गढ़वाली हास्य व्यंग्य साहित्य
शहर वाळ कारन त पुण्य अर गाँ वळ कारन त पाप ?
चबोड्या - भीष्म कुकरेती
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सि परसि धर्मा भै कु फोन गा बिटेन ऐ," भीष्म ! भै ब्व़े गुजरी गे. "
"ओ धर्मा दा ! तेरी त ब्व़े छे पण मेकुण बोडि साक्षात वृहस्पति छे. बोडि न मै क्या नि सिखाई." मीन पशत्यौ मा ब्वाल.
" हाँ ओ त ठीक च पण अब बड़ी समस्या मड्वेउंक च . इख बिटेन फूलचट्टी जाणो मीन जीपुं इंतजाम त करी आलीन पण अब मुडै चयाणा छन " धर्मा दा न अपणि तकलीफ बताई. अर सै बि च मुडै नि ह्वावन त गंगा-हिंवल संगम कु क्या माने .
मीन ब्वाल," ह्यां पण स्यू नारायण सिग काका च .बड़ो कामगति च "
धर्मा दा न बोली," हाँ छ त छें च पण ह्वाई क्या च पोरुक साल वैको नौनो नौउम फेल हूणो छौ अर मास्टर मेरो साडो भै ह्वाई. नारेण का न मीमा बि बोली. पण सडु भाई बुलण बिस्याई बगैर पैसा क वैन अपण भाई बि पास नि करण. नारायण का तै पैसा दीण पोड़ीन अर तब बिटेन नारायण काका मि फर नराज च . "
मीन ब्वाल," कुछ बि कौरिक नारायण का तै पटाओ ."
धर्मा दा न बोली," अच्छा त इन कौर नारायण काका कुण फोन कौर कि घाट पर जाण जरूरी च अर वांको पूरो इंतजाम च. सौब इंतजाम च बुलण नि बिसरी हाँ "
मीन नारायण काका कुण फोन कार कि घाट पर जाण जरूरी च अर सौब इंतजाम च.
थ्वड़ा देर मा धर्मा दा क फोन आई बल नारायण काका त ऐ ग्याई अर बुलण मिस्याई . ," भीष्म ! तू इन कौर बलिराम दादा कुण फोन कौर अर बोल घाट पर जाण जरूरी च अर सौब इंतजाम च."
"पण बलिराम दा त अपण मुंडितौ च . मड़घट मा उ नि आलो त फिर कु आलो ?" मीन पूछ
धर्मा दान बताई," अरे भै पोरुक साल में से एक सुंगुर मोरी ग्याई. पट्वरि जि म्यार कक्या ससुरौ स्याळ छन त डौर कुछ नि छे पण भुलमरां मा बलिराम दा तै शिकार दीण बिसरी ग्यों अर ऊ बि नराज च . तु इन कौर बलिराम दा कुण फोन कौर अर बोल कि सौब इंतजाम च."
मीन फटाफट बलिराम दा कुण फोन कौर कि घाट पर जाण जरूरी च अर सौब इंतजाम च
थ्वड़ा देर मा धर्मा दा क फोन आई बल," बलिराम दा त पौंची ग्याई. अब तु प्रेम सिंग तै फोन कौर अर जोर देक बोल कि सौब इंतजाम च "
मीन ब्वाल," ह्यां पण ! प्रेम सिंग त त्यार गोर माँगक यार च फिर ?"
धर्मा दा ण समजाई," उ क्या च पोर प्रेम सिंग तै बेटिक ब्यौव कुण रूप्या चयाणा छया वैन एक हौज क नाम पर सरकारी लोन ल्याई अर मेकुण ब्वाल कि गवाह बौण. अब हौज त बौणि नि छौ अर ना ही बणण छौ त मि डौरि ग्यों अर मि गवाह नि बौण त प्रेम सिंग नराज चल णु च."
मीन ब्वाल," ठीक च मि प्रेम सिंग तै फोन पर समजांदु कि घाट पर जाण जरूरी च ."
इथगा मा धर्मा दान ब्वाल," अर सौब इंतजाम च बुलण जरूरी च"
मि पुछण वाळ छौ कि यू सौब इंतजाम कु मतबल क्या च पण धर्मा दान फोन काटी दे
फिर धर्मा दाक फोन आई बल प्रेम सिंग बि पौंछि गे . फिर धर्मा दान पांच हौर गाँ वळु कुण फोन करणो ब्वाल अर सब मा एकी हिदायत छे कि सौब इंतजाम छें च
मीन इख मुंबई बिटेन गाँ मा पांछ छै आदिमुं कुण फोन कार अर ब्वाल कि सौब इंतजाम छें च सौब धर्मा दा क इख पौंछि गेन
कुछ देर परांत धर्मा दा फोन पर ब्वाल कि अब वो लोग जीप से गंगा- हिंवल को संगम फूल चट्टी जाणा छन त फोन श्याम दै इ ह्वाल .
मि तै यू जाणणै उचमिची लगीं छे कि सौब इंतजाम छें च को मतबल क्या च .
मीन दुफरा परांत धर्मा दा फोन करि दे . धर्मा दान बताई कि दाह संस्कार वगैरा सौब अछि तरां से ह्व़े ग्याई अर अब सौब ढाबा मा बैठिक खाणा पीणा छन .
मीन पूछ कि भै यू सौब इंतजाम कु मतबल क्या छौ त धर्मा दान फोन नारायण काका क हथ मा पकडै द्याई .
नारायण काका क अवाज लड़खड़ाणि छे , "क्या रै भीष्म ! सौब इंतजाम कु मतबल नि जाणदि ?"
मीन ब्वाल," नै काका ."
नारायण काका शराब कु झांझ छौ," इख गाँ मा सौब इंतजाम कु मतबल हूंद मुर्दा फुकेणो बाद शराब अर शिकार कु पूरो इंतजाम रालों "
मीन ब्वाल,' यि क्या! गाँ मा क्या खज्यात ऐ ग्याई बल मुर्दा फुकणो बाद मुडै दारु प्यावन अर शिकार खावन .पाप पुण्य बि क्वी चीज हूंद."
नारायण काकान शराब क झांझ मा ब्वाल," गूणि अपण पूच त दिखुद नी च अर बांदरौ कुणि ब्वाद बल तैको पूच लम्बो च"
मीन ब्वाल," पण काका.."
नारायण काका न ब्वाल," क्या रै भीष्म ! परार मि जब मुंबई अयूँ छौ त तैबारी बिसनु काक मोरी गे अर फिर मुंबई मा हम गाँ वळ अर इलाका वळ विसनु काका क दाह संस्कार मा गे छ्या. अर फिर मुर्दा फुकणो बाद त्वी इ हम चार लोगूँ तै एक होटल मा ल़ी गे छौ , बगैर नययाँ हमुन छ्कैक दारु पे, मट्टन खायी, मुर्गी खायी. वाह भै शहर वळा ! तुम कै क्वी काम कारो त वो पुण्य अर वेई काम हम गाँ वळा कौराँ त पाप?"
अब मीमा बुलण लैक कुछ नि छौ.
Copyright@ Bhishma Kukreti 4/9/2012
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