कथाकार- डॉ नरेन्द्र गौनियाल
गबर सिंह इस्कूल मा यूं दिनों रोज हिंदी का मास्टरजि की डांट-मार खांदू छौ.हिंदी का मास्टर हरीराम शर्माजि पढे मा खूब ध्यान दीन्दा छाया.हरेक कठिन शब्द कु अर्थ,भावार्थ,सन्दर्भ,व्याख्या, छंद,अलंकार सब एक-एक करि समझांदा अर लिखान्दा छाया. गबर सिंह की हिंदी की कॉपी पूरी ह्वैगे.ऊ नै कॉपी नि ल्हे सको.मास्टरजी रोज ब्वलीं की तू कॉपी किलै नि ल्य़ाणू छै.गबरी रोज जबाब द्या की हाँ गुरूजी ल्हे औंलू.अबी मि रफ मा लेखी द्योंलू.
गबरी कु बुबा आनंद सिंह नौकरि-चाकरि कुछ नि करदु छौ.वैकि नौकरी कतगे जगों प्राईवेट कम्पन्यों मा लगी पण ऊ बार-बार छोडिकी घार ऐगे.घार मा खेती-पाती का दगड़ मेह्नत मजदूरी से कुटमदरी चलदी छै.गबरी की ब्वे धनमती कबी-कबी जब रोजगार योजना कु काम खुल्दु छौ,तब ध्याड़ी मा जांदी छै.जनि-तनि वा कुटमदरी की गाड़ी तै खैचनीं छै.आनंद तै दारू की लत लगी गे छै.रोज ऊ दिन मा खाणु खैकी जड़ाऊखान्द ऐ जांदू छौ. दिनभर दारू पेकि ताश-जुआ खेलना अर ब्यखुन्या दारू कु पव्वा लेकि घार ऐ जांदू.वैतई न राशन-पाणि की न साग-पात की फिकर.जुआ मा कबी जीत त कबी हार.घार मा ऐकि दारू कु पव्वा खाली करणु अर खाणु खैकी चौभंड ह्वै जाणु.बर्स्वन्या छोरी-छोरा छै ह्वैगीं.चार नौनि अर द्वी नौना.वैतई कैकि क्वी फिकर न.क्य खाला,क्य प्याला,इस्कूल,किताब,कॉपी,बस्ता
धनमती की जेब बि अचगाल खाली छै.रोजगार योजना मा काम कर्याँ कु पैसा तीन मैना बिटि नि मिलि.वा बि गबरी तै बीस रूप्या नि दे सकी.गबरी रोज अपणा बुबा की दारू पियाँ का खाली पव्वा जमा करदु छौ.कबाड़ी अट्ठन्नी कु एक का हिसाब से लींदु छौ.ब्याळी तक गिनती करि त चालीस मा सिर्फ एक कम छै.आज पूरी चालीस ह्वैगीं.वैन कबाड़ी मा जैकि खाली पव्वा बेचिकी दुकानदार से एक २० रूप्या की कॉपी ले ले.सुबेर ऊ इस्कूल मा गै.हिंदी का मास्टरजि तै वैन कॉपी दिखैकी बोलि कि गुरूजी मि आज कॉपी लेकि ऐग्युं.अर फिर वैन वीं कॉपी मा ल्यखणू शुरू करि दे.
डॉ नरेन्द्र गौनियाल .सर्वाधिकार सुरक्षित.narendragauniyal@
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments