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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, September 3, 2012

दुखियारी नारी

मेरि बात सूणा मि,दुखियारी नारी.
रूणों छौं मि अजकाल,दिनरात भारी.

पति ह्वैगे मेरो आज,जुवारी शराबी. 
कसि कैकि होलि अब,दूर या खराबी

रूंदा दिन कटदू,मि निरभगी आज.
कनु ऐ गैनी आज,यु रागस राज.

पतिजिन मेरा रोज,सुबेर चलि जाण.
लटगिंदा-फरकिंदा,पछि घौर आण.

गाळी-ढाळी तौंकी मिन,रोज सुणोंण.
नौनि-नौनों तै बि, रोज भारी डरौण.  

दलकणि मारि-मारि,तौन खाणु खाण.
नौन्यालोंन डैरिकी, भुखी सेई जाण.

छैंदो साग कबी,भुयां मा ठुप्याण.
दाळी की कटोरी,मी उंदा चुटाण.

इस्कोल्या नौनों की,फीस नि दियीन्दा.
टैम पर लैरी-लत्ती,भली नि करिन्दा.

रूणों रैन्द मन मेरो,यी हाल देखिकी.
मनाणु रैन्दू  मि रोज,हाथ जोड़ीकी.

कब मेरा पति तुम,होश मा ऐला.
कब ईं बुराई से,छुटकारा पैला.

         डॉ नरेन्द्र गौनियाल सर्वाधिकार सुरक्षित..narendragauniyal@gmail.com       

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