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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, April 23, 2014

चखुली समिण घासक रूण अर अपण व्यथा लगाण

विमर्श -भीष्म कुकरेती        

(s =आधी अ  = अ , क , का , की ,  आदि )


घास की एक तिरण - ए गौरैया चखुलि ! आज दौड़ कना ?
गौरैया - ह्याँ मि अब पहाड़ छुड़णु छौं।
घास की एक तिरण - हे चखुलि भूलि ! तू त भागवान छे जु मैदानुं जिना जाणि छे।  क्वा च ऊख ?
गौरैया -सबि रिस्तेदार त मैदानुं मा छन। 
घास की एक तिरण -रिस्तेदार त म्यार बि भौत छन।  पर छ्वारा -छापर का क्वी रिस्तेदार नि हूंद।  ज्यू त म्यार बि बुल्यांद कि मी बि मैदान भाजि जौं। 
गौरैया -त्यार कारण त मि अब पहाड़ छुड़णु छौं।   पैल गां बिटेन मनिख पहाड़ छोड़िक मैदान भागिन त मेंकुण खाणै कमी ह्वे।  त मि  त्यार आस पास का कीड़ा -मकौड़ों पर निर्भर ह्वे ग्यों।  मीन स्वाच कि त्यार आस पास का कीड़ा अर बीज खैक जिंदगी बितै द्योल। 
घास की एक तिरण -यां चांद त मि बि छौ कि तु रैलि त म्यार आस पास का कीड़ा -मकौड़ा में से दूर राला। 
गौरैया -हाँ पर अब  त्यार बुट्या ही नि छन तो कीड़ -मकोड्वोंन कखन हूण ? 
घास की एक तिरण -पर इखमा मेरि क्या गलती।  मेरी त जनरेसन ही खतम हूणी च अर तू में पर दोष लगाणी छे। 
गौरैया -त जनरेसन किलै नि बचाणि छे ?
घास की एक तिरण - अरे पैलाकि सि बात थुका रईं च कि मनिख मि तैं कटद छा त मेरी ट्रिमिंग अफिक ह्वे जांदी छे , जानवर चरदा छा त ट्रिमिंग का अलावा हम तैं मोळ मिल जांद छौ।  फिर कथगा ही झाडी छे तो भूमि मा जल स्तर मथि रौंद छौ।  गोरुं अर तुम सरीखा चखुलूँ परताप हमर बीज इना ऊना बिखर जांद छा तो हमारा  खूब मजा रौंद छा।  हम मनिख , लुखंदर अर पालतू जानवरूं , घ्वीड़ -काखडू परताप खूब फलणा - फुलणा रौंद छा।  
गौरैया -अरे त अब बि फूलो फलो अर हम चखुलुं तैं बि बचाओ। 
घास की एक तिरण -ह्यां पण हम घास परिवारुं तैं बचणो सब अवसर ही खतम ह्वे गेन 
गौरैया -पर ?
घास की एक तिरण -पर क्या ? मथि डांडूं मा कुंळै फलणा - फुलणा छन अर अब सि कुंळै तौळ तक ऐ गेन। जन जन कुंळै बढ़दा गेन त जमीन मा अम्ल -एसिड बड़द गे अर हम घासुं खज्यात आंद गे।  फिर चीड़ों जंगळ मा चीड़ूं पत्तों तौळ इन किरम्वऴ पैदा ह्वे जांदन कि हमर पैदा हूण मुस्किल ह्वे जांद।  इन मा हमर जिंदगी ही खतरा मा पोड़ि गे।  कुंळैउंन बांज मारि देन अर घास बि निबट गे।   
गौरैया -हम चखुलों कुण किरम्वळ त ठीक छौ पर हम उथगा ठंड मा नि रै सकदां।  त घाटयूँ मा फबो अर हम तैं बि फबण द्यावो। 
घास की एक तिरण -घाट्युं मा स्यु लैन्टीना नि फैली गे ?
गौरैया -ये मेरि ब्वे ! नि कौर तैं असुण्या लैन्टिना की बात।  ना त हम पहाड़ी चखुल तैक बीज खै सकदां अर ना ही लैन्टिना पर पळण वाळ कीड़ खै सकदा।  मि त बुल्दु ईं लैन्टिना की जात ही खतम ह्वे जांद ना !
घास की एक तिरण -अरे लैन्टिना की जात क्या खतम होलि। लैन्टिनांन त हम घासक  जड़ नास , कुल नास करी आल। 
गौरैया -ह्यां पण इन बिजोग किलै पोड़ ?
घास की एक तिरण -अब जब मनिख गां मा नि छन अर जु छैं बि छन वु खेती करदा नि छन तो लैन्टिना तैं बढन से क्वी रुक्दो बि नी च अर यांसे लैन्टिना दिन रात चौगणी दर से बढणु च अर हमर खज्यात आणि च।  
गौरैया -पर किलै ?
घास की एक तिरण -अरे यी निर्भागी लैन्टिना भूमि मा क्षार पैदा करदो अर हम क्या भौत सा झाड़्यूं विकास रोकि द्यून्द।  अर फिर लैन्टिना बढ़ण से भूमि मा पाणि स्तर बि कम ह्वे जांद अर इन मा सैकड़ों घास अर वृक्ष जमण बंद ह्वे गेन। 
गौरैया -हां भै ! छ तो यु लैन्टिना खराब इ च। अब त लैन्टिना तौळ बाग़ अर सुंगर लुकिक रौंदन।  
घास की एक तिरण -अर बाग़ या सुंगरुं से हमर ज्यादा कुछ फायदा नी च।  
गौरैया -त अब तुम घास या झाड़ी क्या सुचणा छा। कुछ उम्मीद ?
घास की एक तिरण -बस जनरेसन खतम हूणै प्रतीक्षा करणा छंवां ।

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