आप सबको !
वसंत पंचमी एवम सरस्वती पूजा कि वधाईयां !
इस दिन कभी गढ़वाल में मायके गईं बहुएं अपने ससुराल लौटती थीं और भाभ कि याद में नणद गाती थीं
हर हरियाळी जौ की खुद लगीं च बौ की
इस दिन रात खुलने से पहले ही लोहार अपने ठाकुरों के हर कमरे के सिंगाड़ के उपरी कोनों में जौ की हरियाली मय जड़ों सहित गाय के गोबर में जड़/चपका देते थे और यह सगुन वाली हरियाली सारे साल भर लगी रहती थीं
इस दिन स्वाळ पक्वड बनाये जाते हैं
दिन में सफ़ेद कपड़े को वसंती रंग में रंगा जाता है
बच्चों को पाटी भी इसी दिन दिखाई जाती है (शिक्षा का प्रथम पाठ )
ओम सर्स्वत्ये , महाभद्रे महामाया , वरप्रदाये , श्रीप्रदाये , पदम्नीलाय , पद्माक्ष, पद्मबवत, शिवअनुज, पुस्तकहस्ते , ज्ञानमुद्रा, रमे , कामरूपी, महाविद्या, महापातकनाशिन्य, महा आश्रय ,महाभाय, मोहोत्स्व, दिव्यांग, सुखदाता, महाकाली, महापाश, म्हाकुस , पिताय, विश्व्वाश, विष्णु , चंद्रिका, चंद्र्लेख्विभुसिता , सावित्री, सुर्सरा, देवी, दिव्याअलंकारविभुसिता, वाग्देवी, वसुदा, तीब्र, म्हाभ्द्रा , महाबल, भोग दात्री, भारत, भामा, गोविन्द, गोमती, जटिल, विन्ध्य्वास्नी , चण्डिका, वैसणव , ब्रम्हा, ब्रह्मज्ञानी , सौदामिनी, सुधामूर्ति, सुभ्द्र्रा, सुवासिनी, विन्य्दात्री, पद्मलोचन, विद्यारूप, विशाल, ब्र्ह्मजयी , महाफल, त्रयीमूर्ति , त्रिकालज्ञानी , त्रिगुण , शाश्त्र रूप, शुम्भासुर्प्रम्त्हीं , शुभ्दात्री, सर्वकाम, र्क्त्बीझ्न्त्री, चामुंडा, अम्बिका, मुन्द्काय्प्रहरनी , धुम्लोचनमर्दनी , सर्वदेव . सरासुर, सौम्य, कालरात्रि, कलाध्री , बग्देवी, वरारोह , वारिजस्नाये , चित्रगंधा, चित्र्माल्य्विभुसिता, काँटा, काम्प्रदय्नी, वन्दनियोग्य, रुप्सौभाग्य्दात्री, नीलाम्भुज, श्वत्न्याना, स्भुजाय, रक्तमध्याय, नील्ज्न्घाय, चतुरानन , निरंजन, चतुर्भुज, चतुर्वर्गफल्य्दात्री, हंसासन , सर्वमंगला, वेद , शारदा,
श्री सरस्वती से प्रार्थना च बल ------------------------------ ------------
हाँ जी हाँ ड़यारम सबि राजी ख़ुशी रैन
कज्याणी कु भिभडाट ममल़ाट , रोष , बड़बड़ाट दूर ई रैन
ड़यारम , लक्ष्मी की किरपा तुमारी कज्याण पर सद्य्नी राली त क्जयाणिको धम्ध्याट दूर इ रालो
तुमारी कलम टंगटंगी तड़तड़ी राओ
हां त् तुमारो श्रृंगारो रस वलु साहित्य मा प्रेम को रस्याण आओ, तुमारो साहित्य मा काम क्रीडा को बडो बढिया बिरतांत ह्वाओ , हंसी त प्रेम रस को हथियार च तुम ये हथियार तैं खूब प्रयोग कारो तुम तैं बिगळयाण/अलग हूण पर दुःख / पीड़ा, डा दिखाण मा माहरथ हासिल ह्वाओ , हाँ जब भी जरोर्त ह्वाओ त गुसा /रोस आपको साहित्य मा आई जाओ .
अर हाँ उलार /उछाह त श्रृंगार रस को गैणा-जर-जेवरात छन त तुम उलार/उछाह पैदा करण का उस्ताद ह्व़े जैन
वाह ! जब बि तुम डौर का साहित्य रचिल्या त भै बन्च्नेर तैं डौर जरुर लगी जाओ अर बंचनेरूं पुटकुंद डौरन च्याळ पोड़ी जैन
हाँ ! खौंल्य़ाण भाव क आप मास्टर ह्व़े जैन
आपका श्रृंगारिक साहित्य मा जब बि कड़कड़ो / स्तम्भ या स्टनिंग भाव ह्वाओ त बन्चनेर ख़ड़याख़डि रै जाओ , वैकी बाच, सांस रुकी जाओ, बन्च्नेर का आँख तड़तडा ह्व़े जैन , बन्च्नेर को हाल इन ह्व़े जैन जन मुर्दा पर पराण नि रौंद कड़कड़ो भाव आपका साहित्य मा ऐ जाओ
हे साहित्यकार ! जब बि तुम श्रृंगार मा रोमांच ल्हैल्या त आप का रच्यूं साहित्य मा उकताट क्या होलू, मरलू कि बचलु का भाव अफिक ऐ जैन जन कि क्वी पाख पख्यड़ से लमड़द दें कै डाल़ो फांको पर अटकी गे हो धौं !
जब बि आप दुःख या डौर दिखैल्या त अफिक इ लेख/कविता मा स्वर भेद/बाच भंग ऐ जैन
तुमारो साहित्य मा जब प्रेम मा दुःख या हर्ष से आपका चरित्र जब कमण बिस्याल त बन्चनेर बि जरुर कमण बिसे जावन
हाँ जब आपका चरित्र बेबरण हवाला त जरुर बन्चनेर बि बेबरण ह्व़े जैन
तुम तैं साहित्य से पाठ्कुं तैं कनो रुलाण इन आई जाओ कि पाठक रुणफत ह्व़े जाओ अर वुंको आख्युं मा अन्सदरी बौग ण बिसे जावन
आप इथगा ग्यानी ह्व़े जैन बल जब बि क्वी कै तैं बेहोश द्याखो त वै तैं तुमारो साहित्य मा बेहोसी (चित्त हूण ) याद ऐ जाओ
तुम इथगा विशेषग्य ह्व़े जैन बल जब बि क्वी शरम ल्याज कि छ्वीं गाडल त तुमारी छ्वी जरुर लगये जाउ
आपक साहित्य की हर पंगत मा क्या हवाल, कने हवाल को भाव जरुर राओ अर शंका बरणण मा तुम अग्वाड़ी का साहित्यकार माने जैन
आपका श्रृंगारी साहित्य मा मद/ रौळ की छलाबली इन राउ जन बुलया क्वी बौल़े जाओ
जब बि आप साहित्य मा दैन्य पन/कमजोरी/ गरीबी दिखैल्या त त्रास अफिक ऐ जाओ , रुण अफिक ऐ जाओ
आप फिकर , मोह, संतोष, हर्ष, ख़ुशी , घमंड, उकताट , ब्याधि, उन्माद, मरण , जलन , निंद बाळी, बिजण-बिज़ाळण , मती, औत्सुक्य जन भावुं का इथगा जणगरो ह्व़े जैन बल स दुनिया आपको साहित्य बांचणो मजबूर ह्व़े जैन
कळकल़ो (करूण रस ) रस मा तुम शोक, डौर, निर्वेद, शरम , संघर्स, मेन्न्त , अलगसीपन , देनी, दीनता, कमजोरी मोह माया, आवेग, ममलाट, कड़कड़ोपन (जड़ता ) विषाद (खैरी ), खौंल्य़ाण , व्याधि, उन्माद, उकताट, मरण , तरास, वितर्क, स्तम्भ, बाच भंग, कमण, वेपथु, बैबरणय (मुखो रंग बदल्याण ), अंसदरि जण भाव तैं ल़ाण मा आप सयाणा ह्व़े जैन
तुमारा व्यंग्य बाणो मा तलवार की मार ह्व़ाओ , बरछा की धार ह्वाव , फरसा क पैनोपन ह्वाव , बसूला क धळकाण ह्वाव , अग्यो ह्व़ाओ , मिर्च जन चिर्री रावो
चबोड़ चखन्यौ मा ठट्ठा को छळबल़ा इ ना कण्डाळी क डौ , जौ क झीसुं की किस्वाळी , हिसरुं काँडु दरद ह्वाऊ अर जैकी मजाक करील्या विका पूठुं पर डाम पोड़ी जैन तुमारा व्यंग्य चिमुल्ठुं पेथण बणि जैन , तुमारा व्यंग्य , चबोड़ रिंगाळऊँ तड़काण जन साबित ह्वेन तुमारो व्यंग्य से इन घौ ह्वेन , आपका साहित्य से दुर्जनुं फर दमळ पोडि जैन . आपकी चबोड़ से खीर मा लूण का ड़ळखा पोडि जैन अर घपरोळ ह्व़े जैन
हंसयौड़या , हंसदारी मा हौंस को तुडका होऊ, दुःख बिटेन हौंस को निरमाण होऊ , शंका से हौंस जनम ह्वाओ, , जळतमार को मसालों ह्वाओ , कखी कखी संघर्स श्रम, सरम बि ह्वाओ अळगस्युं पर चमताळ से हौंस आई जाओ. हाँ ह्न्स्यौड्या साहित्य मा चपलता , रगर्याट छ्क्छ्याट को ज्ख्या , निंद-बिराळी को भंगुल , सुल्फा जरुर ऐ जाओ जी. सुपिनों अर बिजण जन भावों से हौंस की रचना जरुर ह्व्वाओ या मेरी गाणि च
अहा ! आपका बीर रस वालो साहित्य मा जोश, उच्छाह , भड़पन (वीरता ) रोष, गुस्सा, रिंग, बौल्य़ाण, रौंस , खुसी, मार काट, ल्वे खतरी (खून खराबा ) रौळबौळ , रोमांच सबि कुछ ह्व्वाओ या मेरी गाणि च
जब बि तुम डौर भौ /भयानक रस को साहित्य रचीन त अफिक इ डौर, शंका, कमजोरी/दैन्यता, मोह ममता, चपलता /छ्क्छ्याट , आवेग, कड़कड़ो पन /जड़ता . मोरण, तरास, पसीना , रोमांच अंग भंग, बाच भंग , बेबरण का भाव आई जावन
हे साहित्यकारों आपको खौंल्यांण/आश्चर्य वलो साहित्य मा विस्मय , खौंल्य़ाण , मोह ममता, आवेग, ममल़ाट स्तम्भ, पसीना, रोमांच, अन्स्दरी , बेहोशी, रिंग, रोमांच, उकताट खूब राओ
वीभत्स रस की उत्पति मा आप जुगुप्सा , डौर, रिंग, मद , फिकर, चिंता, मोह, विषाद, दुःख, खैरी , अप्प्सार, ब्याधि उन्माद, खटपट , मरण जन भाव ल़ाण मा उस्ताद ह्व़े जैन
मा सरस्वती की किरपा से आप पर विष्णु (श्रृंगार रस को दिवता ) , प्रमथ (हास्य रस ) यम (करूण रस), रूद्र (रौद्र रस) , इंद्र (वीर रस) काल (भयानक ) महाकाल ( बीभत्स रस ) जन दिव्तों की स्द्यानी छत्र छाया राओ
मा सरस्वती की बुद्धि से आप तैं अथर्व देव को आशीर्वाद मिली जैन कि आप नया गात, नया सरेल, नई बानी, नई सोच, नयो बाटो, नया बिम्बुं, नया प्रतीकुं, नया ब्युंत, नई तकनीक, नया विसयुं का मालिक ह्व़े जैन पर पुराणो तैं आप कनो इस्तेमाल करण मा बि डमडमा, टंगटंगा, तागतबर इ रैन
आप पर मा सरस्वती कि किरपा बणी राओ
निम्न लोक गीत भी इसी मौसम का है :
ग्वीराळ फूल फूलीगे म्यार भीना
माल़ू बेडा फ्यूलड़ी फूलिगे भीना
झपन्याळी स्किनी फूलिगे भीना
घरसारी लगड़ी फूलिगे भीना
द्यूंळ-थान कुणजु फूलिगे भीना
गैरी गदनी तूसरी फुलिगे भीना
डांडयूँ फुलिगे बुरांस म्यार भीना
डळ फूलों बसंत बौडिगे भीना
बसंती रंग मा रंगदे भीना
ग्वीरा ळ फुलिगे म्यारा भीना
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments