(म्यार मनण च बल गढ़वळि व्यंग्य (चबो ड्या ) कविता मा द्वी धारा छन एक धारा च डंडरियाळ वादी याने जिकुडेळि अर हैंक च बहुगुणावादी याने दिम्ग्या . डंडरियाळ वादी या जिकुडेळि चखन्योर्या कविता जिकुड़ी या हृदय से निकळदन जब कि दिम्ग्या या बहुगुणा वादी मा बुद्धि क आसरा जादा हूंद. बहुगुणावादी याने दिम्ग्या कवियुं मा कवि वौद्धिक स्तर पर कवितौं तै लिजाण चाँद अर यां से कविता आम जनता से थ्वडा दूर बि ह्वाऊ त कवि फिर बि खुश च. पूरण पंत जी बि बौद्धिक व्यंग कवि च अर कविता जन्माण मा बुद्धि तै जादा महत्व दींद. अर याँ से पंत की कवितौं तै समझणो बान बंचनेर तै एक ख़ास बौद्धिक मानसिकता क स्तर पर जाण जरूरी च. अलंकारों से सजीं तौळै कविता म्यार गढ़वळि व्यंग्यात्मक कवितौं भेद कु सबूत च. -भीष्म कुकरेती]
कवि -पूरण पंत पथिक
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हमारा घार ऐल्या दगडम हम कुणि क्या ल्हैल्या जी
तुम्हारा घार औंला तब तुम हम सणि क्या देल्या जी .
अपनों तमखू -साफी दगडम अग्यल पट्टा लौंला जी
एक अद्धा ठर्रा खीसाउन्द तुमारा उबरम प्योंला जी .
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हमारा घार ऐल्या दगडम हम कुणि क्या ल्हैल्या जी
तुम्हारा घार औंला तब तुम हम सणि क्या देल्या जी .
अपनों तमखू -साफी दगडम अग्यल पट्टा लौंला जी
एक अद्धा ठर्रा खीसाउन्द तुमारा उबरम प्योंला जी .
छुयुंक की कचबोळि बणौला चटणी होलि हैकै निंदा कि जी
ठुंगार कैतैं नंगी करला हम्वी सच्चा बन्दा जी
लगढ़या हम छां दगड्या वैका भूढ़ा-पकोढ़ा-स्वाळा जी
जो न हमसणि सेवा लगालो वेका बल्द ख्वाला जी .
जो न हमसणि सेवा लगालो वेका बल्द ख्वाला जी .
हमारी भैंसी पक्वाडी हग्दन तुमारी भैंसी मोळ जी
जब तक हम वित्वळदा माछ तब तक तुम लगावा झौळ जी .
@ पूरण पन्त पथिक देहरादून
जब तक हम वित्वळदा माछ तब तक तुम लगावा झौळ जी .
@ पूरण पन्त पथिक देहरादून
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