Modern Garhwali Folk Songs, Love Poems
-
'फुर घिंडुड़ी आजा : पधानु का छाजा' (गढ़वाली कविता )
-
'फुर घिंडुड़ी आजा : पधानु का छाजा' (गढ़वाली कविता )
रचना -- गिरधारी लाल थपलियाल 'कंकाल ( जन्म 1929-1987, , , गढ़वाल )
Poetry by - Girdhari Prasad Thapliyal 'Kankal'-
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -48 )
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -48 )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
-
प्यार की त छुईं इनि कुछ नि लांदो मोल
घिंड्वा घिन्डुड़ी मा ब्वल्द औ बणौला घोल।
फुर घिंडुड़ी आजा !
पधानु का छाजा !!
चाड़ नी जु छ्वीं लगऊँ ,
केकु तेरा नेडु अऊँ ,
इन्ना समझि तन्नी छऊं ,
कुछ नि तेरो काsज
पधानु का छाजा !!
तन्नी छै तु कैन बोलि
अपड़ा मनै बात खोलि,
मिन ता सोचि थकीं होलि
इच्छि थौ ता खा जा !
पधान का छाजा !!
जाण कनै कैकि रीत ,
मर्दु कि क्या च प्रतीत ,
दुन्या झट म्यसौन्द गीत,
अपड़ा अपड़ा बाठा जा जा !
पधान का छाजा !!
इति हस्यार तू चलाक ,
तड़तड़ी छ कुंगळि नाक
संगुळि सी लटकीं बुलाक,
भलि दिंदौ बिराजा
पधान का छाजा !!
xx xxxछाल ल्हैलो साड़ी ल्हौ लो
त्वेको मी गौणा बणौलो
अब कबी नि दिल दुखौलो
राणि तू मि राजा !
पधान का छाजा !!
( साभार --शैलवाणी , अंग्वाळ )
Poetry Copyright@ Poet
Copyright @ Bhishma Kukreti interpretation if any
Modern Garhwali Love Folk Songs, Modern Garhwali Love Folk Verses, Modern Poetries, Poems Contemporary L
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ; चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ;टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ;उत्तरकाशी गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ; देहरादून गढ़वाल, उत्तराखंड से गढ़वाली लोकगीत , कविता ;
No comments:
Post a Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments