कवि: मदन डुकलाण
[ मदन डुकलाण गढ़वळी साहित्य, नाट्य विधा, फिलम, पत्रिका संपादन आदि माँ एक जाण्यो-पछण्यो नाम च. मदन डुकलाण जु बि कविता लेखिन वो अन्तराष्ट्रीय स्तर कि कविता छन अर इकिसवीं सदी क महान कवियों मादे एक महान अन्तराष्ट्रीय कवि छन. तौळै कविता एक प्रतीकात्मक कविता च ज्वा गढवल्युं पर चमकताळ लगैक सचेत बि करद. कविता पुराणि भौण /ब्यूंत बि तुडदि अर दगड मा रौंस दीण कमि नि करदी. तौळै कविता बांची बंचनेर जाणि जाला कि मदन एक महान अंतर्राष्ट्रीय स्तर कु कवि छन -भीष्म कुकरेती]
गंगल्वड़ा
गंगल्वड़ा ही गंगल्वड़ा
लमडणा /टुटणा /फुटणा
घिल्मुंडि खाना
गाडू -गाडू /ब्वगणा
आपस मा फुंद्यानाथ बण्या
एक हैंकाक /मुंड पक्वड़णा
अर हौरू /ठोकर खाणो
रस्तों मा पवड्या
आंदा जांदा कुकुर जौमा
टंगडि खड़ी कै मुत्तणा
तबी ये बाच गडणा
न ऊंठ उफरणा बस चुपचाप सैणा
ये गंगल्वड़ा !
हे गढ़ माँ /
क्य ह्व़े तेरी कोख थै
तू निचंत
गंगल्वड़ा ही पैदा नि कौर
सर्वाधिकार @ मदन डुकलाण
(साभार, हिलांस, मई, जून , १९८९)
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