[पूरण पंत एक व्यंगकार च पण जादातर कवितौं मा एक रोस, एक गुस्सा जरूर दिख्यांद ]
कविता: पूरण पन्त पथिक देहरादून उत्तराखंड
हमत अपणौ की छवीं लगाना छाया
खामखाँ ऐन बीचम कखा फुन्द्या .
फूल मुर्झैन धरती बी शरमाई गे
कन लग्यां छन कुहाल निरभागी फुन्द्या .
भत्त्याभंग कैरिकै उत्तराखंडौ सर्रा
छत्त्यानाश पर मिस्याँ असगुनी फुन्द्या .
बिसरी कै दूद अपणी ब्वे- इजा को
कन कना राज छन निगुरा फुन्द्या.
पितर कूड्यों की कैरिकी अहा कुदशा
माला पैरिकी,हैंसन लग्यां इ फुन्द्या .
मुखडी /जिकुड़ी की लापता ह्वैगे पछ्याण
लुंड -मुंड -तुण्ड यख बण्या छन फुन्द्या .
थकुळि माँ आग पैदा अब होण लगे
ठट्टा समझण लग्याँ इ निरसा फुन्द्या .
बगत पूछलो जब बी छक्क्वेइ सवाल
कूण कख कुमच्याराकई लुकला फुन्द्या .
@ पूरण पन्त पथिक देहरादून उत्तराखंड
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