हंसोड्या , चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
चैत बि उखी च , वसंत बि ऊनि आंद , ग्वीराळ पर फूल ऊनि आंदन , सकिन तुसारु बि ऊनि फुल्दु जन मेरी ददिक टैम पर फुल्दु। म्यार खुद अपण आखुंन दिख्युं च अर कंदुड़न सुण्युं च चैत माने फूलूं मैना।
ग्वीराळ फूल फूलिगे म्यार भीना माळु बेडा फ्यूलड़ी फूलिगे भीना
झपन्याळी सकिन फूलिगे भीना
प्रकृति मा सब कुछ ऊनि हूणु च किन्तु अब भीना नि आंद। अब सबी भीना दिल्ली -मुम्बई कै दारु अड्डाम दारु पींद दै गढ़वालम पलायन रुकणो योजना बणांदन अर गढ़वालम सांस्कृतिक ह्रास से दुखी ह्वेक द्वी चार गिलास तोड़ी दीन्दन ।
चैत बि उखी च , वसंत बि ऊनि आंद , ग्वीराळ पर फूल ऊनि आंदन , सकिन तुसारु बि ऊनि फुल्दु जन मेरी ददिक टैम पर फुल्दु। म्यार खुद अपण आखुंन दिख्युं च अर कंदुड़न सुण्युं च चैत माने फूलूं मैना।
ग्वीराळ फूल फूलिगे म्यार भीना माळु बेडा फ्यूलड़ी फूलिगे भीना
झपन्याळी सकिन फूलिगे भीना
प्रकृति मा सब कुछ ऊनि हूणु च किन्तु अब भीना नि आंद। अब सबी भीना दिल्ली -मुम्बई कै दारु अड्डाम दारु पींद दै गढ़वालम पलायन रुकणो योजना बणांदन अर गढ़वालम सांस्कृतिक ह्रास से दुखी ह्वेक द्वी चार गिलास तोड़ी दीन्दन ।
पुरण किताबुं मा बि लिख्युं च बल चैताक मैना माने गीतुं मैना।
मुम्बई , कनाडा , अमेरिका का गढ़वाली विद्वान महारास्ट्र टाइम्स , टोरंटो टेबलल्वाड, न्यूयार्क टाइम्स की खबर बाँचिक, दिल्ली -पंजाब का प्रवासी विद्वान हिंदुस्तान टाइम्स की न्यूज पौढिक लिखणा छन बल चूँकि गढ़वाल से पलायान ह्वे गे तो अब गढ़वाली गाउँ मा पंचायत चौकुं मा सामूहिक थड्या गीत , सामूहिक चौंफळा गीत -नृत्य नि हूंदन।
कुछ हद तक यूं परबसी प्रवासी विद्वानुं खबर सही बि च।
अब द्याखो ना गढ़पुर गां मा वैदिन सरिता बौन , संगीता बौकुण ब्वाल बल हे भुली चल जरा शगुनकुण पंचैत चौक मा एक घाण गीत गैक ऐ जांदा अर एक घाण चौंफळा खेलिक ऐ जांदा।
अब रातमा गीत -नृत्य कु अपण प्राइम टैम हूंद तो संगीता बौन बोली - ना भया ! फंड फूक तौं थड्या -चौंफुळो तैं। आज त टीवी मा 'सास रांड बि ब्वारि छे ' सीरियल मा ब्वारिन अपण सासु कतल करण। मीन त दिखण कि कन वा भली मनसण ब्वारि अपण सासुक कतल करदी धौं ! शगुन -फगुन से महत्वपूर्ण त ब्वारी द्वारा सासुक कतल च।
कुछ गाउँ मा थड्या गीत -चौंफुळा नृत्य 'सास रांड बि ब्वारी छे ' सीरियलों बलि चौढ़ गेन।
ऊनि पहाड़पुर मा अध्यापक अशोक कुमारन मास्टर सुभाषकुमारौ कुण ब्वाल बल - चल रै सुभाष जरा आज सै चौक मा चांचरी नृत्य -गीत उरयै दींदा। चैताक मैना च रोज ना सै एक दिन ही सै शगुनों रूप मा गीत -नृत्य खिले जावो।
पहाड़पुर का मास्टर सुभाषक जबाब छौ - सॉरी ! यार आज ऑस्ट्रेलिया कु इंगलैंड से क्रिकेट मैच च अर भोळ इण्डिया -पाकिस्तान से मैच च। मि त शगुन का वास्ता बि नाचणो नि ऐ सकुद।
क्रिकेट मैच अब नृत्य -गीतुं पर भारी पड़ी गेन।
क्रिकेट मैच अब नृत्य -गीतुं पर भारी पड़ी गेन।
गढ़नगर गां मोटर रोड पर च त आठ दस दुकानुं कारण अर स्कूलो कारण उख जनसंख्या छैं च तो गीत ना सै पर चैत मा एक रात शगुन का वास्ता गढ़नगर मा एकाद नाटक खिले जांद।
चूँकि नई पौध का वास्ता पारम्परिक स्वाँगु अध्ययन का वास्ता क्वी किताब या माध्यम त छ ना तो युवा लोगुन नया तरह का स्वांग बणै ऐन। वीं रात गढ़नगर मा 'बीर गबर सिंग के किस्से ' नाटक खिले गे।
नाटक इन छौ -
दृश्य -1
गबरू -अरे ओ निर्भागी साम्भा ! कथगा आदिम छ्याई ?
सांभा -सरदार ! सरकारी गोडाउन से सीमेंट चुर्यांद दैं या ग्यूँ चुर्यांद दैं ?
गबरू -ग्यूँ चुर्यांद दैं ?
सांभा - सरदार हमर चार आदिम छा अर ठाकुरक द्वी आदिम छा।
गबरू -ऊ द्वी अर हमर चार , फिर बि ठाकुरक आदिम ग्यूँ चोरिक ली गेन। ग्यूँ चोरी कैन बि कार हो पर सरकारी अधिकार्युं ड्यार हफ्ता तो मि तैं पौंचाणि पोड़ल कि ना ?
सांभा -जी सरदार !
गबरू -यांक सजा जरुर मीलली , सजा च यूं तैं ठंडु पाणि मा नयाण पोड़ल।
चरी -सरदार तुम शोले जन हम तै गोळीन मारी द्यावो पर ठण्डु पाणिम हमन नि नयाण।
गबरू -चैतक मैना कब च ? गीतुं मैना कब च ? चलो गढ़नगर माँ नाच -गान दिखला
दृश्य -2
गढ़नगर मा मोबाइल पर गाना लग्युं च अर स्कुल्या छ्वारा नाचणा छन -
मुन्नी बदनाम हुयी डार्लिंग तेरे लिए
मै झंडू बाम हुयी डार्लिंग तेरे लिए
इथगा मा गबरू नराज ह्वे गै।
दर्शक दीर्घा से गबरू -बंद कारो ये गाणा तैं।
दर्शकुं बिटेन एक आवाज -हे गबरू ! वै गांवक मुन्नी बामणी हीरा ल्वारौ दगड़ी भाजि त त्वै पर क्यांक मर्च लगणा छन ?
गबरू गुस्सा मा - सालो मै मुन्नी बामणि हीरा ल्वारौ दगड़ भगण पर नाराज नि छौं।
दर्शक - तो ?
गबरू - झंडू बाम से नाराज छौं। वैदिन खच्चर से गिरण पर मेरी पीठ पर मोच आयी अर मीन झंडू बाम लगाई तो कुछ बि आराम नि होइ।
एक बुडड़ी - ये निर्भागी गबरू ! त्वै तै कथगा दै समजै आल कि शोले की नकल नि कौर अर खच्चरुं मा नि बैठ , नि बैठ।
गबरू -ठीक च ठीक च , जब गां मा घ्वाड़ा इ नीन त खच्चरुं से इ काम चलाण पोड़ल कि ना ?
बुडड़ी -खुट्टी टूटी गेन तेरी ?
गबरू - ठीक च ठीक च। शीला की जवानी गाणा लगावो।
सांभा - सरदार शीला की जवानी गाना लगल तो मि तुमर खोपड़ी फोड़ी द्योल हाँ !
कालिया - ये सरदार तैं इन बि नि पता कि सांभाक ब्वे नाम शीला च।
गबरू - चलो ! ओ वसंती नाच ! अर जब तक तू नाचती रहेगी तेरे हीरो की जान
कालिया - साले गबरू ! मीन टाटा का खाया है त्यार नमक नही खाया है। वसंती का नाम लेगा तो सबके सामने ऐसा हणका दूंगा कि तेरे बाप को भी पता चल जायेगा।
गबरू -अरे ओ सांभा ! ये कालिया वसंती के नाचने से इतना खूखार क्यों ?
सांभा - सरदार ! वसंती कलिया की बैणि च।
गबरू -ठीक च तो छमिया को नचाओ।
गबरूक छमिया कु नाम लीण छौ कि वींक तीन भायुंन लति लत्युंन गबरूक भट्युड़ तोड़ी देन।
Copyright@ Bhishma Kukreti 6 /4/2014
*कथा , स्थान व नाम काल्पनिक हैं।
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