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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, September 3, 2012

उत्तराखंड राज्य कि नाकामी पर भंयकर निराशा की कविता


भीष्म कुकरेती 
  निराशा  एक भयंकर  अर नकारात्मक भाव च जु असला मा विरोध पैदा करदू. निराशा गुसा, रोष, क्रोध से सम्बन्धित भाव च अर यू तब होंद जब कै ण कवी सुपिन देखी ह्वाओ या सोची ह्वाओ अर यि सुपिन या सुच ण सही साबित ह्व़े सकद छ्या पण जब कवी बदजात कार णो से यि सुपिन या सोच पूरा नि ह्वावान त रोष आन्द , निराशा आन्द. 
   उत्ताराखं द्यूं ण उत्तराखंड कि मांग एक सजीव उत्तराखंड राजू क बान शुरू करी छौ अर त्याग करी छौ कि जब हम तै अपण राज मिलल त हम अपण हिसाब से विकास करला पण इन नि ह्वाई .
आज साख्यिकी  गवाह च कि उत्तराखंड बणणो परांत पलायन मा बढ़ोतरी ह्व़े. युवाओं तै रोजगार नि मील. मुख्यमंत्री कि कुर्सी पैल पैल एक गैर उत्तराखंडी तै दिए गे, एक मुख्यमंत्री त इन बौण जु उत्तराखंड राज्य कु विरोधी छौ . जु मुख्यमंत्री  कुछ करण चाणो छौ वै तै भगाणो बान   राजनैतिक पैंतराबाजी चौल अर आज कु मुख्यमंत्री नामौ उत्तराखंडी च. वैमा ना त उत्तराखंडी सांस्कृतिक धरोहर च ना वै तै पहाड़ कु  क्वी ज्ञान च 
  फिर आज चीमा सरीखा लोग प्रश्न उठाणा छन कि उधम सिंह नगर मा पहाड़ियों से बबाल होणु च . मदन कौशिक कि धान्धलेबाजि सब्यून देखी कि कन गढ़वाली अर कुमाउनी भाषा तै पैथर धके ल़े ग्याई . आज इन लगणु च जन बुल्यां हम इ गैर उत्तराखंडी ह्व़े गेवां धौं ! 
 इन मा गढ़वाली भाषा कि अति सवेंदन शील कवित्री बीना बेंजवाल इन कविता ल्याखली त खौंळ्याणै बात नी च 
कवित्री ण अलंकृत भाषा मा जनता मा निराशा किलै च की पूरी व्यख्या कम शब्दों मा कार .
राज मिलण पर 
कवित्री- बीना बेंजवाल (१९६९) 

अपणा राज मिलण पर 
जंदर्यों का बांठा नाज 
ह्वेगी मूसों  का हवाला 
बाड़ी खैंडण ड्वीला  
मजा मा चटणा बिराळा 
बिसरी ज्ञान चुल्ला मा धरीं 
अपण परथों की बार I  
अजा ण हाथों मा पोड़ीगे 
हमारू घर बार इ I 
बौल्या भुर्त्या बण्या हम  
नवाद कुर्सी ह्वेगे गुसैण 
मासांत  तैं पुछ्ड़ी रैगि हमारि मकरैण 
बगत तैं बि नी च बगत 
नेतौं कु चलणु कारोबार I 
पढया लिख्यां  खाणा ठोकरी
नौकरी जख होली सुनिंद पवड़ी
रोजगारै   स्यां लम्बी रेल 
सैणै  फुंड छन अबि दनकणि 
निरस्येगे प्राण 
कुज्यणि कैपर लगली असगार 
अपणा राज मिलण पर 
Copyright@ reserved with poet and commentator 3/9/2012

1 comment:

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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