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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, July 3, 2012

जोगण कु उपकार - डॉ नरेन्द्र गौनियाल की एक गढ़वाली कथा

डॉ नरेन्द्र गौनियाल.

कुछ दिन पैली ही जोगण दीदी जांठि टेकी  हमारू घौर मा ऐछे. मेरी ब्वैन दीदी तै सुबेर कल्यो रोटी का टैम पर ढबोण्या रोटी दगड़ मूल़ा अर छीमी कु साग दे.जोगणदी जब बि कब्बि औंदी छै,मेरी ब्वे खाणु- पीणु जरूर दीन्दी छै.अर घार मा लिजाणो बि दीन्दी छै.आज जोगणदी न बोली की ब्वारी !द्वी क्वासा मर्च दे दे.ब्वैन थ्वड़ीसी मर्च,ग्यूं कु पिस्स्युं अर  कंकरेल़ू लूण दे.
     पैली त बिचारी काम-काज का टैम पर खूब औंदी छै अर मदद करदी छै.ग्यूं,झुन्गोरा,मंडुआ,की दाँय मा खूब लगीं रैंदी छै.भट,मास,गैथ,चुआ,काण-मास सब कुटे दीन्दी छै.हर चीज  से थ्वडा-थ्वडा मिलि जांदू छौ.लूण,गुड,साग-पात,नाज-पाणि की कुटरी बाँधी कै दीदी ब्यखुन्या अपणा घौर चली जांदी छै.पैली त बिन काम कर्याँ कुछ नि मंगदी छै,पण अब बुढ़ापा का कारण  कुछ नि कैरि सकदी छै.ये वास्त जब बि औंदी,कुछ नकुछ दे दीन्दा छाया.
गौं मा सुणे कि जोगण दी बीमार पडीं.खाणु-पीणु बंद ह्वैगे.पास-पड़ोस वलोंन बगत-कुबगत मुंगणी कु पाणि दे.मंततु पाणी अर च्या बि दे.पण हर्बी-हर्बी हालत जादा खराब हून्दी गे. अर एक दिन सुबेर भितर म्वरीं ही देखि
जोगण का दगड़ अपणो क्वी नि छौ. बालपन मा ही ब्यो का बाद द्वी नौनि ह्वैगीन.अर निर्भगी इनि कि जवानी मा ही नौन्यूं कु बुबा अचंचक्क बिमार पड़ी कै मरि गे.जवैं ख़तम होना का बाद  सौरास मा क्वेई नि छौ देख-भाल करन्य.कै तरीका से द्वी नौन्यूं का हाथ पिला कैरिकै व बेफिक्र ह्वैगे. यकुलो जीवन वो बि विधवा को ,जीणु कठिन ह्वैगे. कब्बि भूखा-प्यासा दिन बि कटण पडीं.आखिरकार व अपणो मैत जमणधार ऐगे.कुछ दिन अपणा मैत्यों का दगड़ रैणा का बाद वींन गौं मा ही एक कूड़ी मा ठिकणो बनै  दे.वीं कूड़ी वल़ा नौकरी-चाकरी मा देरादूण चली गे छाया.तौन जोगण तै एक ओबर दे दे रैणो.
हमन त जोगण दी तै सदनि वीं ओबरि मा ही देखि. अचार-विचार ठीक हूँणा का कारण कैन बि कब्बि वीं पर अंगल़ू नि उठाई.अप नि क्वी खेती-पाती नि छै,पण लोगों का दगड़ काम करी कै ही गुजर-बसर ह्वै जांदू छौ.सब लोग खुला मन से दे दीन्दा छाया.मेरी ब्वे बि राशन-पाणि ,पुरणि धोती-बन्यान सब दीन्दी छै.अपणि कुटम्दरी मा ब्यो-बंद का टैम पर दक्षिणा,नै धोती-अंगडु बि दीन्दा छाया.जोगण दी तै तम्बाखू पीणे आदत छै,ये वास्त घर्या तम्बाखू बि लिजांदी छै.
पड़ोस वालों जब जोगण सुबेर मरीन देखि ट खबर सारी गौं मा फैली गे..अरे !.जोगण मरि गे.....जनु नाम.तनि बिचरी जोगण.अपनों-पर्या क्वी बि ना .लोगोंन सोची कि बूडा का भितर जी क्य मिलन. गौं का दाना -सयाणों न बोली कि खतड़ी-कम्बळी भैर धारा.बिष्ट बूबा जी न बोली कि देखि ल्या कुछ छा कि ?निथर कफ़न त ल्याणु ही च.हैंका दिन कूड़ी बि त चुख्याण. मौ-मिटोंण त कर्ला.
सरि गौं का दाना-दिवना,बैख-ब्यटुला कट्ठा ह्वैगीन.भितर जैकि बुढड़ी तै भुयां धरी कै ढिकण -डिसाण उठाई.डिसाण मूड़ रुप्या मिलि गैनी.लोगन सोची चलो ठीक ह्वैगे.कफ़न का पैसा त कम से कम बुढड़ीन धरयां छाया.कैको बि नि लीगि परलोग.सर्या गौं क लोग गैनी अर जोगण तै फूकी कै ऐगेनी.
बाद मा सरी गौं क लोगोँन ओबर बिटि एक-एक समान भैर करी.पुराना झुल्ला-झुल्ली,भांडी-कूंडी भैर निकाली कै देखि.भितर तीन ढ्वकरों   मा धान,तीन मा ग्यूं,एक मा चौंल,एक कनस्तर मा सोयाबीन.छवटा-बड़ा कतगे भांडों मा मास,रयांस,गैथ,भट,मंडुआ,झुन्गोरू धर्यूं मिलि गे. एक द्वी किलो कु डब्बा घर्या घ्यू कु बि मिलि...फिर एक डब्बा मिलि.वैपर भैर बिटि एक झुला लपेट्यूं छायो.जब खोली त वै पर कतगे रुप्या मिलि गईं.एक-एक करी गैणीइ त पट्ट डेढ़ हजार.लोग छवीं लगाणा कि जोगण अपणो काम-काज  अर कूड़ी चुख्याणो सब इंतजाम करिगे.अब त सब खाणु-पीनु बि ह्वै जालु अर बोक्ट्या बि ऐ जालो.
सब लोग हक़-चक तब रैगेनी जब एक हैंका डब्बा पर हौरि रुपया मिलिनी.गिणदा -गिणदा  पट्ट १६ हजार.अलग-अलग मुखै बनि-बनि बात.कब बिटि जमा करनी रै होलि जोगण यू सब..के खुणी करी होलू..
दसवों दिन भितर चुखेकी गौं वालों हलवा-परसाद,पूरी-सब्जी खै.एक बोक्ट्या बि मरे गे.इनि चखळ-पखळ त भला-भलों कि दावत मा बि नि हून्दी.सब काम निबटि कै मीटिंग ह्वैगे.भितर कि राशन-पानी जु बचि गे वैतई द्वी हजार मा बेचिदे.अब सवाल यू ह्वै कि यूं रुप्यूं कु क्य कन.?जोगण कि एक बेटी बम्बई अर एक दिल्ली रैंदी छै..पण कैकु अता-पता नि छौ.कब्बि जोगण तै द्यखणो बि नि आया.गौं क पञ्च-परवाण  सब्यों ण आखिर यू फैसला ले कि गौं कि इस्कूल हुईं च उजड़न्य.स्टील कि चादर ल्हेकी मरम्मत ह्वै जाली.गौं वालों सालों बिति इस्कूल कि चूंदी पातळ ठीक नि कारी सकी,अर जोगण बिचारी एक ही झट्गा मा गौं क नौन्यलों क वास्त इतनो बड़ो काम करी गे.जोगण कु ये उपकार तै गौं कि द्वी-चार पीढ़ी का लोग कम से कम याद त रखी सक्दन.जैका कफ़न का वास्त कपडा अर झ्वपडा चुख्यानो वास्त गौं वाला परेशान ह्वै गे छाया,वींन इस्कूल कु जीर्णोद्धार करी कै सर्या गौं चुखे दे.

        डॉ नरेन्द्र गौनियाल.....सर्वाधिकार सुरक्षित...

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