कवि- डा नरेंद्र गौनियल, गढ़वाल
ये म्यारा उत्तराखंडी !
सुण ले ध्यान से
गुण ले ज्ञान से
ब्यालि तक तेरि
उछला-उछल
आज कख लुकि
कैका ऐथर झुकि
अहा !
कनु बिसरि तू
वूँ अपणों की पीड़
जौंन मुल्का बान
ख्वै अपणी जान
ये ल़ाटा !
कख हर्चि गैनी
त्यारा गीत
किलै बिसरि गे तू
अपणा नारा
ढयूं -ढयूं मा
कुर्च्याँ गारा
यूंका ठाठ -बाट
मिली गे राज-पाट
जु करदा छा.
सदनि तेरि काट
रैगे जख्या-तखी
तू निर्भगी लाट
अरे !
यी त छन
तेरि हड्गी तोड़न वल़ा
तेरि नाक कटण वल़ा
तेरि ल्वे चटण वल़ा
तू बैठि गे
यूंका टंगणों मूड़
यूंका चुस्याँ
यूंका खत्यां
सूखा हड्गा चपांद
अफ्खुश्या
धिक्कार त्वे तै
डूब मारि दे
कै ढंडि मा
य फाळ मारि दे
कै भ्यालुन्द ....
डॉ नरेन्द्र गौनियाल .....सर्वाधिकार सुरक्षित ...
गढवाली
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यूंका चुस्याँ
यूंका खत्यां
सूखा हड्गा चपांद
अफ्खुश्या
धिक्कार त्वे तै
डूब मारि दे
कै ढंडि मा
य फाळ मारि दे
कै भ्यालुन्द ....
डॉ नरेन्द्र गौनियाल .....सर्वाधिकार सुरक्षित ...
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