गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
विलेज रिफौर्म याने ग्रामीण आर्थिक उदारवाद
चबोड्या - भीष्म कुकरेती
[आर्थिक उदारवाद पर हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर गढ़वाली हास्य ,व्यंग्य; आर्थिक उदारवाद पर उत्तराखंडी हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर मध्य हिमालयी भाषाई हास्य ,व्यंग्य; आर्थिक उदारवाद पर हिमालयी हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर उत्तर भारितीय भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर भारतीय भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर दक्षिण एशियाई भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर एशियाई भाषाई हास्य ,व्यंग्य लेखमाला ]
वैदिन रैजा का याने राजेन्द्र चचा जीक फोन आई," बल ये भीष्म ! तु बड़ो असुण्या ह्व़े गे रे.मुंबई मा रैक बि तीन हम तैं विलेज रिफौर्म क बाराम नि बताई.
मीन ब्वाल," काका मै तै शहरी सुधार जाणदो पण ग्रामीण आर्थिक सुधार क बाराम कुछ नि जाणदु ."
काका न बोलि," हाँ अब तुम उन्ना देसी जी ह्व़े गेवां ."
मीन बोलि," नै काका तन बात नी च .."
काकान बोलि," अच्छा रौणि दे. उ त भलु ह्व़े कि हमर गाँ मा हमारो विधायक कु भणजु को एक उद्योगपति दगड्या आई अर वैन बताई कि ग्रामीण सुधार से गौंक बड़ो भलो होलु. तब जैक हमारी समज मा आइ कि हम अन्ध्यर मा छ्या."
मीन हुंगारी पूज," बढिया बात च ."
काकन ब्वाल," अर हमन अपण सौब संजैत जंगळ वै उद्योगपति तै बेचीं देन ."
' मीन पूछ," क्या?"
" हाँ भै हाँ हमन सौब संजैत जंगळ बेचीं देन अर वै पैसान हमन एक बड़ो क्रिक्यट स्टेडियम बणै द्याई.बच्चों तै क्रिक्यट खिलणम बड़ी परेशानी हुणि छे." काकान समजाई
*** **** **
कुछ दिन बाद फिर से रैजा काक फोन आई," अरे भीसम अब हमन ग्रामीण सुधार नीति क तहत अपुण सौब , गदन , रगड़-बगड़ अर जथगा बि पाणि क स्रोत्र छया सौब बेचीं ऐन"
मीन पूछ," क्या ?"
काकाक जबाब छौ," हाँ वु यार गाँ मा एक रिक्रियेसन क्लब कि भारी जरूरत छे त वांक बान हमन सौब पाणि अर गाड गदन एक हैंको बड़ो उद्योगपति तै बेचीं देन . अब सरा गांवक लोक तुम शहरी लोगुं तरां एक दगड़ी बैठिक मजा से शराब कि चुस्की ल़े सकदन या ताश खेली सकदन "
*** *** **
कुछ दिन बाद काकाक फिर फोन आई," यार भीष्म ! ओ क्रिक्यट क्लब क देख रेख क बान पैसा कि जरूरत छे त हम अपण गांवक ज्वा बि संजैत जमीन छे वा जमीन एक बहुराष्ट्रीय विदेसी उद्योगपति मा बेचीं दे. अब हम तै दस साल तलक क्रिक्यट क्लब क देख रेख क बान पैसों जरुरत इ नि पोड़लि "
**** ****
कुछ दिन बाद फिर काकाक फोन आई," वु रिक्रेसियन क्लबो देख रेख क बान पैसों जरूरत छे त हमर अपण सौब संजैत बाटो एक हैंकि विदेसी कम्पनी तै बेचीं दे. "
**** **
कुछ दिन बाद काकाक फोन आई," ये भीष्म ! अरे मुंबई मा जरा हम बीस पचीस लोगुं कुणि नौकरी खुज्या भै !"
मीन ब्वाल," पण काका वो ग्रामीण आर्थिक सुधार से त तुम तै उखी रौण चएंद छौ."
काकाक न बथाई," अरे हमारि जमीन, जंगळ , पाणी अर हवा पर यूँ उद्योगपतियुं को कब्जा ह्व़े ग्याई अर यि अब हमर उठण, बैठण, चलण, लखड़ लाण , पाणी पीण इक तलक कि साँस लीण पर बि टोल टैक्स लगाणा छन . अब हमर गाँ हमर नी च यि त योंको इ ह्व़े ग्याई "
मीन सल्ला दे," त यूँ उद्योग पतियुं क इख इ नौकरी कौरी ल्याओ "
" अरे हमन बि यूँ उद्योगपतियों कुण यि ब्वाल. पता च सब्यूँन क्या ब्वाल. ?"
"क्या?" मीन पूछ
" यि उद्योग पति बुलण लगिन बल जै कौम तै अपण संसाधन कु सही ढंग से इस्तेमाल करण नि आओ त वा कौम नौकरी लैक बि नि होंदी. " काकान खुलासा कार
Copyright@ Bhishma Kukreti 5/9/2012
आर्थिक उदारवाद पर हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर गढ़वाली हास्य ,व्यंग्य; आर्थिक उदारवाद पर उत्तराखंडी हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर मध्य हिमालयी भाषाई हास्य ,व्यंग्य; आर्थिक उदारवाद पर हिमालयी हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर उत्तर भारितीय भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर भारतीय भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर दक्षिण एशियाई भाषाई हास्य ,व्यंग्य;आर्थिक उदारवाद पर एशियाई भाषाई हास्य ,व्यंग्य लेखमाला जारी ...
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments