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Sunday, July 3, 2016

शिव दयाल 'शैलज की द्वी कविता

Modern Garhwali Folk Songs, Poems 

    
शिव दयाल 'शैलज  की द्वी कविता 

रचना --   शिव दयाल 'शैलज ' ( जन्म  -  1965, मेलधार , ढौंडियालस्यूं , पौड़ी गढ़वाल  ) 
Poetry  by - Shiv Dayal Shailaj 
( विभिन्न युग की गढ़वाली कविताएँ श्रृंखला )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती 
-
1- मेरि जिन्दगी की आस छै
रचना :- शिवदयाल शैलज
मेरि जिन्दगी की आस छै ।
मेरि जिन्दगी की सांस ।।
बणि घुघती बसि। जा गौलि मा।
मेरि जिकुडि की तू हिलांस छै।।
तू प्रेम की ह्यूंचुलि कांठी छै ।
तू माया की गैरी घाटी छै। ।।
तू म्यारै मुल्का की माटी छै।
तू तीलू रामी की सुबास छै।।
तू बाला कि सि आंखि छै।
तू ज्वान मन की पांखि छै।।
तू बुढेन्दी दौं की लाठी छै। 
तू शरद रितू पैलो। मास छै।।3
मी खरडू पूसा कि डालि छौं।
तू माया को मौल्यार छै ।।
 फ्यूंलि फागुण फुल्यार छै ।
तू रितू बसन्तै बुरांश छै ।।4।।
मन रूडि घामल सूखिगे।
चोलि पराण बि रूठि गे।।
तू सात सौण लेकि औ।
मेरि तीसी को चौमास छै।।5।।

2- आस की दिवडी"
-
बिरड्यां लोग घार आला कबि न कबि ।
तू आस कि दीवडी न बुझैइ अबी ।।
बसगल्या बात ह्वैग्याघनाघोर रात ह्वैग्या।
पेट भोरण्या बात ह्वैग्या ;लाटौं को साथ ह्वैग्या।।
मैर बंसला बिवैण्या आलो कबि न कबि ।
तू आस की दिवडी न बुझैई कबि ।।1
फौंकी तेरी कटे गैंईं पात सबि झैडी गैंईं।
खरडू पूस लगि ग्याई चखुला सबि उडि गैंईः।।
सूखी डांडि हैरी ह्वैली कबि न कबि ।
तू माया को मौ ल्यार न लौटै अबि ।।2।।
भड॔ग रूडी पोडिग्याई खैरियं को लगि ग्याई घाम ।
बांजा कि जैड्यूं को पाणि गौलि उबाली आलि फाम।
तिसला लोग दौडि दौडि आला कबि न कबि ।
तू प्रीति की नवली न सुखैई कबि ।।3।।
बिरड्यां लोग घार आला कबि न कबि ।
तू आस की दिवडी न बुझैई कबि ।।
काॅपी राईट @शिवदयाल शैलज ।

Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti  interpretation if any

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