कवि: पूरण पन्त पथिक
हे निर्मोही /
तू कख अलोप ह्वैगे /
त्त्वैन मेरो खंडेला लफाई/
मी पर अंग्वाळ बोटी -
छड्येंनै कोशिश कन्नू रौं मी /
हे रांडा छवारा/
मेरा अण छुयाँ हाथ पकड़ी कै/
त्त्वैन मेरी भुक्की पे /
मेरी कुंगळि जिकुड़ी मां/
धधकार मचैदे/ तू कख लापता ह्वैगे /
जोगी ह्वैगे?
मेरी धमेली थामी कै /मलासिकै/ मी जुट्ठे द्यूं त्त्वैन /
कनी गीज पोडिगे छै त्वे तैं हैं /
झम्झ्यात कैरिगे /
मेरी मवासी घाम लगैकी/ भ्याळुन्द लमडैकि /
कख ह्वै तेरी पछिंडी/
मेरी चौन्ट्ठी का तिल /गल्वाड्यू का पिल परैं/
दाग लगें त्त्वैन /चकर्चाल /भत्त्याभंग कैरिग्ये तू /
चान्ठों पर बन्नांग लगैकी /
हर्चिग्ये /कख चक्च्येगे /तू कनो खल्चत्त रै/
कख ह्वै तेरो निपल्टो /
खबेश ता नि बणिगे /
हे निर्मोही/
तू कख अलोप ह्वैगे /
त्त्वैन मेरो खंडेला लफाई/
मी पर अंग्वाळ बोटी -
छड्येंनै कोशिश कन्नू रौं मी /
हे रांडा छवारा/
मेरा अण छुयाँ हाथ पकड़ी कै/
त्त्वैन मेरी भुक्की पे /
मेरी कुंगळि जिकुड़ी मां/
धधकार मचैदे/ तू कख लापता ह्वैगे /
जोगी ह्वैगे?
मेरी धमेली थामी कै /मलासिकै/ मी जुट्ठे द्यूं त्त्वैन /
कनी गीज पोडिगे छै त्वे तैं हैं /
झम्झ्यात कैरिगे /
मेरी मवासी घाम लगैकी/ भ्याळुन्द लमडैकि /
कख ह्वै तेरी पछिंडी/
मेरी चौन्ट्ठी का तिल /गल्वाड्यू का पिल परैं/
दाग लगें त्त्वैन /चकर्चाल /भत्त्याभंग कैरिग्ये तू /
चान्ठों पर बन्नांग लगैकी /
हर्चिग्ये /कख चक्च्येगे /तू कनो खल्चत्त रै/
खबेश ता नि बणिगे /
हे निर्मोही/
@पूरण पन्त पथिक देहरादून
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