गढवाळी का उत्साही कवि उदय राम ममगाईं से भीष्म कुकरेती की लिखाभेंट
भीष्म कुकरेती; आपना अब तक गढवाळी मा क्या क्या लेख अर कथगा कविता लेखी होला, आपक संक्षिप्त जीवन परिचय-----
उदय राम ममगाईं : गढ़वाली मा मिल लगभग ५०-५५ कबिता लेखी यालिन और १०१ जन्म भूमि कविता संग्रह निकालना कु विचार च
मेरु संक्षिप्त परिचय आप थैं पेज फरी भी मिली जालु ..मी पौड़ी गढ़वाल कु थलीसैंण (राठ ब्लाक ) मा रणगांव कु रैं वालू छौ जैका बना मिन अपुड़ू दुस्रूनाऊ "राठी" धैर.
बचपन की पढाई लिखई थलीसैंण बटी व्हाई वैकु बाद श्रीनगर गढ़वाल बटी सिविल मा डिप्लोमा कैरी कै २० वर्ष की उम्र मा दिल्ली एई गौं
भीष्म कुकरेती : आप कविता क्षेत्र मा किलै आइन ?
उ. म: कविता गठ्याँन कु मी थै कुई भी बिषय मिल जौ मी शुरू होयि जांदू पर कोशिश रैंदी की अपणी जन्म भूमि से वैकु कुछ ना कुछ नातू हो
भीष्म कुकरेती : आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
उ.म.: कवियुं कु प्रभाव ता इनी कैकु नी पर बचपन माँ पिताजी का कारण डॉ शिवानन्द नौटियाल जी का दगडा मा रयुं छौ जब वू शिक्षामंत्री छा कुछछुईं बाता सुणन्दु छौ.
भी.कु. : आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ?
उ.म.: गुरूजी मी थैं यूँ चीजों की कभी भी जरुरत नी पोड़दी, खाली इक कलम चैंदी और कागज, कभी कभी कागज नी हुन्दु ता मी हाथ फरी ही लेखीदिंदु
भी.कु.: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मामाफिक आन्दन?
उ.म.: मिन बोली च आपकू की मी कै बगत ता टोइलेट मा भी लेखन शुरू कैरी दिंदु मोबाइल मा बिषय टाइप कैरी दिंदु अर बाद मा वै थै पूरु करदू
भी.कु.: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?
उ.म.: जब मी मा कुई साधन नी हुन्दीन ता मी खाली विषय थैं दिमाग मा कुटुरी बंधी कै धैरी दिंदु
भी.कु.: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अरफिर क्या करदा ?
उ.म.: जब मी मा कुई साधन नी हुन्दीन ता मी खाली विषय थैं दिमाग मा कुटुरी बंधी कै धैरी दिंदु
भी.कु.: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज करदां ?
उ.म.: कै कै बगत ता ४-५ बार भी रिवाइज करण पोडदू. दुई दफा ता कम से कम करण ही पोडदू
भी.कु. क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /आपनकविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?
उ.म.: मिन कभी भी कुई प्रशिक्षण नी ल्याई अपणी मन की उपज थैं कागज मा उकेर दींदु , बाकी आपक पिछला सवाल जबाब का सज्जन विनोदजेठुड़ी थै थोड़ी भौत बाटु बताई .दुई चार और भी छन जौन थैं थोड़ी भौत लिखना कु बार मा बताई और वू आज फेसबुक मा महारथ हाशिल करण छनता मी थैं भी भरी ख़ुशी हुन्दी .
भी.कु.: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?
उ.म.: आलोचना जख माँ हुन्दी ता आप थैं अहसास हुन्दु की मिन क्या गलत लेखी होलू ता आप थैं सुधार करण कु इक अछू माध्यम मिलदु , मी थैंतभी जादा मजा आन्दु जब मी कै कवी का दगडा मा कवित्व की जंग छेडदू
भी.कु : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सूखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सूखो तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?
उ.म.: मेरी कविताओं मा सुख की और दुःख की दुयों कु समान आधार च . रचनात्मक सुख की अनुभूति मी थैं वै बगत वहयी जब मी थैं कवी सम्मेलनमा पैलू स्थान कु पुरूस्कार मिली म्यारा आँखा भोरी गिनी फिर मिन और भी अछू लिखना कु विचार मन मा गेड़ी पाड़ी कै धैरी दयाई
(Here the poet took Sukho as happiness and not DRY days in the life of poet when he can’t create poetry)
भी.कु : कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?
एकांत जरुर चैंदु किलै की मन का जू तार छन वूँ थैं बाटोलाना जरुरी च तभी कुछ शब्दों कु भंडार खुल्दु
भी.कु: इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ? इकुलासी मनोगति सेआपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद
उ.म.: एकुलास मी कभी भी महसूस नी करदू किलै की मेरु ज्यादा समय लोखों दगडी और बच्युन समय कुटुम्ब्दारी दगड़ा बीती जांदू .
भी.कु: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?
उ.म.: मी विषय का बारा मा सोच्दु और पंक्ति भी विषयपरक ही हुन्दी ता वै से हठी कै जाणा कु ता कुई मतलब ही नी हुन्दु
भी.कु : जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
उ.म.: भीष्म जी यु बडू ही अछू सवाल कैरी आपन ...मेरी कुटुम्ब्दारी भी कभी कभी सोच मा पोड़ी जांदी की यु ता सिणा की तैयारी छां करणा फिरअचानक या कलम कागज अगर विषय दिलचस्प होलू ता नींद आणा कु सवाल ही नी
भी.कु: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
उ.म.: मेरु शब्दकोष मेरु समाज-हमारा गीत संगीत और आज का जमाना मा इन्टरनेट जै मा लोगों की कई शब्दावली थैं मी संभाली दींदु ..आपकाआजतक का सभी मेल जू गढ़वाली भाषा से नाता रखदा हो म्यारा डोरा मा भोरी कै धर्याँ छन
भी.कु: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
उ.म.: प्राइवेट नौकरी मा किताब खोलण कु टैम ही नी रैंदु जैका कारण लगातार लिखे भी नी जांदू
भी.कु: गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
उ.म.: आलोचना-समालोचना और ब्यंग कवी तै और भी सुदृढ़ करदीन जै का कारण वू अगने बढदी जांदू
भी.कु: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां
उ.म.: गैर हिन्दी भाषा मा मी कभी कभी बंगाली लिपि देख्दु और सोच्दु की हमारी अपणी गढ़वाली लिपि कब तैयार होली . जै कार्य मा गढ़वालीविश्वविध्यालय का प्रोफेषर डॉ पुरोहित जी और भी कई गणमान्य ब्यक्ति छन जू कोशिश करणा छन वैका बारा मा दिलचस्पी च की वा लिपि कनिबणिली
भी.कु : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
उ.म.: पढाई लिखई हिन्दी माध्यम मा हुण का कारण अंग्रेजी मा ज्यादा दिलचस्पी नी
तीन साल दुबई मा भी बीतैनी वख भी मिन अपणी भाषा थैं ही महत्व दयाई जैका कारण वख भी मी थैं कवी सम्मेलन मा पुरुस्कृत कैरे ग्यायी ,अंग्रेजी केवल अंग्रेजों दगडी मा ...आपन देखि होली की कभी दुई मल्लू ..या दुई मराठी या कुई भी दूसरी कौम का लोग मिल्दन ता वू अपड़ी बोली माशुरू होयि जान्दन , डेनमार्क ..स्वीडन गौं ता वख भी वी हाल छा सब्या अपड़ी बोली मा लग्याँ छा सरपट ..मी थैं जख मा समझ मा नी आणु छौ मीगढ़वाली मा बड़बडानो शुरू कैरी दींदु छौ वूँ कु समझ मा नी आन्दु छौ फिर वू भी ओके ओके बोली दिंदा छा .
भी.कु: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?
उ.म.: ये बारा मा मिन कभी दिलचस्पी नी धैरी
भी.कु: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
उ.म.: बामण हुण का नाता डौंरी थकुली खूब बजैयीं चा. हारमोनियम बजाणा की काफी इच्छा च .. गढ़वाली संगीत मा काफी मन लग्युं रैंदु जै काबाना मिन २००६ मा टी-सीरिज बटी अपणी इक एल्बम निकाली छै " हे दारु"
परम आदरणीय कुकरेती जी आपकू भौत भौत धन्यबाद जू आपन अपुड़ू कीमती समय हमकु निकाल सदा आपकू मार्गदर्शन कु भूकू छौ कभी बुजुर्गलोग अपड़ा आशिर्बाद से हमुथैं बंचित नी कैर्याँ .
आपकू अपुड़ू
उदय ममगाईं "राठी"
Copyright@ Bhishm Kukreti
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments