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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, July 1, 2012

गढ़वाली मा छिटगा कविता प्रयोग

भीष्म कुकरेती
                छिटगा कविता गढवाली कवितौं एक शैली च . छिटगा माने छिटक या छिटग मतबल ड्रौप (Drops ), माने - छींटे. गढवळि साहित्यौ नामी सुकट्वा (समालोचक, समीक्षक ) वीरेंद्र पंवार लिखदन बल - " छिटगा पाण्या बि ह्व़े सकदन अर कछीला (क्जीर, कीचड) बि ह्व़े सकदन.मेरी नजर मा छिटगौं का कुछ रूप यू छन एक भड़कदी रूड्यू छिटाञद बरखा का, एक कछीला (कजीर) छिटगा , एक आग बुझाणो पाण्या छिटगा ,एक मुजदी आग सुल्काणो घी का छिटगा, एक कोरा भात भपाण्यो पाण्या छिटगा, एक वेसुध पड्या मनिख तैं होश मा ल्हौणू पाण्या छिटगा. इन माणे जांद बल छिटगा , अपणी छाप जरूर छोड़दन. साहित्य मनिख तै बिजाळणो काम करदु. इलै जब वे पर छिटगा मनन होऊ त इना होण चेंदन जु ताडौं काम कन्नु. वै तै जज लै ड्यों, आँखा-कन्दूड़ खोल  दयावान".
                    छिटगा कविता द्वी पंगत की या चार पंगत की होन्दन अर यूंक असर भौत जादा होंद जन कि कवि विहारी क क्विताऊ मा होंद - गागर मा समोदर . छिटगा अर दोहा मा भेद च कि दोहा क अपण मीटर/सिलेबस का नियम छन पण नियमों से छिटगा मुक्त च .
                        छिटगा मुक्तक काव्य च. गढवाली मा शान्ति प्रकाश जिज्ञासु न सबसे जादा छिटगा कविता लेखिन या छपैन. कुछ उदाहरण \
                                                            जिज्ञासु क द्वी पंगत वळि छिटगा गढवळि कवितौ उदाहरण
१- प्यार
प्यार करण वळु कैकु बुरु नि सोच सकदू
आंसू अपड़ा बगै सकदू कैका डेख नि सकदू
२-घ्यू
द्वी रूप्या सेर घ्यू खै अब सौ रूप्या कु भी नी च
खाण वळा आज भी छन पर ऊ घ्यू नी च .
३- सारु
कैकु तै तुमारो नौ कु सारु नी च
मंगदरा तै आग क्या खारु नी च
४- सौतेलु
आज जाणी मिन सौतेलु कन हूंद
बुबाई जगा छोडि बिस्वम कूड़ी बणान्द
५- पंछी
पंछ्युंन ऊन घरूं ऐकी क्या कन्न
जौं घरूं बैठ णु चौक नि छन
- भूख
इन लगणु यू कळजुगौ आख़री रूप च
अपड़ा फैदा तै फंसाण कै निठुरो की भूख च .
७- पता च
तिन हूण अबि और बडू त्वे पता च
वां का बा द तिन मै मा आण मै पता च
                                   जिज्ञासु क चार पंगत वळि छिटगा गढवळि कवितौ उदाहरण
१- घास
घासक फंचू मुंडमा देखी
मै थै पहाडै याद ऐगी
इख भी घास मुंडमा ल्याण छौ
त मेरा पहाड़म क्या कमी रैगी
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२- बक्त
क्वी मोर बि जौ
अपडु वक्त खराब हूण नि चैन्द
कै कु नुकसान हो त हो
हम थै फ़िदा हू णचैन्द.
अळगा कवितौं से जाणे जै सक्यांद कि छिट्गा छ्वटा हून्दन पण यूंक असर पाणी छिट्गा जन बिजाळण मा असरदार त होंदी छन दगड मा कैकु ण रामबांसु काण्ड जन तेज बि होन्दन.
Copyright@ Bhishma Kukreti 29/6/2012

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