व्यंग्य कवि :पूरण पन्त पथिक
[ कविता गीतों में व्यंग्य; गढवाली कविता , गीतों में व्यंग्य;उत्तराखंडी कविता , गीतों में व्यंग्य; मध्य हिमालयी कविता , गीतों में व्यंग्य; हिमालयी कविता , गीतों में व्यंग्य;उत्तर भारतीय कविता , गीतों में व्यंग्य; भारतीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; भारतीय उप महाद्वीपीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; सार्क देशीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; दक्षिण एशियाई स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; एशियाई स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; पूर्वी महाद्वीपीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य]
उबर लुक्यूं रै (व्यंग , गढ़वळी कविता )
क्यों कनु छै घ्याळ छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै
चुसणा बी त्वे मिलणु नी छ ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
रीति बदले नीति -फर्ज .कर्म वाबरा लुक्यूं रै
मुस्द्वाल्यूं का पुटग राजनीति ,घुन्ता वाबरा लुक्यूं रै .
सुपिना बिंडी द्यखिन ट्वैन ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै
बनिग्ये उत्तराखंड खुश तू ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
मार बीडी सोड़ ,सरकारी दारु बि घट्येली ले
झांझ मां तू टुण्ड ह्वैकै अपणा वाबरा लुक्यूं रै .
नौं कमाणा भली बात कन्दुदू बयालो सुणी कै
मदघट मां नी बैठ छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
कैको ,क्या, कनो किलै कैन घाम बी शर्मान्दो रै
जून-गैणा सन्ट ह्वेन अपणा वाबरा लुक्यूं रै .
अळगसि -कुसगोरी छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यूं रै
ब्वे का सौं त्वे घ्याळ नि कैरी अपणा वाबरा लुक्यों रै .
रंद-मंदी घपळचौदस सरसू -झैडु बाघ ह्वै
क्यों भुत्ये बे छळयुं छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यों रै .
क्यों कनु छै घ्याळ छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै
चुसणा बी त्वे मिलणु नी छ ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
रीति बदले नीति -फर्ज .कर्म वाबरा लुक्यूं रै
मुस्द्वाल्यूं का पुटग राजनीति ,घुन्ता वाबरा लुक्यूं रै .
सुपिना बिंडी द्यखिन ट्वैन ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै
बनिग्ये उत्तराखंड खुश तू ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
मार बीडी सोड़ ,सरकारी दारु बि घट्येली ले
झांझ मां तू टुण्ड ह्वैकै अपणा वाबरा लुक्यूं रै .
नौं कमाणा भली बात कन्दुदू बयालो सुणी कै
मदघट मां नी बैठ छ्वारा ,अपणा वाबरा लुक्यूं रै.
कैको ,क्या, कनो किलै कैन घाम बी शर्मान्दो रै
जून-गैणा सन्ट ह्वेन अपणा वाबरा लुक्यूं रै .
अळगसि -कुसगोरी छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यूं रै
ब्वे का सौं त्वे घ्याळ नि कैरी अपणा वाबरा लुक्यों रै .
रंद-मंदी घपळचौदस सरसू -झैडु बाघ ह्वै
क्यों भुत्ये बे छळयुं छ्वारा अपणा वाबरा लुक्यों रै .
@पूरण पन्त पथिक देहरादून
कविता गीतों में व्यंग्य; गढवाली कविता , गीतों में व्यंग्य;उत्तराखंडी कविता , गीतों में व्यंग्य; मध्य हिमालयी कविता , गीतों में व्यंग्य; हिमालयी कविता , गीतों में व्यंग्य;उत्तर भारतीय कविता , गीतों में व्यंग्य; भारतीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; भारतीय उप महाद्वीपीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; सार्क देशीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; दक्षिण एशियाई स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; एशियाई स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य; पूर्वी महाद्वीपीय स्थानीय भाषाई कविता , गीतों में व्यंग्य जारी
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