चुनगेर ,चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
(s =आधी अ = अ , क , का , की , आदि )
पटवारी पद की रचना कैन कार इ त नई पता पर इ पता च कि पटवारी पद जनता कु फायदा बान नि बणये गे छौ। ना ही पटवारी पद रचणो पैथर अपराध कम करणो क्वी मनसा छे। पटवारी पद की रचना राजकीय अपराधी पकडणो बान ह्वे छौ ना आपराध बिहीन समाज वास्ता। इलै शुरुवात से ही माने गे बल पटवारी माने खौफनाक सरकारी पद। पटवारी पद जब सरकारी अपराध्युं तैं पकड़नो अर जमीनों हिसाब किताब करणो बान रचे गे तो घूसखोरी पटवारी दगड़ स्वत: ही जुड़ गे छे। सरकारी स्तर का अपराध कम करणो असली मतबल च घूसखोरी। भारत कु संविधान गवाह च कि संसद जथगा बि नियम बणान्दि गुनाहों मा उथगा ही तेजी से बढ़ोतरी हूंद। संवैधानिक नियम याने साइड एफेक्ट मा घूसखोरी। राजनीतिज्ञ , अन्ना हजारे आदि बिल की दुहाई दींदन कि यांसे भ्रस्टाचार पर लगाम लगलि अर मि कंटर बजैक , जंगढ़ ठोकिक , ढोल बजैक बुलणु छौं कि अब घूसखोरी मा नया नया तरीका इजाद ह्वाल अर फिर कुछ समय बाद लोकपाल विभाग मा भ्रस्टाचार रुकणो बान संसद मा एक नयो अधिनियम आलो। सैत च राजनीति मा तब एक नयो कजीरवाल पैदा ह्वाल।
गढ़वाल मा आज बि आपका क्षेत्र मा पटवारी ऐ जावो तो आप कै ना कै हिसाब से वैक दगड़ रिस्ता निकाळ ही लींदा। परार हमर पट्टी मा मथि मुल्को एक ल्वार पटवारी जी ऐ गे तो हमर गां वाळुक वु पटवारी जी भणजु निकळ गे। जी हाँ बामणु भणजु ल्वार जातिक पटवारी ! ह्वाइ क्या च कि हमर गांवक ल्वार बाडान रिस्ता कु रिस्ता से गणत कार त पाइ कि पटवारी जी रिस्ता मा ऊंक भणजु च तो वु पटवारी सरा गौंका भणजु ह्वे ग्यायि। अब भणजु तैं रिसवत या घूस कबि नि दिए जांद अर ना ही भणजु मामाकोट्युं से रिसवत ले सकुद । माना कि मीन अपण चचाक वाड सरकाणाइ त मि पटवारी जी तैं याने भणजु तैं घूस त दे नि सकुद अर ना ही रिस्ता को भणजो रिस्ता को ममाजी से घूस ले सकुद पण एक मामा अपण दूरो भणजु तैं वाड सरकाणो खुसी मा पिठै त लगै सकुद च कि ना ? बस मि भणजो तैं पिठै लगांदु अर भणजु खुसी खुसी मा पिठै स्वीकार कर लींदो। इलै कुछ शब्द गढ़वाल मा सामान्य शब्द छन जन कि पटवारी जी तैं पाणि पिठै लगै याल कि ना या अजकाल पिठैक रेट क्या चलणा छन आदि आदि।
गढ़वाल मा ब्रिटिश काल से ही पटवारी तैं घूस कबि नि दिए गे। घूस दीण अर घूस लीण गढ़वाली समाज मा आज बि एक सामाजिक पाप च। हम पटवारी जी तैं पिठै लगौंदा अर पटवारी जी कबि बि घूस नि लींद अपितु रिस्तेदारी हिसाब से पिठै स्वीकार करद। कजीरवाल कथगा बि स्टिंग ऑपरेसन करी ल्यावो वो सिद्ध नि कौर सकुद कि गढ़वाल मा पटवारी घूस लींद। पिठै लगाण अर पिठै स्वीकार करण भारतीय संस्कृति की एक परम्परा च अर इख मा हिन्दू -मुसलमान कु भेद बि नी च।
ब्रिटिश काल से ही गढ़वाली लोग अपण पटवारी जी तैं अपण सरकारी काम करवाणो खुसी मा रिस्तेदार समजिक समयानुसार रेट कु हिसाबसे पिठै लगांदु अर दगड़म कुछ भेंट बि दींदु। पैल जब क्वी अपण बेटि या फूफूक इक जांदो छौ या बरखी -तिरैं -ब्यौ काज या सप्ताह मा जांदु छौ त एक घीयक घंटी अवश्य लिजांदु छौ। इनी पटवारी तैं गढ़वाली समाज बैण -भणजु मानिक घीयक घंटी पिठैक दगड़ दींदु छौ। अब चूँकि औषधि विज्ञानन सिद्ध करि याल कि घी स्वास्थ्य का वास्ता घातक च तो होशियार अर स्वास्थ्य चेतना से ओत प्रोत गढ़वाली समाजन कंट्री लिकर की कंटरी पटवारी जी तैं भेंट दीण शुरू कार। किन्तु फिर योगी गुरुओंन ज्ञान दे बल कंट्री लिकर से मनुष्य ठीक से ध्यान मा नि जै सकुद तो हमर सभ्य समाजन अब बैण -भणजो सामान पटवारी जी तैं फॉरेन लिकर पिठैक दगड़ दीण शुरू करी आल। समय का अनुसार पिठै की कीमत अर भेंट का रूप बदल्याणा ही रौंदन।
Copyright@ Bhishma Kukreti 21 /1/2014
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