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कृष्णावतार (पैनी , कटु , व्यंग्यात्मक गढ़वाली कविता )
कृष्णावतार (पैनी , कटु , व्यंग्यात्मक गढ़वाली कविता )
रचना -- कुंजबिहारी मुंडेपी 'कलजुगी ' ( जन्म - 1965 , मुंड्यप , मवाळस्यूं , गढ़वाल )
Poetry by - Kunj Bihari Mudepi 'Kaljugi'
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -130 )
( गढ़वाली कविता क्रमगत इतिहास भाग -130 )
-इंटरनेट प्रस्तुति और व्याख्या : भीष्म कुकरेती
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कृष्ण त्वे तैं इंडिआ आण प्वाड़लो
गीता मा दियूं बचन निभाण प्वाड़लो।
बंसि का बजैया यख बंसि ना बजैई
यख त सूखो शंक बजाण प्वाड़लो।
नि मिलणि यख दै , दूद , घ्यू अर नौणी
अब लोखरौ भैंसों त्वे पिजाण प्वाड़लो।
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अब वो कत्थक नाच कै नी सुहांदो
गोप्यूं तैं डिस्को दिखाण प्वाड़लो
वीणा बंसुळी को रस सब खतेगे
त्वे तैं गिटार ही बजाण प्वाड़लो।
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छ्यड़ीलो जो कै नारि गोपी समझिकी
त ठाणा को टिगट कटाण प्वाड़लो
घचोरी की ठाणादार पुलिस की लद्वड़ी
मुश्किल से अफु तैं छ्वड़ाण प्वाड़लो।
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हिंगोड़ ख्यलणो अर रास रचणो
लुकाचोरी का खेल ह्वे गेन पुराणा
त्वे तैं मुंड मा हैट अर हात मा बैट
क्रिक्यटी प्लेयर बणिक आण प्वाड़लो।
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सौंगो नी च सरकारी काम क्वी कराणों
रज दफ्तर का चक्कर लगाण प्वाड़लो
ठिकठाक ह्वे जालि सब धाणी फिर बी
पूळो रुप्या रड़ाण प्वाड़लो।
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संस्कृत गढ़वळि हर्चि , हिन्दी बि जौंदा
अंग्रेजी मा त्वे तैं बबड़ाण प्वाड़लो
जलम ल्हेकि पौड़ि लेखि उत्तराखड मा
फिर अफु तैं देसी बथाण प्वाड़लो।
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ऐलो त नेता बणीकी नि ऐई
नथर बगत-बगत झूट ब्वलण प्वाड़लो
ऐ जाला ठाट जो मिलि जालि खुर्सी
नथर चमचागिरीम् जीवन बिताण प्वाड़लो।
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आजा तु कै रूप मा बी कन्हैया
जनता का बोझ बिसाण प्वाड़लो
यख ह्वे गेना हजारों कंस पैदा
यूको हंकार मिटाण प्वाड़लो।
( साभार -- अंग्वाळ )
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