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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 3, 2012

घुघती दगड मुखाभेंट

चबोड़ इ चबोड़ मा
                       घुघती दगड मुखाभेंट
                          भीष्म कुकरेती
               मि ड़्यार गाँ जाणु छौ त मेरा पाहड डौट कौम का मेहता जीन बोली बल - भीषम जी तुम गाँ जाणा छंवां त जरा घुघती क इंटरव्यू लेक ऐ जैन . घुघती इज इन डेंजर..
मीन पूछ - घुघती दगड इंटरव्यू ? कै छौंद सात बेटों इखुली बुड्या या पांच लड़क्वळि इखुली बुडड़ी इंटरव्यू क बात ह्वाओ त क्वी बांचल बि !
मेहता जीन ब्वाल, "ना ! ना ! अच्काल कै उत्तराखंडी नेट सर्चर तै इकुलास कटद बूड बुड्यों मा क्वी इंटरेस्ट नी च. ऐना मा अपण बदसूरत अर भौंडी सूरत देखिक अब सौब तै डौर लगद . अच्काल त उत्तराखंडी नेट सर्चर नेट मा "लुप्त होती गौरया, लुप्त होते हल, लुप्त होते निसुड़ी, लुप्त होते ओखली " जन शीर्षकक लुफ्त उठान्दन .
मीन ब्वाल," त मि लुप्त होती संस्कृति पर इ कुछ माल मसाला लयांदु !"
मेहता जीन सूत भेद ख्वाल," न्है ! न्है ! भै लुप्त होती संस्कृति बि त हमारो आइना च अर अब मै तैं बि अपण कनफणि सि सूरत ऐना मा दिखण मा शरम लगद ......"
त मेहता जीक बुल्युं मानणो वजै से मि अपण ड़्यारम तीन दिन तलक घुघती क बाटो जग्वाळणु रौं. जब मि छ्वटु थौ त घाम आई ना कि घुघती चौक अर सग्वड़ मा घुरण मिसे जांदी छे. पण तीन दिन तलक घुघती नि दिखे. आज सुबेर त ना पण घाम आणों कुछ देर बाद म्यार चौक मा घुघती घूर .
मीन घुघती तै पूछ, ए घुघती ! कख जयीं छे तू ? पैल त हमर चौक मा घुघत्यूँ पिपड़कारो रौंद छौ . तीन दिन बिटेन जग्वाळणु छौ कि तू ऐली "
घुघती न पूछ ," वाह ! तुम त चालीस साल बाद ड़्यार आवो अर हम इख तुमर बान भुकी मोरी जवां है? निठुर मनिख !'
मीन ब्वाल," भुकि किलै? इख दिखदि हमर चौक मा , सग्वड़ मा कथगा घास च जम्युं . घासौ बीज अर कीड मक्वड़ कम छन इख? "
" हम घासौ बीज नि खांदा. हम घुघती छंवां ना कि मनिख कि जु हमकुण नि बणयू ह्वाओ वै तै बि खै जवां !" घुघती न करकरो ह्वेक जबाब दे
मीन पूछ," जन कि ?"
" जन कि क्या! भेमाता ब्वालो भगवान ब्वालो न मनिखों कु न मांस मछी, ग्यूं , चौंळ, जौ इ ना तमाखू बि न बणयूँ छौ पण तुम मनिख इ सौब खाणा छंवां. हम घुघती तुम मनिखों तरां नि छंवां .हम केवल पहाडो मा जख मनिख रौंदन उखम का बीज या उखाक कीड़ा खांदवां " घुघती न बिंगाई
मीन ब्वाल, "ओ त या बात च !"
" ह्यां तू मेरी जगवाळ किलै छै करणु ? वु त मि पली गौं मा छयाई अर कुज्याण कथगा सालों मा ए गां बिटेन मनिखों गंध आई त मी इनै ऐ ग्यों. बोल में से क्या काम च ? "घुघती न पूछ
मीन पूछ," ह्यां मीन सूण बल तुम घुघत्यूँ जात अब लुप्त होणि च. सै च या बात?"
," मी इथगा त नि जाणदो कि हम घुघती लुप्त होणा छंवां कि ना पण मी इथगा जरुर जाणदो कि गढवाळ का गौं खाली ह्व़े गेन, मनिख नि छन इख, अर याँ से हम खुणि खाणक नि रै गे."घुघती न समजाई
मीन बताई," पण पर्यावरणवादी जन कि हेमंत ध्यानी, देवेन्द्र कैंथोला , अमरनाथ कान्त, जे.पी. डबराल जन विद्वान त इनी लिखणा छन कि घुघती क जात लुप्त होणि च."
" अच्छा ! पर्यावरणवादी बुलणा छन त जरोर हमारि जात खतम होणि इ होली." घुघती न बोलि.
मीन बताई," हाँ ! हाँ ! यि सौब लिखणा छन बल घुघती जात खात्मा के कगार पर है . यूँ विद्वानु लेख अमेरिका क समाचार पत्र अर लाइफ , टाइम, नेचर जन बडी मैगजीनू मा छपद."
" हाँ उन त कानो कान मीन बि सूण छौ बल डिल्ली, मुंबई अर कानाडा का कुछ पहाड़ी ''घुघती को लुप्त होने से बचाओ'' क बारा मा भौत फिकरबंद छन अर उख परदेस मा भौत सा काम करणा छन.इन बि सुण्याण मा आइ कि मुंबई मा 'घुघती बचाओ' नामो एक एन.जी.ओ बि खुल्युं च "
मीन उत्साह मा ब्वाल," देखी लि घुघती त्यारा बाना इ प्रवासी विद्वान् कथगा परशान छना"
" तुम मनुष्य कहीं के ! बड़े चालु हो . खुद इ आग लगाते हो और खुद इ आग की परेशानी पर भाषण भी पेलते हो . मनुष्य कहीं के " घुघती करैंक भौण मा किराई
मीन घंगतोळ मा ब्वाल," मतबल!"
' पैल तुम पहाड़ी गाँव छुड़दां अर फिर रूणा छंवां कि घुघती लुप्त होणि च. अरे मेरी इथगा इ जादा चिंता छे त तुमन गाँव छोडि किलै च भै ? प्रवासी पहाड़ी कहीं के " अर घुघती फुर्र से उड़ी गे
Copyright@ Bhishma Kukreti , 3/7/2012

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