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झ्याड़ /क्याड़ गडण : याने 8 रस , 49 भाव अर त्यौहार बि !
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हौंस हि हौंस मा झ्याड़ -क्याड़ संस्कृतिs समळौण ::: भीष्म कुकरेती
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जी हाँ झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडणम गढ़वळयूँ तै बनि बनि का रस पान करण पोड़द छौ। कास ! नाट्यशास्त्र का भरत मुनि गढ़वळि हूंदा तो लिखदा कि बीभत्स रस मा घीण , झिड़झिड़ी , एलर्जी अधिहृषता , प्रत्यूर्जता का साथ साथ हर्षिता , ऊर्जा अर उत्साह बि बगद। अर झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडण एक विशिष्ठ विज्ञान च , विशेष कला च अर प्रकाशोर्जा की आशा बि च। नि बोल जाण ?
झ्याड़, क्याड़ रौ पुटुक धरण सरल काम छौ अर झ्याड़, क्याडुं तै रौ पुटुक धरणम पसीना बगण , औसंद व आसा -उत्साह भाव से अधिक भाव नि आंद छा इक तलक कि चौर्य -भय रस बि ये कार्य मा अनुपस्थित रौंद। झूट बुलणु हों त चोरुं स्याळी तै कव्वा काटि देन।
बस झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडणम ही छै से सात रस अर अथा भाव पैदा ह्वे जांदन।
आपन मजाक समजण पर जौंन झ्याड़, क्याड़ गड्यां छन वूं तै पता च कि ये बिनतिथि का त्यौहारम सब रस अर सब भाव पैदा हूंदन जु हौर कै हौर कार्य मा नि मिल्दन। अर सब तै पता च कि प्याज गडण ह्वावो या झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडण हो तो यी द्वी काम सरा गौं एकि दिन करद। इन मा एक जगा सरा गौं कट्ठा नि हूंद ? खौळ -म्याळ बि इनि त हूंद। नि हूंद ?
जिंदगी एक नाटक च तो झ्याड़, क्याड़ गडण बि एक परिपूर्ण नाटक च अर ये नाटक मा अथा भाव मिल्दन।
जु त तुमर गाँव मा रौ तुमर खाणो पाणीक इ तौळ हो त तुम ये पर्व तै त्यौहार नि मानि सकदन। हाँ जौंक गांव मा झ्याड़, क्याड़ गडणो दूर द्वी तीन मील बड़ो गदन जाण पड़द तो वै गांवक लोक झ्याड़, क्याड़ गडणो अतिरिक्त गदनम माछ मरदन, ढुंगळ बणान्दन अर कुछ दारु चुस्की बि लीन्दन।
सबसे पैल औसंद, वीरता अर घिणाणो रस मिल्दो जब कमयां याने भिज्याँ झ्याड़, क्याड़ की गठरी तै रौ से भैर गडे जांद। औहो क्या लाल कीड़ा दिखेंदन अर फिर बि झ्याड़, क्याड़ पूळ गाडिक लाणम जवां संतुष्टि मिलदी वा संतुष्टि ब्वारि लाण बि क्या मिलदी होली।
फिर भिज्याँ झ्याड़, क्याड़ से स्योळु निकाळणम क्या कम खण्ड खिलण पड़दन अर लत -पत , कीड़ा आदि अर सबसे बड़ी एलर्जी तो ये बगत ही शुरू ह्वे जांद। भौतुं पर दमळ उठी जांदन अर द्वी चार दिन तक या एलर्जी रौंदी।
अर तुम समजणैं ह्वेला कि स्योळ गाडि तो कार्य सम्पन ! अजी कै जमन छंवां तुम ? कनो स्योळ धूण , स्योळ छपोड़न अर घौर पौंछाण क्या अजकलो दर्जा आठ पास करण समजी याल क्या तुमन ? वीर रस , रौद्र रस , आदि का अनुभव, दर्शन व रस्वादन स्योळ धूण , स्योळ छपोड़न अर घौर पौंछाणम नि हूंदन ?
फिर जौंक गदन मच्छी मार कर्मकांड हूंद व ढुंगळ ,उड़दै दाळ पकाणैं क्रीड़ाक्रम चलद तो उख तो कथ्या इ रस -भावुं रस्वादन हूंदन यी त वी बतै सकदन जौंन झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडण अर माछ खाणो उभय कर्म कर्याँ ह्वावन।
आपन कथगा इ प्रश्न पुछणन की झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडणम प्यार या श्रृंगार रस कब पैदा हूंद ? ये भै जब छिल्ल अर स्योळ की सफै ह्वे जांदी तो गुसै -गुसैणी अपण छिल्लों तैं कै भाव से दिखदन ?
जलन / ईर्ष्या ये भै द्यूराणी -जिठाणी एक दुसरा क छिल्ल अर स्योळु तुलना नि करदन कि कैक छिल्ल पर कम खुब्ब्या छन , कैक स्योळ सफेद अर गाँठ रहित च ? अर जनि तुलना हो तो शोक , क्रोध , जुगुप्सा , असूया भाव जागरण अफिक ह्वे जांद कि ना ?
अब फिर आपन पुछण कि झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडणम करुणा कखम आई ?
जी जौंक गाँव मा शिल्पकारों संख्या अधिक हो तो करुण रस अफिक उपजी जांदो छौ।
जरा याद करो - शिल्पकारो परिवार मा ना भ्यूंळ ना भंगुलक्यड़ अर छिल्ल व स्योळ जरूरत उथगा इ आवश्यकता हूंदी छै जथगा एक बिट्ठ परिवार तैं। जै गदन झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडेणा ह्वावन तो उखम मवरां शिल्पकार परिवार बि आंदन अर निछौंदी मा करुण रस का शोक , भय , ग्लानि , श्रम , दैन्य , आवेग , जड़ता , विषाद , अश्रु आदि भाव तो अफिक पैदा होला कि ना ?
अब मीन सूण बल अब झ्याड़, क्याड़ , या छिल्ल गडणैं संस्कृति रसातल की तरफ सरकणी च तो सोग मनाणो जरूरत नी च। हर संस्कृति का विनास हूंदी च।
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19/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
19/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India
*लेख की घटनाएँ , स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में कथाएँ , चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने हेतु उपयोग किये गए हैं।
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