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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Thursday, September 13, 2012

असल्यात


(म्यार मनण च बल गढ़वळि व्यंग्य (चबो ड्या ) कविता मा द्वी धारा छन एक धारा  च डंडरियाळ वादी याने  जिकुडेळि  अर हैंक च बहुगुणावादी याने दिम्ग्या . डंडरियाळ वादी या जिकुडेळि चखन्योर्या कविता जिकुड़ी  या हृदय से निकळदन  जब कि दिम्ग्या या बहुगुणा वादी मा बुद्धि क आसरा जादा हूंद. बहुगुणावादी याने दिम्ग्या कवियुं मा कवि वौद्धिक  स्तर पर कवितौं तै लिजाण चाँद अर यां से कविता आम जनता से थ्वडा दूर बि ह्वाऊ त कवि फिर बि खुश च. पूरण पंत जी बि बौद्धिक व्यंग कवि च  अर कविता जन्माण मा बुद्धि तै जादा महत्व दींद. अर याँ से पंत की कवितौं तै समझणो बान बंचनेर  तै एक ख़ास बौद्धिक मानसिकता क स्तर पर जाण जरूरी च. अलंकारों से सजीं तौळै  कविता म्यार गढ़वळि व्यंग्यात्मक कवितौं भेद कु सबूत  च. -भीष्म कुकरेती]  
 
कवि -पूरण पंत पथिक
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 हमारा घार ऐल्या दगडम  हम कुणि क्या  ल्हैल्या जी
 तुम्हारा घार  औंला तब तुम हम सणि  क्या देल्या जी .
                            
अपनों तमखू -साफी दगडम  अग्यल  पट्टा   लौंला जी
   एक अद्धा ठर्रा खीसाउन्द तुमारा उबरम  प्योंला जी .
   छुयुंक   की  कचबोळि बणौला  चटणी होलि हैकै निंदा कि जी 
    ठुंगार कैतैं नंगी करला हम्वी सच्चा बन्दा जी
       लगढ़या हम छां दगड्या   वैका भूढ़ा-पकोढ़ा-स्वाळा  जी
    जो न हमसणि  सेवा लगालो वेका बल्द ख्वाला जी .
    हमारी भैंसी पक्वाडी हग्दन तुमारी भैंसी मोळ  जी
  जब तक  हम वित्वळदा  माछ  तब तक  तुम लगावा झौळ  जी .              
              @ पूरण पन्त पथिक देहरादून  

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