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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Sunday, September 16, 2012

अपणा घार मां ठगेंदा रै गयां


 हम त भैजी ,अपणा घार मां  ठगेंदा ही रै गयां
कोरी -काची गप्प दाज्यू ,हम लुट्येंदा रै गयां.

राजनीति ,धर्म ,जाति,क्षेत्रवाद का वाद मां
मवासी घाम,तुम त लमसट,हम थिन्चेंदा रै गयां .

तुंड तुम क्याजी करां,हम त खौंळयाँ रै गयां
 तुम्हारी खेत्युं सोनू,हमारी जख्या  बौळे गयां .

तुम्हारी कूड़ी चम्म चमाचम हमारी ह्वै खन्द्वार स्या
हंसणा  मुल-मुल्कै भैजी ,हमत रून्दा रै गयां .

कैको ह्वै निर्बिज्जो राजनीत नी पछ्याणि  साकी रै
उप्पन,चिलगट ,झौडा संगुळ  मनखी कख हम रै गयां
 
@ पूरण पंत पथिक

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