चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
बुलणो त इन बुल्याणु च बल अजकाल कॉंग्रेस कनफ्यूजन मा च कि राहुल बाबा तैं प्रधान मंत्री कंडीडेट बणाए जावो कि ना ? उन त प्रधान मंत्री कंडीडेट बणाण मा कुछ नी च पण जब कॉंग्रेस चुनाव हरलि त इन माने जाल कि भारतीय जनता नि चांदि कि राहुल बाबा प्रधान मंत्री बौणो।
बुलणो त इन बि बुल्याणु च बल भारतीय जनता पार्टी बि आसमजस्य की स्थिति मा च कि ये निर्भागी आम आदमी पार्टीक प्रभाव कु क्या होलु ? शिरणि खांद दै बड़ जातिक बामणु बीच फोकट का भैड़ा बि ऐ गे कि लाओ मेरी बांठै शिरणि।
बुलणो त इन बि बुल्याणु च बल भितरी भितर मुलायम सिंगौ कुनबा बि घंगतोळ मा च बल अब आम आदमी पार्टी बि मुसलमानु तैं भकलाणो ऐ गे। उत्तर प्रदेस मा मुसलमानो तैं भकलाणो एकाधिकार पर क्वी हैंक पार्टी अधिकार जमाणो ऐ जावो तो यादव कुनबा तैं डौर लगण लाजमी बात च।
लोगुंक ले क्या च कुछ बि बक दींदन। कति बुलणा छन बल डरीं त मायवती बैणि बि च बल आम आदमी पार्टी बि दलितुं ख्वाळ जीमण खाणो जाणा छन अर दलित बि आम आदमी पार्टी तैं भरपेट जीमण ख़लाणा छन।
इनी हरियाणा मा ओम प्रकाश चौटाला , हुडा बि हड़बड़ी मा छन कि पकीं पुकीं फसल से अब आम आदमी पार्टी तैं बि त्याड़ , अद्दा या भग्वल दीण इ पोड़ल।
दुखी त नीतेश कुमार , अम्मा जय ललिता, नवीन पटनायक बि छन कि अब प्रधान मंत्री बणणो एक हैंक दावेदार पैदा ह्वे गे याने केजरीवालन बि आज ना सै भोळ अपण दावेदारी ठोकण इ च।
परेशान त ठाकरे कुनबा याने उद्धव ठाकरे अर राज ठाकरे बि छन कि मुम्बई मा आम आदमी पार्टी घुसणी च।
लालू यादव तो यादव -मुसलमान समीकरण दड़कण से पैली परेशान छौ अर अब त कथगा इ स्योड़ ऐ गेन।
सबि राजनैतिक पार्टी घंगतोळ मा छन कि चुनाव मा क्वा रणनीति बणाए जाव ?
असल मा घंगतोळ या कनफ्यूजन मा त जनता च। यदि राजनैतिक दल अनिर्णय की स्थिति मा छन तो साफ़ पता चलणु च कि जनता अनिर्णय की स्थिति मा च।
कॉंग्रेस कु विकल्प भाजापा छे किन्तु भाजापा वास्तव मा कॉंग्रेस की दोयम नकल सिद्ध ह्वे अर लोगुं तैं भाजापा से निराशा ही मील।
केंद्रीय पार्ट्यूंन क्षेत्रीय आकांक्षा पूरी नि कार तो लोग क्षेत्रीय पार्ट्युं खुकली मा बैठिन कि क्षेत्रीय पार्टी ऊंकी आकांक्षा पूरी कारली पण क्षेत्रीय पार्टी बि जन आकांशा पूरी करण मा सर्वथा असफल ह्वेन। इक तलक कि क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी क्षेत्रीय आकांक्षा अर राष्ट्रीय आकांक्षा मा अधिक फर्क नि कौर सकिन। क्षेत्रीय हिसाब से विज्ञान अन्वेषण हूण चयाणु छौ किन्तु एक बि क्षेत्रीय पार्टीक सरकारन क्षेत्रीय आकांक्षा पूरी करणो बान विज्ञान मा क्रांति का क्वी कदम नि उठैन। सामजिक उठापटक या उत्थान ही राजनीति मा काफी नि होंद बलकण मा शैक्षणिक , वैज्ञानिक क्रांति बि त क्षेत्रीय आकांक्षा का वास्ता माध्यम हूण चयेंद कि ना ? अधिकतर क्षेत्रीय राजनीतिज्ञोंन महविद्यालय खोलिन किन्तु राजनीतिज्ञों द्वारा सिरफ विद्यालयों या महविद्यालयों पर कब्जा करण या महविद्यालय निर्माण क्वी क्रान्ति नि होंद।
जनता कनफ्यूजन मा च कि वा राष्ट्रीय आकांशा तैं महत्व द्वाउ या क्षेत्रीय आकांशा तैं महत्व द्यावु ?
भारतीय जनता जाति -धर्म अर राष्ट्रीय आकांक्षाओं का मध्य अंतर पछ्याणन मा बि कनफ्यूज च। लोगुं समज मा नी आणु च कि क्या जातीय राजनीति राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा की पूरक नि ह्वे सकद या राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा जातीय उत्थान कु माध्यम नि बौण सकद ?
जब जनता ही कनफ्यूज ह्वाओ तो हरेक राजनैतिक दल बि घंगतोळ मा रालो ही। फिर अधिक विकल्प भी तो घंगतोळ लांदन।
जब तलक जनता कि घंगतोळ खत्म नि होंदि तब तलक हरेक पार्टी कनफ्यूजन मा ही राली ! आज जरूरत जनता कु कनफ्यूजन दूर करणो क च।
Copyright@ Bhishma Kukreti 19 /1/2014
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