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मुंगरी खाणै पवाण मुंगर्यात से नि हूंदी
हंसी हंसी मा समळोण ::: भीष्म कुकरेती
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यदि कोलंबस इण्डिया की खोज मा अमेरिका नि जांदो अर दक्षिण अमेरिका से मुंगर्युं बीज नि लांदो त गढ़वळि बरखा दिनों मा क्या खांद अर बकै दैं बि क्या खांद ?
एक समौ मुंगरी बगैर गढ़वाळ , गढ़वाळी अर बरसात की कल्पना करें इ नि सकेंद छै। अब त चौ मौ बगैर उत्तराखंडै कल्पना नि ह्वै सकदी। समय बड़ो बलवान च।
तब इंद्र दिबता अधिक अनुषणप्रिय छा तो ऊंका दूत समयनुसार समय पर बरखा बरखै दींद छ। अब त चार धाम यात्रा का हिसाबन बरखा हूंद बल। कुज्याण तब ! तबारी तकरीबन जून आखिर अर सात जुलै का दरमयान मुंगर्यात पड़ी जांदी छै। मुंगर्यात याने मुंगरी बूणो टैम अर याने रेनी सीजन की भी शुरवात।
हम तब चाहे गढ़वाली स्कूलम पढ़वां या देहरादून का कॉलेजों मा गर्म्युं की छुट्टी माने मुंगरी खेती की तयारी। गर्म्युं छुट्टियों मा तकरीबन हरेक दिन मुंगरी खेतों सुदारणो काम करण पड़दि छौ। जय दिन बि गौर मा नि ग्यायि वैदिन श्याम दैं मुंगर्यड़ो र्याड़ चरणों ड्यूटी रौंदी छै। हमर मुंगर्युं तीन सारी छे तो तीन जगा ही भेळ बि छया जख चंग्यरियुं मा र्याड़ भोरिक खाली करें जांद छौ। अपण काम छौ तो औसंद , अळगस अर कामचोरी की क्वी छ्वींइ नि लगद छौ। र्याड़ चरण क्वी मनरेगाs काम थुका छौ जो हम ग्राम प्रधान से भ्याळ दूर हूणों बाण चचराट करदां। बस हमर उद्देश्य हूंद थौ कि समय पर पुंगड़ र्याड़ बिहीन ह्वे जावन। कुछ दिन हम सब स्कूल्यों र्याड़ चणणो विषयों पर छ्वीं बथ लगी जांद छा। फिर जब र्याड़ चणणो काम पूर ह्वे जावो तो खेतुं मा खौड़ -कत्यार कट्ठा करणो काम शुरू हूंद छौ। बूढ बुड्यों से एक हिदैत मिलदी छै कि जै पुंगड़ो खौड़ कत्यार हो वो खौड़ कत्यार वैइ पुंगड़म जळाये जाण चयेंद। एक पुंगड़ो खौड़ कत्यार दुसर पुंगड़म लिजाणैं सख्त मनाही रौंदी छै। हमर बूड बुड्या कृषि विश्वविद्यालय का पीएचडी नि छया पर वो अनुभव विश्वविद्यालय का डाक़्टर छ्या। मीन भौत बाद पौढ़ कि खेतों मा वी खौड़ कत्यार जमदो जै खौड़ कत्यार मा वू रसायन ह्वावन जु रसायन तै खेत या जमीन तै चयेणा छन। याने खौड़ कत्यार वे खेत का रसायन की कमी पूर्ति करदा छा जु खेत तैं चयेणा छन। मुंगर्यात से द्वी तीन दिन पैली ही खौड़ कत्यार की अलग अलग ढेरी तै जळाये जांद छौ। जळयूँ खौड़ कत्यार खेत का रसायन पूर्ति करदा छौ।
मुंगर्यड़ सुदारणो साथ साथ मुंगर्यात पड़न से पैल लम्यण्ड। गुदड़ी अर कखड़ी झिंकड़ काटी लाणो जिम्मा बि अधिकतर स्कूल्यों की हूंदी थै। हमर गाँव मा जंगळ ना का बरोबर ही छा तो हम दूसराक बौणु से रत्यां झिंकड काटी लांदा छ जै तैं हम चोरी नि समजदा छ अपितु बहादुरी समजदा छा।
बरखा शुरू हूणो कुण मुंगर्यात नि बुले जांद छै। मुंगर्यात माने इथगा बरखा जथुग मा मुंगरी जामि बि जावन अर आठ दस दिन बरखा नि बि ह्वे त बि मुंगरी मोरन बि ना। यांकुण जणगरा लोक जमीन खोदिक दिखदा छा , हवा से अनुमान करदा छा अर कुंळै डाळु आवाज आदि का पूरा अध्ययन करदा छ तब जैका गाँव वळ एक दगड़ मुंगरी भिजांद छा। मुंगर्युं दगड़ सभी प्रकार का म्याला बि भिगये जांद था अर तब जैक मुंगरी सीं पर बुये जांद छौ।
हम मुंगरि ब्वेका स्कूलों मा चल जांद था अर बकै काम बड़ा लोगुं कु छौ। मुंगरी तुड़न बि एक कला च अर मुंगर्युं से विभिन्न खाद्य पदार्थ बणान बि एक कला छै। यां पर भोळ ...
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14/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
14/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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