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वैकल्पिक व्यवस्था का अथा विकल्प
चबोड़ , चखन्यौ , चचराट ::: भीष्म कुकरेती
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भारत मा , विकासशील देशों मा अर सैत च सबि जगा व्यवस्था मा एक गिंजारुपड़ि मचीं च। जी व्यवस्था कु विकल्पों खान की खान पड़ीं छन , हर देस मा अर भारतम त बिंडि इ भंगुल जम्युं च।
सब जणगरा , सब नेता अर सरी जनता व्याकुल च , उद्विग्न ही नी च सब हाहाकर करणा छन। सब ढोल बजैक , कंटर बजैक अर टीवी बहसुं मा फड्याणा छन। हरेक ज्ञानी , प्रत्येक संवेदनशील नागरिक अर इख तक कि संविधान परिवर्तन का कर्णाधार बि धै लगैक बुलणा कि भारत मा भारत लैक शिक्षा का एकदम अभाव च सरासर कमी च । जी हाँ कॉंग्रेस का फुन्द्यानाथ , भाजपा का सर्वेसर्वा आरएसएस अर इलाकाई सियासती पार्ट्यूं का सब कुनबा -ए -सदर ऐड़ाट -भुभ्याट करिक अफु कुण ह्यळि गाड गडिक रूणा छन बल हिन्दोस्तां मा तालीम जहन्नुम जोग हूणि च। एक नमै गिरामी लिख्वार श्रीलाल शुक्लन सही बोली छौ बल भारत की शिक्षा पद्धति इन च जन बुल्या गळी की क्वी खज्जिदार लंडेर कुत्ती ह्वावो जैंतै हरेक लतेक चल जांद। हरेक चाँद कि या लंडेर कुत्ती तैं हॉस्पिटल लिजाण चयेंद किन्तु हरेक हॉस्पिटल लिजाणो जगा लतिन मारिक अगनै चल जांदो।
आखिर शिक्षा का इन कुहाल , कुचाह अर कुजातिक किलै हुईं च ? असल म हिन्दुस्तान मा शिक्षा दीणम दसियों विकल्प पैदा करे गेन। एकि प्रदेश तो जाणि द्यावो एकि जिला मा शिक्षा दीणम सैकड़ों विकल्प हिमाला पाड़ जन खड़ा छन। म्युनिस्पैलिटी या जिलापरिषद की शिक्षा पद्धति अलग च , प्राइवेट स्कूलों मा हरेक स्कूलम शिक्षा पद्धति अलग अलग च , सौ स्कूल तो सौ अंदाज , सौ तरीका। हाँ सिलेबस बुलणा कुण एकि च।
फिर इमतान पास पास करणो वास्ता प्राइवेट ट्युसन , कोचिंग क्लास , अर कुंजी व्यवस्था छन अर नकल कौरिक पास हूण पर अलग भंगुल जम्याँ छन , कांड लग्यां छन , कीड़ पड्यां छन। फिर बिना इमतान देकि पास हूणो भरपूर इंतजाम पर अलग हज्या हुयुं च , लुचुड लग्युं च बबासीर हुईं च। जन बिहार का समाचार अबि भैर ऐन । हाँ इमतान मा परीक्षा पत्र एकि होंद किन्तु पास हूणो वास्ता सौ विकल्प छन।
भारतवासी ही न , अन्य देस खासकर इंटली का समुद्री मल्लाह अर रक्षा सौदागर भारत की न्यायिक व्यवस्था से भौत ही दुखी छन। मीन क्या बुलण , तुमन क्या बुलण बिचारा नरेंद्र मोदी तो आम चुनावी सभाओं मा खौफनाक ढंग से न्यायिक व्यवस्था पर अफ़सोस जतैका चुनवा जीती बि गेन । जरा भारत की अदालती , न्यायिक याने ज्युडिसरी सिस्टम की चीर फाड़ करो त सै। एकि पैनल कोड से पुलिस कै अभियुक्त तै बंद करदी तो जूनियर सेसन कोर्ट मा वकील अभियुक्त तै छुड़वै दींदु , सरकारी वकील हाइयर सेसन कोर्ट मा फिर अभियुक्त तै फिर से पुलिस कस्टडी जोग कर दींदु अर उच्च न्यायालय को फैसला हूंद कि पुलिस स्टेसन , द्वी सेसन कोर्ट मा जौं बि संविधान की धारा पर बहस ह्वेन वु एक बि धारा ए केस से संबंधित नि छन। सर्वोच्च न्यायालय का वकील कुछ हौरि तफ़सीर करदन , व्याख्या करदन , इन्टरप्रेटेसन करदन अर सर्वोच्च न्यायालय को फैसला भौं ही हूंद। एक गुनाह का सौ व्याख्याए ? जब एक पीनल कोड या संबिधान धारा तैं सौ तरां से व्याख्या ह्वेलि तो न्यायिक व्यवस्था तै मनुष्य की बिसात की बात नि करो , खुदा तैं तो छोडो यीं जटिल व्यवस्था तैं तो भगवान बि ठीक नि कौर सकुद। विकल्प हर व्यवस्था की सर्वाधिक कमजोरी हूंदी।
इनि प्रशाशनिक व्यवस्था पर बि आग लगीं छन। एक अधिकारी टिप्पणी लिखद कि इन नि ह्वे सकद तो हैंक अधिकारी टिप्पणी लिखुद कि इन तरां से नि सै तन तरां से यु संभव च तो तिसर अधिकारी कुछ हौर हि टिप्पणी लख दींदु अर महाराष्ट्र का भूतपूर्व मुख्यमंत्री डिस्क्रीमिनेसन पावर याने तरफदारी शक्ति से सैनिक विधवाओं का फ़्लैट अपण सासु अर स्याळयूँ नाम पर कर दींदु। मतलब इख बि विकल्पों की महामारी फैलीं च।
जब बि जैं बि व्यवस्था मा नियमुं का विकल्प ह्वावन , एक नियम की व्याख्या सौ तरीका से ह्वावन , अर विकल्प का भी सौ मुतब्दीलात ह्वावन उख व्यवस्था मा धमाचौकड़ी , घपरोळ अर धींगामस्ती अवश्यम्भावी च। व्यवस्था मा सढांद की पैली शर्त च एक से अधिक विकल्प !
मोटर पर एकि इंजिन , रेल इंजिन मा एकि इंजिन हूंद अर हवाई जज मा द्वीइ इंजिन हूंदन तो फिर शिक्षा , न्याय अर प्रशासनिक व्यवस्था मा एकि नियम , एकि व्यख्या का नियम किलै नि ह्वै सकदन? व्यवस्था तो विज्ञान च तो फिर इखमा दर्शन शस्त्र का सूत्रों तरां दसियों वैकल्पिक व्याख्या की क्या आवश्यकता ?
12/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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