गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
आवा प्रवास्युं तै चट्टेलिक गाळि द्योंला
चबोड्या- भीष्म कुकरेती
चबोड़ इ चबोड़ मा, हौंस इ हौंस मा
गढ़वाळौ साहित्यकार - अहा भैजी ! आप त मुंबई मा सुबेर सुबेर ब्रेड बटर, फ्रूट जूस पीणै ह्वेला हैं ?
प्रवासी गढ़वळि साहित्यकार- ओ गाँ बिटेन त्यार फोन इथगा सुबेर ! सुबेर हाँ भुला ! आज कुछ इनि सज ह्व़े कि नक्वळ मा रुटि भुजी नि बौणि . म्यार त यि ब्रेड बटर गौळम बि नि जान्दन पण क्या कौरूं ..बोल नै खबर क्या च ?
ग.साहि- बस आज मीन प्रवास्युं क इन मौणि तोड़ कि क्या बुन . ल्या सूणो हाँ कनो मीन कविता माध्यम से प्रवास्युं क खाण पीण पर भयंकर कटाक्ष कार . अफु सि प्रवासी खान्दन ब्रेड-बटर अर मी खांदो चूनो रुटि.. अफु सि खान्दन चाओ माओ अर इख मि खांदो च्यूंउ ..
पर. साहि .- अरे भुला ! प्रवास्युं क बड़ी काट करी भै तीन ईं कविता मा . तीन कविता मा प्रवास्युं तै खूब धधोड़ द्याई भै
ग.साहि- हेमवती नंदन भट्ट बि क्या याद कारल कि वै से बि जादा मि प्रवास्युं तै धधोड़ सकुदु . बेशर्मी से प्रवासी गढ़वाळि संस्कृति अर खान पान छुड़णा छन त मै सरीखा संवेदनशील अर भावुक कवि तै गुस्सा आलो कि ना ?
प्र. साहि- अच्छा !
ग.साहि - अब म्यार एक नाटक का कुछ अंश सूणो हाँ . प्रवासी अपण खन्द्वार हुयूँ कूड दिखदु अर फिर ... प्रवासी ... प्रवासी गढ़वाळि बुल्दु- अब कथगा गाळि खौंलु मि -- प्रवासी ...
प्र.साहि - इ क्या भै ! तीन त नाटक मा प्रवासी क छांच छोळि दे भै !
ग. साहि - हां यु गिरिश सुंदरियाळ बि क्या याद कारल कि वै से बड़ो नाटककार पैदा ह्व़े गे जु नाटक को माध्यम से प्रवास्युं पर बडी बडी से भगार लगै सकुदु
प्र. साहि- यू नाटक तीन गिरीश सुंदरियाळ क देखा देखि ल्याख.
ग.साहि - हाँ भैजी, अरे कवि सम्मेलन मा सौब गिरीशौ लिख्युं 'असगार' नाटकौ बडे करणा छया त मीन बि सोचि कि चलो पर्वास्यूं क छांच छोळण मा ले सै गिरीश तै पछाडे जाओ .
प्र. साहि- चलो बढिया च नाटक विधा मा गढ़वाळि साहित्यकारों बीच प्रतियोगिता चलण बिसे ग्याई.अब प्रवास्युं की आलोचना मा ही सै !
ग.साहि- अरे भैजी यू त कुछ बि नी च . मीन एक कहानी बि ल्याख .
प्र.साहि- अच्छा ! अब तू कथा साहित्य मा बि ऐ गे ?
ग.साहि - हाँ. अर या मेरी पैलि कहानी च . कुछ वाक्य सूणो हाँ ! प्रवासी अब अपणि धरती बिसरी गेन... प्रवासी अपणि मै बैण्यु आदर नि करदन... प्रवासी अपण गढ़वाळ मा बस्यां भै बंधों बात नि माणदन.... प्रावासी अब अब अपण काका बोडो खुणि मन्योडर नि भेजदन ... प्रवासी बिलंच .. प्रवासी घमंडी ह्व़े गेन... प्रवासी गाँ बिटेन अयाँ लोगूँ कि सहायता नि करदन .. प्रवासी शराब पीन्दन.. प्रवासी शिकार खान्दन.. प्रवासी सिनेमा जान्दन.. प्रवासी छुट्यु मा घुमणो खूब जान्दन अर गाँ वळु खुण गाँवक भलै क बान कम चंदा भिजदन. प्रवासी अपण नौन्याळू पडै लिखै पर त खूब खर्चा करदन पण अपण गांक मंदिर तै शानदार, भव्य बणाणो बान उथगा रूप्या नि दीन्दन जथगा गाँ वळ उम्मीद करदन. प्रवासी इन छन.. प्रवासी तन छन .. प्रवासी उख ब्यौऊँ मा अच्काल अंग्रेजी म्यूजिक बजांदन, छ्कैक शराब पीन्दन
प्र.साहि- अरे भै ईं कथा मा त तीन एक बि गढ़वाळि गाळि नि छोडि !
ग.साहि- हाँ भैजी मीन प्रवास्यूं तै इन इन गाळि देन कि अलंकार व्यवस्था मा अब मै तै गढ़वाळि साहित्य मा क्वी नि पछाड़ी सकुद
प्र.साहि - तुमारि कथा मा प्रवास्युं तै दियीं बिजां गाळियूँ से साफ़ लगद कि गढ़वाळि भाषा मा गाळियूँ क बड़ो भंडार च भै .
ग.साहि- भैजी एक संवेदनशील कथाकार जब भावनाऊँ बल पर कथा ल्याखाल त प्रवास्यूं कुणि गाळि अफिक ऐ जान्दन
प्र.साहि - अच्छा भुला भोळ बात करला !
ग.साहि- अरे भैजी ज्यांखुणि मीन फोन कौरी छौ उ त बिसरी गे छौ मी .
प्र.साहि - बोल
ग.साहि - भैजी उ तुम त म्यार भैजिक नौनो ब्यौ मा गाँ आणा इ छंवां ना ?
प्र. साहि- हाँ भै हाँ
ग.साहि - त भैजी तुमन चार पांच काम जरूर करण हाँ !
प्र.साहि- बोल
ग..साहि- एक त आठ दस बोतळ बढिया ब्रैंड कि व्हिस्की लै ऐन. उ क्या च इख अच्काल ख़ास मेमानु कुण विदेसी व्हिस्की जरूरी च
प्र साहि- हाँ उ त म्यार धर्याँ इ छन
ग.साहि- अच्छा उ जु आपन बैंड बाजा क इंतजाम कर्युं च त डी.जी अंग्रेजी संगीत विशेषग्य इ हूण चएंद हाँ
प्र. साहि- हाँ हाँ जु डी.जे मीन इख ड्याराडूण मा बुक कर्युं च ना वु अंग्रेजी म्यूजिक कु एक्सपर्ट च
ग. साहि- अर भैजी ! अच्काल जरा लोग मौडर्न ह्व़े गेन त पैक्ड हैम मतलब पैक्ड पोर्क क सिकारौ पैकेट बि लै जयां . अर बीस पचीस चाइनीज नोड्युलुं पैकेट बि लै जयां
प्र.साहि- और कुछ ?
ग.साहि- अर हाँ ब्यौ बाद मि तुमर दगड ड्याडूण औलु. अर ज्वा जमीन मेखुण तुमन दिखीं च वांक रजिस्ट्री वगैरा बि करण ... अच्छा अब मि भोळ बात करलु
Copyright@ Bhishma Kukreti 10/9/2012
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