध्य हिमालयी कुमाउंनी, गढ़वाळी एवम नेपाली भाषाओँ के व्याकरण का शास्त्रीय पद्धति कृत अध्ययन नही है अपितु परदेश में बसे नेपालियों, कुमॉनियों व गढ़वालियों में अपनी भाषा के संरक्षण हेतु प्रेरित करना अधिक है. मैंने व्याकरण या व्याकरणीय शास्त्र का कक्षा बारहवीं तक को छोड़ कभी कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नही की ना ही मेरा यह विषय/क्षेत्र रहा है. अत: यदि मेरे अध्ययन में शास्त्रीय त्रुटी मिले तो मुझे सूचित कर दीजियेगा जिससे मै उन त्रुटियों को समुचित ढंग से सुधार कर लूँगा. वास्तव में मैंने इस लेखमाला को अंग्रेजी में शुरू किया था किन्तु फिर अधिसंख्य पाठकों की दृष्टि से मुझे हिंदी में ही इस लेखमाला को लिखने का निश्चय करना पड़ा . आशा है यह लघु कदम मेरे उद्देश्य पूर्ति हेतु एक पहल माना जायेगा. मध्य हिमालय की सभी भाषाएँ ध्वन्यात्म्क हैं और कम्प्यूटर में प्रत्येक भाषा की विशिष्ठ लिपि न होने से कहीं कहीं सही अक्षर लिखने की दिक्कत अवश्य आती है किन्तु हम कुमाउंनी , गढवालियों व नेपालियों को इस परेशानी को दूसरे ढंग से सुलझानी होगी ना की फोकट की विद्वतापूर्ण बात कर नई लिपि बनाने पर फोकटिया बहस करनी चाहिए. ---- भीष्म कुकरेती )
मध्य हिमालयी कुमाउंनी , गढ़वाली एवं नेपाली भाषा-व्याकरण का तुलनात्मक अध्ययन भाग -3
(Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages-Part-3 )
गढ़वाली संज्ञा विधान
१- व्यक्तिवाचक संज्ञायें:
अबोध बंधु बहुगुणा अनुसार गढ़वाली में व्यक्तिवाचक संज्ञाए प्राय: किसी आधार को लिए होती हैं . यथा
अ- कोई शिशु जिस मास , मौसम, परिस्थिति या समय में पैदा होता है तो उसका नाम उसी अनुसार रखा जाता है, जैसे -
महीने के अनुसार नाम :-चैतु, बैशाखू,जिठवा, असाडु, सौणा, भद्वा, कतिकु , फगुण्या
वार अनुसार ; स्वांरु , मंगल़ू , मगला नन्द , बुधि सिंह/बुद्धू आदि
मौसमअनुसार नाम : हिंवां
शारीर बनावट अनुसार नाम ; पुन्वां, डंफ़्वा, डंफा
शारीरिक आचरण/प्रकृति अनुसार - मुताडु, हगाड़ू, हुकमु , उजलू, काळया, भूर्या, भूरी गौड़ी , चौंरी (गाय का नाम ) आदि
यद्यपि प्राचीन समय में जातियों के नाम से जाती का पता चलता था जैसे रामप्रसाद, राम सिंह, या राम दास जाती सूचक नाम थे. अब नाम जाति सूचक कम पाए जाते हैं
नेपाल की श्रीमती शकुंतला देवी व भरत सिंग व कुमाऊं की श्रीमती हीरा देवी की बातचीत से पता चलता है कि नेपाल व कुमाऊं में भी नाम रखने का संस्कार नेपाल व कुमाऊं में गढ़वाली जैसे ही था
२- जातिवाचक संज्ञाएँ :
जिन शब्दों से एक प्रकार के प्रत्येक पदार्थ का बोध हो उसे जाती वाचक संज्ञां कहते हैं . गढ़वाल में अन्य बहुत से क्षेत्रों की तरह जातिवाचक संज्ञाएँ स्थान से सम्बन्धित भी है जैसे थापली से थपलियाळ , पोखरी से पोखरियाळ.
यथार्थवाची जाती वाचक संज्ञाएँ - जैसे भरोई, भुर्त्या , मुंडखा ९पेद के ताने को काटने के बाद जमीं के अन्दर वाला भाग ना ही तना है ना ही जड़ इसलिए उसे मुंडखा (मुंड खंडित ), कुंडको (धान की लवाई के बाद कुंडलित ढेर ), अपनाई (हुक्के की नली, याने पानी ल़े जाने वाली नली )
३- भाववाचक संज्ञायें :
जिन शब्दों से गुण दशा, या व्यापर का बोध होता है . आण, आली, ळी आदि प्रत्यय लगाने से इस प्रकार की संज्ञाएँ बन जाती है
भाववाचक संज्ञाएँ बनाने के उदाहरण
१- जातिवाचक संज्ञाएँ ------------------------------ -----भाववाचक संज्ञा
पंडित ------------------------------ ----------------------पन्डितै
दुस्मन ------------------------------ ---------------------दुस्मनै
छोकरा/छुकरा ------------------------------ ------------छोकर्यूळ/छुकरैळ
मौ ------------------------------ --------------------------मवार
भै ------------------------------ ---------------------------- भयात
हल्दु ------------------------------ --------------------------- हळद्याण
२- सर्वनाम ------------------------------ -------------------भाववाचक संज्ञा
अपणो-------------------------- -------------------------अपणऐस
३-विशेषण ------------------------------ ------------------भाववाचक संज्ञा
मूर्ख ------------------------------ -----------------------मूरखपन
लाटो ------------------------------ ---------------------- लटंग
काचो-------------------------- ---------------------------कच् याण
गिजगिजो----------------------- ------------------------गिग्जा ट
चकडैत ------------------------------ -------------------चकडैती
कडु /कड़ो ------------------------------ -----------------कडैस
निवतु------------------------- ---------------------------नि वाति
चचगार------------------------- -------------------------- चचगरि
४-क्रिया ------------------------------ --------------------भाववाचक संज्ञा
हिटणो------------------------- --------------------------हिटऐ
बर्जण------------------------- -------------------------बरजात
झुन्नो (झुरण/णो )----------------------------- -------झुराट
मरोड़नी------------------------ ------------------------मरोड़
५-अव्यय ------------------------------ ------------------भाववाचक
बराबर ------------------------------ -------------------बराबरी
ढीस ------------------------------ --------------------- ढिस्वाळ
उंदी /उन्दों ------------------------------ ---------------उंदार /उन्धार
अबोध बंधु लिखते हैं - बिखल़ाण , परज, कतोल़ा-कतोळ, पाण, गाणी, स्याणी, जकबक , टंटा,रौंका-धौंकी, खैरी , क ळकळी, रगुड़ात, फिरड़ाफिरड़ी, गब्दाट आदि भाववाचक शब्द गढवाली में विशेष हैं
गढ़वाली भाषा में लिंग विधान
हिंदी की भांति गढ़वाली में दो लिंग होते हैं . यद्यपि बहुगुणा व रजनी कुकरेती उभय लिंग की भी वकालात करते हैं.
१- एक ही वस्तु का समय, काल, वर्ग (प्यार में, गुस्से में आकार में ) लिंग परिवर्तन विधान
स्त्रीलिंग ------------------------------ --------------------पुल्लिंग
गौड़ी (लघु इ ) ------------------------------ ------------ गौडु /गौड़
आंखि-------------------------- ----------------------------- आंखु
ओंठडि (ड़+ लघु इ ) ------------------------------ --------ओंठ
भूज्जि------------------------ ------------------------------ भुजलू
बंठी ------------------------------ --------------------------बंठा
थकुलि ------------------------------ ---------------------थकुल
२- पुल्लिंग से स्त्रीलिंग परिवर्तन विधान
२अ- पुल्लिंग अकारांत, इकारांत, इकारांत के अ, ए, इ, को हटाकर 'आण' .'याण '', वाण', प्रत्यय लगाने से
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
द्यूर ------------------------------ --------------------द्यूराण
सेठ ------------------------------ ----------------------सेठ्याण
कजे/कजै ------------------------------ ----------------कज्याण
बामण ------------------------------ -------------------बमेंण /बमणि
जिठणु ------------------------------ ------------------जिठाण
२ब- अकारांत , आकारांत, उकारांत शब्द से अ, आ, उ हटाकर इ लगाने से पुल्लिंग स्त्रीलिंग में बदल जता है
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
देव ------------------------------ ---------------------देवी
दास--------------------------- ------------------------दासी
बोडा ------------------------------ --------------------- बोदी (ताई)
काका-------------------------- -------------------------काकी (चाची )
घ्वाडा------------------------ ---------------------------घो डि (यहाँ पर घ्वा भी घो में बदल जाती है )
नौनु ------------------------------ ---------------------नौनी (लडकी )
भादु ------------------------------ ----------------------भादी
भदलु/भद्यल-------------------- ----------------------भद्यलि (कढाई)
प्यारु ------------------------------ --------------------प्यारि (प्रिय )
कणसु (ऊम्र में छोटा )----------------------------- --कणसि (छोटी)
२स - पुल्लिंग शब्दों में अ, इ, ए, को बदलकर 'एण' लगाना
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
नाती ------------------------------ --------------------नतेण
मनखि (मनुष्य) ------------------------------ -------मनखेण
बद्दि (बादी ) ------------------------------ --------------बदेण
समदि (समधी )----------------------------- ----------समदेण/समदण २द
कुमै (कुमाउंनी जाती का पुरुष) -----------------------कुमैण /कुमैणि
२द - ओकारांत पुल्लिंगी के ओ को इ में परिवर्तन करने से
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
स्यंटुल़ो ------------------------------ -----------------स्यंटुळी (एक पक्षी)
नौनो ------------------------------ ---------------------नौनि (लड़की)
घोड़ो ------------------------------ ---------------------घोडि (घोड़ी)
स्याल़ो----------------------- ----------------------------स् याळी (लि) (साली)
छोरो ------------------------------ -----------------------छोरि
२इ- रकारांत में 'नी' लगाकर
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
ग्वेर (ग्वाला) ------------------------------ ------------ग्वेर्नी, ग्वेरण
सुनार ------------------------------ --------------------सुनारन, सुनारण
मास्टर ------------------------------ ------------------मास्टरनी, मास्टर्याण
डाक्टर ------------------------------ -------------------डाक्टरनी, डाकटर्याण, डाकटनी
३- किन्ही प्राणीवाचक संज्ञाओं में पुल्लिंग व स्त्रीलिंग पृथक पृथक होते हैं
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
बुबा /बाबा (पिता) ------------------------------ -------ब्व़े (मा )
ढडडू (बिल्ला ) ------------------------------ ----------बिरलि ( बिल्ली )
डंडवाक् , चुड़ोऊ------------------------ -------------- चुडैण (सर्पणी )
ब्योला (दुल्हा) ------------------------------ ---------ब्योली (दुल्हन )
गदनो (नद ) ------------------------------ -----------गाड (नदी )
दिदा (भाई ) ------------------------------ -----------बौ (भाभी)
ससुर ------------------------------ ----------------सास , सासु
४- वस्तुओं के परिमाण , आकार के अनुसार लिंग भेद भी होता है
पुल्लिंग---------------------- --------------------------स्त् रीलिंग
चौंरो(चत्वर ०----------------------------- ------चौंरी
दाण/ दाणो ------------------------------ ------------ दाणी (आमो दाण दिखादी. डंफु दाणी चखणो बि नि मील)
दाण ( bigger testicle )---------------------दाणि (smaller testicle )
नाक ------------------------------ -------------- नकुणि
मट्यंळ (बड़ा छलना ), चंल़ू (मध्यम आकार )----- छणि (छलनी)
५- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल पुल्लिंगी होते हैं
कोदू, झंग्वरु ,
ल़ूण , खौड़ , ब्वान
आम, बेडु, तिमलू
गिलास, चिमटा
६- कुछ अप्राणीवाचक संज्ञाए केवल स्त्रीलिंग होती है
मुंगरी , मसूर, उड़द , चंडी, चूड़ी, हंसुळी , मर्च, हळदि, दै, हैजा
७- कुछ संज्ञाए दोनों लिंगों में एक जैसे रहते है
काखड़, जुंवो, इस्कुल्या, घसेर
८- वो, यो, को, स्यो, जो आदि पुल्लिंग वा, या, क्वा, स्या, ज्व़ा आदि स्त्रीलिंग रूप धारण कर लेती हैं.
किन्तु विकारी रूपों में कभी कभी अंतर आ जाता है यथा - जैन पुल्लिंग जेंन (जै+ ञ + न) व वैन पुल्लिन्ग वींन स्त्रीलिंग में बदल जाता है.
गढ़वाली भाषा वचन विधान
संज्ञा या अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में उसके वाच्य पदार्थ की संख्या का ज्ञान होता है उसे वचन खते हैं .
हिंदी की भांति गढवाली में भी वचन दो प्रकार के होते हैं- एकवचन व बहुवचन
१- विभक्ति रहित उकारांत , इकारांत ओकारांत पुल्लिंग शब्दों के अन्त्य उ, इ 'ओ' को 'आ' कर देने से बहुवचन बन जाता है
एकवचन------------------------- -------बहुवचन
पुंगड़ो ------------------------------ -----पुंगड़ा
ड़ाल़ो------------------------ ------------ डाल़ा
कैंटो ------------------------------ -------कैंटा
हँसुळी ------------------------------ -----हँसुल़ा
बंसथ्वल़ू ------------------------------ --बंसथ्वल़ा
नथुली ------------------------------ ----नथुला
किन्तु कर्मकारक में एक वचन में उनका बहुवचन रूप ही रहता है जैसे 'तै ठन्गरा घौट)
२- जिन शब्दों के अंत में अ, आ, इ, उ और ओ हो तो उनके रूप प्राय: दोनों वचनों में एक से ही रहते हैं
भेळ , अदाण, परेक, खल्ला, माल़ा, डून्डी, मल्यौ, सलौ
२अ- कुछ अनाज बहुवचन की भांति प्रयोग होते हैं - चौंळ, ग्यूं
२ब- कुछ अनाज जैसे कोदू, मर्सू, झंग्वरु एक वचन जैसे प्रयोग होते हैं isi tarh कुछ dhatuyen एक वचन में प्रयोग hoti
३- इकारांत में इ को ए में बदलने से
एकवचन------------------------- -------बहुवचन
दरि--------------------------- -----------दरे , दरयों
ब्वारी ------------------------------ --ब्वारे (बहुएं ) ब्वारयों
कीडि (ड़ ) ------------------------------ --कीडे (ड़ ) , कीड़यों
फैडि (सीढ़ी) ------------------------------ फैडे (सीढियां ) फैड़यों
४- उपसर्ग लगाने से वचन परिवर्तन
एकवचन------------------------- -------बहुवचन
एक- माबत ------------------------------ ----द्वी माबत , तिन्नी माबत
५- आदर सूचक वाक्यों में संज्ञा बहुवचन होते हैं यथा मास्टर जी आणा छन
६- कौंक से कौंका परिवर्तन से एक वचन बहुबचन में बदल जाता है यथा सुदामा कौंक ड़्यार, सुदामा कौंका पुंगडा
७- औरु : औरु शब्द भी वहुवचन द्योतक है - भैजी औरु
८ 'करौं ' शब्द भी बहुवचन द्योतक है जैसे घ्याल़ू करौं .
संदर्भ् :
१- अबोध बंधु बहुगुणा , १९६० , गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा, गढ़वाल साहित्य मंडल , दिल्ली
२- बाल कृष्ण बाल , स्ट्रक्चर ऑफ़ नेपाली ग्रैमर , मदन पुरूस्कार, पुस्तकालय , नेपाल
३- भवानी दत्त उप्रेती , १९७६, कुमाउंनी भाषा अध्ययन, कुमाउंनी समिति, इलाहाबाद
४- रजनी कुकरेती, २०१०, गढ़वाली भाषा का व्याकरण, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून
५- कन्हयालाल डंड़रियाल , गढ़वाली शब्दकोश, २०११-२०१२ , शैलवाणी साप्ताहिक, कोटद्वार, में लम्बी लेखमाला
६- अरविन्द पुरोहित , बीना बेंजवाल , २००७, गढ़वाली -हिंदी शब्दकोश , विनसर प्रकाशन, देहरादून
७- श्री एम्'एस. मेहता (मेरा पहाड़ ) से बातचीत
८- श्रीमती हीरा देवी नयाल (पालूड़ी, बेलधार , अल्मोड़ा) , मुंबई से कुमाउंनी शब्दों के बारे में बातचीत
९- श्रीमती शकुंतला देवी , अछ्ब, पन्द्र-बीस क्षेत्र, , नेपाल, नेपाली भाषा सम्बन्धित पूछताछ
१० - भूपति ढकाल , १९८७ , नेपाली व्याकरण को संक्षिप्त दिग्दर्शन , रत्न पुस्तक , भण्डार, नेपाल
११- कृष्ण प्रसाद पराजुली , १९८४, राम्रो रचना , मीठो नेपाली, सहयोगी प्रेस, नेपाल
Comparative Study of Grammar of Kumauni, Garhwali and Nepali, Mid Himalayan Languages to be continued ........
. @ मध्य हिमालयी भाषा संरक्षण समिति
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