खास कै एत्वारा दिन (आधुनिक गढ़वाली कविता )
रचना -- जगदम्बा प्रसाद चमोला ( जन्म 1967 , कर्णधार , नागपुर , रुद्रप्रयाग गढ़वाल )
Poetry by - Jagdamba Chamola -
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 141 )
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग - 141 )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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खास कै एत्वारा दिन.........खास कै एत्वारा दिन............
सग्ति चखळ-बखऴ रौन्दि
कैकि भी न दखल रौन्दि
ट्योरा पर भी सकल रौन्दि
भ्योरा पर भी अकल रौन्दि
.खास कै एत्वारा दिन खास कै एत्वारा दिन.........
कैकि भी न दखल रौन्दि
ट्योरा पर भी सकल रौन्दि
भ्योरा पर भी अकल रौन्दि
.खास कै एत्वारा दिन खास कै एत्वारा दिन.........
अपुडु-अपुडु बक्त रौन्द
अपुडु ताज तक्त रौन्द
मनखि चाहे जक्स रौन्द
तै मू भी लक्स रौन्द
गात पर सुलार रोन्द
ब्वे कु दो दुलार रोन्द
न ड्यूटि परो काम रौन्द
न स्कूलो घाम रौन्द
फजिल बटिन श्याम रौन्द
धौ करी आराम रौन्द
खास कै एत्वारा दिन..खास कै एत्वारा दिन.........
अपुडु ताज तक्त रौन्द
मनखि चाहे जक्स रौन्द
तै मू भी लक्स रौन्द
गात पर सुलार रोन्द
ब्वे कु दो दुलार रोन्द
न ड्यूटि परो काम रौन्द
न स्कूलो घाम रौन्द
फजिल बटिन श्याम रौन्द
धौ करी आराम रौन्द
खास कै एत्वारा दिन..खास कै एत्वारा दिन.........
खांण मा रसाण रौन्दी
घौर मू ज्यठांण रौन्दि
कपडा धुवे धाण रौन्दि
धारा मू द्यूराण रौन्दि
कै दिन्वी जग्वाळ रौन्दि
फजिल बै बग्वाळ रौन्दि
लेन्दा माके साळ रौन्दि
दार्वी सीं पगाळ रौन्दि
मनख्यौं मा भी पांण रौन्दि
गाजि मा भी ठांण रौन्दि
मन चैंन्दि धांण रौन्दि
ब्येटि भी किसाण रौन्दि
खास कै एत्वारा दिन...खास कै एत्वारा दिन.........
घौर मू ज्यठांण रौन्दि
कपडा धुवे धाण रौन्दि
धारा मू द्यूराण रौन्दि
कै दिन्वी जग्वाळ रौन्दि
फजिल बै बग्वाळ रौन्दि
लेन्दा माके साळ रौन्दि
दार्वी सीं पगाळ रौन्दि
मनख्यौं मा भी पांण रौन्दि
गाजि मा भी ठांण रौन्दि
मन चैंन्दि धांण रौन्दि
ब्येटि भी किसाण रौन्दि
खास कै एत्वारा दिन...खास कै एत्वारा दिन.........
.म्वेटि बकऴि रजे रोन्दि
निन्द अपडा सजे रोन्दि
देर तके स्यवे रोन्दि
चा भी अपडा ढबे रोन्दि
गौं गर्ता बर्ति रौन्दि
सग्ति सर्का बर्कि रौन्दि
घौर बोंण खर्क औन्दि
दादि मा भी फर्क रौन्दि
खास कै एत्वारा दिन....खास कै एत्वारा दिन..........
निन्द अपडा सजे रोन्दि
देर तके स्यवे रोन्दि
चा भी अपडा ढबे रोन्दि
गौं गर्ता बर्ति रौन्दि
सग्ति सर्का बर्कि रौन्दि
घौर बोंण खर्क औन्दि
दादि मा भी फर्क रौन्दि
खास कै एत्वारा दिन....खास कै एत्वारा दिन..........
ब्वै बिचारि बणी रौन्दि
चुल्हा परे तंणी रौन्दि
दादा भितर भैर कर्द
नह्यण मा भी देर कर्द
गात त्योल मण्डे रौन्दि
घाम परे नह्वे रौन्दि
बस्ता भी पछांण रौन्द
चोक मा दसाण रौन्द
रजे रौन्दि घाम धरीं
खदरा पर हमाम धरीं
खास कै एत्वारा दिन....खास कै एत्वारा दिन.......
..अपडि भी त हस्ति रौन्दिचुल्हा परे तंणी रौन्दि
दादा भितर भैर कर्द
नह्यण मा भी देर कर्द
गात त्योल मण्डे रौन्दि
घाम परे नह्वे रौन्दि
बस्ता भी पछांण रौन्द
चोक मा दसाण रौन्द
रजे रौन्दि घाम धरीं
खदरा पर हमाम धरीं
खास कै एत्वारा दिन....खास कै एत्वारा दिन.......
म्वोर मा भी मस्ति रौन्दि
जोर जबरदस्ति रौन्दि
स्वोळ अन्ना सस्ति रौन्दि
द्वी झणों मा प्रेम रौन्द
पूरु टीरि डेम रौन्द
झगडा भी अजीब रौन्द
सुलझणा करीब रौन्द
खास कै एत्वारा दिन.....खास कै एत्वारा दिन.........
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
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