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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 30, 2012

प्रकाशनार्थ :मानक भाषा क्वा च ?


मानक भाषा क्वा च ?
ललित मोहन थपलियाल

[ नामी गिरामी स्वांग लिखनेर ललित मोहन थाप्लियालन एक जातक कथा को अंग्रेजी से गढ़वाळी मा  अनुवाद करी थौ अर कथा से पैल भूमिका मा यू लेखी थौ-भीष्म कुकरेती]
 
         गढ़वाली मा मानक भाषा क सवालों बारा मा जु बि छ्वीं लगदन ऊं मा गर्मी अर धुंवा जादा हूंद  अर उज्यळ कम दिखेंद . म्यरो विचार च बल अबि मानक भषा क सवाल पर तागत लगाणो जरुरत नी च खासकर सृजनात्मक साहित्य लिखनेरूं  खुण . भासा क विवाद वैयाकरणो या भाषाविदों कुणि छोडि क कवि, क्थाक्रो अर स्वांगकारुं तै  अपण अडगै   /क्षेत्र य जै तै ओ सशक्त समजदन वीं भाषा मा लिखण चएंद. जख तलक म्यार मनण च बल मी मानक भाषा वीं भाषा तै माणदु जां मा ठेठ गढवळी पन ह्वाऊ, जै तै गढ़वाळ मा कै बि क्षेत्र मा बुलदा ह्वावन. जै मा हिंदी, पंजाबी, उर्दू अंग्रेजी आदि क वाक्यांशों क अनुवाद या व्यंजना कि छाया न हो . लिखन्देर पूरी इमानदारी से लिखद जाल त मानक भाषा अफिक आलि. हिंदी क इतिहास मा खड़ी बोली क बोलबाला / खड़ी बोली क आण  यांको सबसे बड़ो परमाण च. इखम मि एक जातक कथा क अनुवाद करणु छौं  जु ठेट गढ़वाळी क एक उदहारण   बि च .

(हिलांस, जनवरी - फरवरी अंक  १९८९ से साभार)

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