प्रस्तुतीकरण - भीष्म कुकरेती
भीष्म कुकरेती - पाराशर जी ! आखिर क्या बात च जु गढवाळी साहित्यकार महाकवि कन्हैया लाल
डंडरियालौ बारा मा जाणण चांद !
पाराशर गौड़ : कन्हयालाल जी मेरा पहाड़ का कालीदास छन ! वो मेरा पाहाडी साहित्य का
जन कुमाउनी का महान कबि गुमान कवी छा, उनी दंद्रियाल्जी भी वी समक्ष का गड्वाली
कवि छन ! आज तक कु जत्गा भी गड्वाली कवित्या कु साहित्य मिल्द जुमा की हमरा
पूरान महान कबेयु जौं को योगदान च उत छहीच पर , आज का सन्धर्व माँ अगर
गड्वाली की कविता कु बिबेचन, वेकु प्रभाऊ/सम समायाकी कु कतका असर हमारा व
हमारी जन जीवन पर असर करद वे सन्धर्व माँ कनाह्यालाल्ल डंड्रियलजी सर्वोपरि
ऊकी कविता...कविता नीन, वो अपना आपमाँ मेरा पहाड़ कु दर्पण छन ! जू
कबिताक माध्यम से पहाड़ की सांस्क्रतिक /सामाजिक व आर्थिक जीवन कु स्वरुप
आम आदम थै दिख्न्दी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी से मुलाक़ात मा आपन उंको विषय मा क्या धारणा बणे छे
अर क्या वै इ धारणा पैथर बि रै?
पाराशर गौड़: ये बात सन 1962 -63 की च, जब मिन अपणु पैलू गड्वाली में नाटक " औंसी की
रात " लेखी अर वेथै मंच माँ प्रस्तुत करी ! हैका दिन दिखान बाद ऊ मथ मीनू मेरा
आफिश माँ मै थै मिलणु एनी, वे समय व सफ़ेद कुर्ता -गंदेलु पेजमा अर नंगा खुटा
( बिना जुता ) म छा ! यदपि उसे एक बार गडवाल भवन माँ इनी चलदा चलदा भेंट हुई
छे ! वे समय वख चंदरसिंह गढ़वालीजी अपनी धर्मपत्नी व बचो का साथ च रुक्या !
जब हमरी मुलाक़ात हवे त, वो ठेट गौकु सी मानीख छा लगणा !
भीष्म कुकरेती- जरा कन्हैया लाल डंडरियाल जी क व्यक्तित्व तैं कम से कम शब्दों ब्वालादी !
पाराशर गौड़: कन्हैया लाल डंडरियाल जीक व्यक्तित्व थै नापणोक वास्ता एक विशेष दृष्टि की
जरूत चैन्द ! वो दिख्नमाँ जतका साधारण लगदा छा उत्की उकी कबिता शसक्त छ !
वो शब्दों का घट छा ! कलम अर चित्रण का मठ छा ! शब्द उनकी उन्गुल्यू इस्सरो
नाचदा छा ! उनकी सबसे बड़ी खूबी छेकी वो जू भी बात बुलन चाणा छन वो आम
आदमी की भासामा लेखी की बड़ी सरलता वे थै प्रस्तुत करदा छा जैकू सीधु प्रभाव
सुन्न वालो पर पुदुद रा !
भीष्म कुकरेती- उंका दगड आपै साहित्यिक मेल मिलाप का बारा मा खुलासा कारदी .
पाराशर गौड़ :जन मिन बोली की नाटक देखनक बाद मेरा आफिस माँ एयेने ! नाटक पर बहश का
बाद वो सीधे सीधे कबिता पर अयेने ! उ दिनों मी गड्वाली माँ गीत लिखदो छो जोंथई
आकाशबानी से जगदीश थोंदियाल व लीला नेगी गान्दा छा ! उन मेरा गीत आकाशवाणी
दिल्ली भी सुणा छा ! तब उन बोले छो..आप अछा गीतकार छा त आप गड्वाली माँ
कविता क्यों न करदा ? मीन बोले कोशिश करुलू ! इतुगु क्या बुन छो झट से बोलिनी
की, ऐ इत्व्वरोकु तिमारपुरमा मेशानंद गौड़जी घोरमा एक रातकी बैठक च टक लागैकी
ऐजया ! मी वाख ग्यु ! हम वख़म चार य पाच आदिम छा जौन्थई मी नि पच्याणदू छो
ख़ैर परिचय होए .. खुगशालजी" बोल्या ", महेशानान्दजी गौड़, रमेश घीडियाल वो,
अर मी ! यु हमरु सबसे पैली कबिता गोष्ठी छे ,अर बतुओर एक कबी का पहलु परिचय
भी ! यत छे शुरवा ... यका बादत हम एक हैनका बहुत ही कर्रीब एगे छा ! पैलीत हम
तिमारपुरमाँ मैनामा एक दो बार मिल्ल्दा छा ! वेका बाद कुछ और आदमी जुड़नी
जनकी नेत्र सिंह असवाल / गणेश शास्त्रीजी, लोकेश नवानी ,बडोला जी, विनोद उनियाल,
चन्द्रसिंह रही आदि !
हमने तब एक संस्था बनाई " गड भारती " वेकी तत्वाधान मी " फंची " का
परकशन ! दुसुरु " धै " साथ कबियो की कबिता संघ्रह गणेश शास्त्री जी ने यु द्वीयु
कु सम्पादन करी ! इ " गड भारती" संस्था का ही तत्वाधान माँ ही, गड्वाली साहित्यकु
सबसे पहलु " स्वर्गीय पंडित टीकाराम गौड़ " डंडरियाल जी की "अन्ज्वाल" पर उथे
दिएगे छो !
भीष्म कुकरेती- जब ड़ी.सी.एम् मिल बंद ह्व़े त फिर कन्हैया लाल डंडरियाल जी न नौकरी किलै नि
खोजी?
पाराशर गौड़ - जबाब सीधु युच की, जब आदिम ४० कु- हवे जान्दत, नौकरी का मामल माँ वैथे कवी
ज्याद ताबजू नि देन्दु ! डंडरियाल जी ज्यादा पद्या लिख्या त नि छा जू कुवी स्किल
जोब का वास्ता जांदा ये वास्ता जख्तक उन समझी की बात अब अग्वाडी बन से राइ
( नौकरी का मामला माँ ) वो हताश से हवे ह्वेगे छा, पर हिमंत से ना ! उन घोर
घोर जैकी चा की पत्ती बेचिनी पर केका अग्वाडी हाथ ने फैलाई ..वो एक खुदार मनिखी
छा !
भीष्म कुकरेती -इन बुले जांद बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क बेटी ब्यौ गढ़वाळी कवि जया नन्द
खुगसाल 'बौळया' जी नौना दगड हूण मा आपकी बि भागीदारी च. क्या या बात सै च?
पाराशर गौड़ - भागीदारी त मिनी बोलुलू पर हां, एतुगु जरुर बुलुलुकी मीसे जू भी बन पड़ी एक मित्र
का नाता मिल काया ! वे समय पर उनकी स्तिथि जरा खराब छे अर इनु समय माँ
अगर मित्र मित्रक कामा नि आन्द त , वो मित्र ही क्या ?
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी अर गढ़वाळी कवि जया नन्द खुगसालऔ कवितौं मा कुछ खास इकजसिपन /साम्यता छन बल जन कि कम आमदनी वलु प्रवाशी क गरीबी क संघर्ष, गढ़वाळ अर दिल्ली क जीवन का बीचऐ दुरी तैं ख़तम करणो एक अजीब सी परेशानी, गढवाळ अर दिल्ली मा मानसिक , भौतिक, आर्थिक स्तिथियुं तैं बैलंस करणे कसमस , असलियतवादी कवितौं पर जादा जोर , चबोड्या शैली आदि . क्या या बात सै च?
पाराशर गौड़ - सै ही ना बल्कि सोला आना सच ! द्वीयु की कबिता पहाड़ व पहाड़ से नौकरी की
तलाश में भैर आया प्र्बासियो की खैर त्रास्ती मज़बूरी की साफ़ झलक मिल्द ! बोल्या जी
वो बात नि छे !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कविता रचणो ढंग ढाळ देख्युं च. कै तरां अर कन परिस्थिति मा वो कविता गंठयांदा छया ?
पाराशर गौड़ - उन छोटी छोटी आंख्युं , बड़ा बड़ा कोथिक देखिनी ! वे कोथिकोमा कै किसमा का
उतार चड़ाव छा ! बकत की थपेड़ों ने उनकी राचनो थै वो धार दे ,वो धार दे जैकी बजह से
आज जब हम उनकी कबिता पडदा त इन लगाद की ये मनिख्ल कतका देखि
अर भोगी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कविता खौळ (कविता संग्रह) छपाण मा बि आप सरीखों हाथ होंदु छौ. क्या या बात सै छन?
पाराशर गौड़- मेरी भरसक कोशिश इ राय की जू क्वी भी अपणी माँ बोली की भी सेवा करद या कनु
च, अगर वैथे कवी मओं मदद चैन्द त मी अपनी तरफ बीटी जू भी हवे सका वेकि मओं
मदद करे जा ! उकी मदद जरुर काया उथे गड्वालीमाँ पैलू गड्वाली साहित्यिक पुरुष्कार "
स्वर्गीय पंडित टीकाराम गौड़ साहितिक पुरष्कार " से समानित कैरिकी दगड म कुछ
आर्थिक मदद कैरी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं यांको मलाल छौ (जु नागराजा मा बि लिख्युं च, सैत ) बल धनाभाव क कारण नागराजा, अबोध जी क महाकाव्य भुम्याळ से पैलो नि छाप. क्या बात सै च?
पाराशर गौड़- सत्य बचन ! नागराजा भुम्याल से बहुत पैली उन लेखी याली छो ! उकु और मेरु
दुर्भाग्य ही छो की मी १९८३ ८४ माँ उनसे दूर ह्वेगे छो ! अगर मी रैंदु त यु महा काब्य वे
से पैली छपी जादू ! पर हूनी वल थै क्वी नि रोकी सकद ! जन अज्वाल थै समान मिली छो
वनी ये महा काब्य थै भी एक यु समान मिली जांदू !
भीष्म कुकरेती- महा कवि भगत बि छया अर सैत च ऑन पर क्वी दिवता बि आंदो छौ. डा. नन्द किशोर ढौंडियालौ जी न इनी ल्याख, गिरीश सुंदरियालौ न बि इनी ल्याख. आप त उंक दगड भौत रैन आपक क्या राय च?
पाराशर गौड़- जी हां ! नाराज आन्दु छो उन पर !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कवितौं पर आपकी विवेचना क्या बोलदी!
पाराशर गौड़- बिबेचना का वास्ता एक लम्बू समय चैद बस इतुगु ही बुलुलूकी उकी हर कबिता मेरा
पहाड़ की तस्बीर छन, एक आयना च जैमा लोग अपनी अनवार देख सक्दिन !
भीष्म कुकरेती- मिं देखी अबि बि भौत सा कवि कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ढंग ढौळ (शैली) तैं अपन्यौणा रौंदन जब कि आजै मांग च बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ब्युन्तौ विकास करे जाओ. क्या बात च कि हरीश जुयाल तैं छोड़िक इन कम इ हूणु च ?
पाराशर गौड़- शैली थै अपनानू कवी गलत बात नि, पर नक़ल कनी व अछी बात नि !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं पैलो टीका राम गौड़ पुरुष्कार मील. टीका राम गौड़ पुरुष्कार का बारा मा संक्षेप मा बतावा त ज़रा !
पाराशर गौड़- टीका राम गौड़ पुरुष्कार गड्वाली माँ उ लुख थै दिए गया या दिए जान्द जौन पहाड़ी
भाषा गध्य पद्य गीत संगीत नाटक अबिनय माँ काम करी ! ये से अभी तक
कन्हयालाल डंडरियाल जी, चंदर सिंह रही, कंकालजी, शारदा नेगी मवारी-गारी का लेखक
घिल्डियाल जी आदि लोग छन! गड्वाली माँ गड्वाली साहित्यकु - यु पौलू पुरुष्कार च जैमा
२००० रुपया अर शाल दिए जान्द !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी बारा मा कुछ हौरी जानकारी दी न चैल्या क्या?
पाराशर गौड़- वो एक बहुत ही सुल्ज्या अवम दूरदर्शी व्यक्ति छा !
भीष्म कुकरेती- नवाड़ी कवियों तैं कन्हैया लाल डंडरियाल जी से क्या सिखण चएंद ?
पाराशर गौड़-अपनी माँ बोली थै नि भूल्या ! माँ का बाद, बोली ही सबसे पवित्र अवम सबसे उत्तम हुन्द !
पाराशर गौड़-
डंडरियालौ बारा मा जाणण चांद !
पाराशर गौड़ : कन्हयालाल जी मेरा पहाड़ का कालीदास छन ! वो मेरा पाहाडी साहित्य का
जन कुमाउनी का महान कबि गुमान कवी छा, उनी दंद्रियाल्जी भी वी समक्ष का गड्वाली
कवि छन ! आज तक कु जत्गा भी गड्वाली कवित्या कु साहित्य मिल्द जुमा की हमरा
पूरान महान कबेयु जौं को योगदान च उत छहीच पर , आज का सन्धर्व माँ अगर
गड्वाली की कविता कु बिबेचन, वेकु प्रभाऊ/सम समायाकी कु कतका असर हमारा व
हमारी जन जीवन पर असर करद वे सन्धर्व माँ कनाह्यालाल्ल डंड्रियलजी सर्वोपरि
ऊकी कविता...कविता नीन, वो अपना आपमाँ मेरा पहाड़ कु दर्पण छन ! जू
कबिताक माध्यम से पहाड़ की सांस्क्रतिक /सामाजिक व आर्थिक जीवन कु स्वरुप
आम आदम थै दिख्न्दी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी से मुलाक़ात मा आपन उंको विषय मा क्या धारणा बणे छे
अर क्या वै इ धारणा पैथर बि रै?
पाराशर गौड़: ये बात सन 1962 -63 की च, जब मिन अपणु पैलू गड्वाली में नाटक " औंसी की
रात " लेखी अर वेथै मंच माँ प्रस्तुत करी ! हैका दिन दिखान बाद ऊ मथ मीनू मेरा
आफिश माँ मै थै मिलणु एनी, वे समय व सफ़ेद कुर्ता -गंदेलु पेजमा अर नंगा खुटा
( बिना जुता ) म छा ! यदपि उसे एक बार गडवाल भवन माँ इनी चलदा चलदा भेंट हुई
छे ! वे समय वख चंदरसिंह गढ़वालीजी अपनी धर्मपत्नी व बचो का साथ च रुक्या !
जब हमरी मुलाक़ात हवे त, वो ठेट गौकु सी मानीख छा लगणा !
भीष्म कुकरेती- जरा कन्हैया लाल डंडरियाल जी क व्यक्तित्व तैं कम से कम शब्दों ब्वालादी !
पाराशर गौड़: कन्हैया लाल डंडरियाल जीक व्यक्तित्व थै नापणोक वास्ता एक विशेष दृष्टि की
जरूत चैन्द ! वो दिख्नमाँ जतका साधारण लगदा छा उत्की उकी कबिता शसक्त छ !
वो शब्दों का घट छा ! कलम अर चित्रण का मठ छा ! शब्द उनकी उन्गुल्यू इस्सरो
नाचदा छा ! उनकी सबसे बड़ी खूबी छेकी वो जू भी बात बुलन चाणा छन वो आम
आदमी की भासामा लेखी की बड़ी सरलता वे थै प्रस्तुत करदा छा जैकू सीधु प्रभाव
सुन्न वालो पर पुदुद रा !
भीष्म कुकरेती- उंका दगड आपै साहित्यिक मेल मिलाप का बारा मा खुलासा कारदी .
पाराशर गौड़ :जन मिन बोली की नाटक देखनक बाद मेरा आफिस माँ एयेने ! नाटक पर बहश का
बाद वो सीधे सीधे कबिता पर अयेने ! उ दिनों मी गड्वाली माँ गीत लिखदो छो जोंथई
आकाशबानी से जगदीश थोंदियाल व लीला नेगी गान्दा छा ! उन मेरा गीत आकाशवाणी
दिल्ली भी सुणा छा ! तब उन बोले छो..आप अछा गीतकार छा त आप गड्वाली माँ
कविता क्यों न करदा ? मीन बोले कोशिश करुलू ! इतुगु क्या बुन छो झट से बोलिनी
की, ऐ इत्व्वरोकु तिमारपुरमा मेशानंद गौड़जी घोरमा एक रातकी बैठक च टक लागैकी
ऐजया ! मी वाख ग्यु ! हम वख़म चार य पाच आदिम छा जौन्थई मी नि पच्याणदू छो
ख़ैर परिचय होए .. खुगशालजी" बोल्या ", महेशानान्दजी गौड़, रमेश घीडियाल वो,
अर मी ! यु हमरु सबसे पैली कबिता गोष्ठी छे ,अर बतुओर एक कबी का पहलु परिचय
भी ! यत छे शुरवा ... यका बादत हम एक हैनका बहुत ही कर्रीब एगे छा ! पैलीत हम
तिमारपुरमाँ मैनामा एक दो बार मिल्ल्दा छा ! वेका बाद कुछ और आदमी जुड़नी
जनकी नेत्र सिंह असवाल / गणेश शास्त्रीजी, लोकेश नवानी ,बडोला जी, विनोद उनियाल,
चन्द्रसिंह रही आदि !
हमने तब एक संस्था बनाई " गड भारती " वेकी तत्वाधान मी " फंची " का
परकशन ! दुसुरु " धै " साथ कबियो की कबिता संघ्रह गणेश शास्त्री जी ने यु द्वीयु
कु सम्पादन करी ! इ " गड भारती" संस्था का ही तत्वाधान माँ ही, गड्वाली साहित्यकु
सबसे पहलु " स्वर्गीय पंडित टीकाराम गौड़ " डंडरियाल जी की "अन्ज्वाल" पर उथे
दिएगे छो !
भीष्म कुकरेती- जब ड़ी.सी.एम् मिल बंद ह्व़े त फिर कन्हैया लाल डंडरियाल जी न नौकरी किलै नि
खोजी?
पाराशर गौड़ - जबाब सीधु युच की, जब आदिम ४० कु- हवे जान्दत, नौकरी का मामल माँ वैथे कवी
ज्याद ताबजू नि देन्दु ! डंडरियाल जी ज्यादा पद्या लिख्या त नि छा जू कुवी स्किल
जोब का वास्ता जांदा ये वास्ता जख्तक उन समझी की बात अब अग्वाडी बन से राइ
( नौकरी का मामला माँ ) वो हताश से हवे ह्वेगे छा, पर हिमंत से ना ! उन घोर
घोर जैकी चा की पत्ती बेचिनी पर केका अग्वाडी हाथ ने फैलाई ..वो एक खुदार मनिखी
छा !
भीष्म कुकरेती -इन बुले जांद बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क बेटी ब्यौ गढ़वाळी कवि जया नन्द
खुगसाल 'बौळया' जी नौना दगड हूण मा आपकी बि भागीदारी च. क्या या बात सै च?
पाराशर गौड़ - भागीदारी त मिनी बोलुलू पर हां, एतुगु जरुर बुलुलुकी मीसे जू भी बन पड़ी एक मित्र
का नाता मिल काया ! वे समय पर उनकी स्तिथि जरा खराब छे अर इनु समय माँ
अगर मित्र मित्रक कामा नि आन्द त , वो मित्र ही क्या ?
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी अर गढ़वाळी कवि जया नन्द खुगसालऔ कवितौं मा कुछ खास इकजसिपन /साम्यता छन बल जन कि कम आमदनी वलु प्रवाशी क गरीबी क संघर्ष, गढ़वाळ अर दिल्ली क जीवन का बीचऐ दुरी तैं ख़तम करणो एक अजीब सी परेशानी, गढवाळ अर दिल्ली मा मानसिक , भौतिक, आर्थिक स्तिथियुं तैं बैलंस करणे कसमस , असलियतवादी कवितौं पर जादा जोर , चबोड्या शैली आदि . क्या या बात सै च?
पाराशर गौड़ - सै ही ना बल्कि सोला आना सच ! द्वीयु की कबिता पहाड़ व पहाड़ से नौकरी की
तलाश में भैर आया प्र्बासियो की खैर त्रास्ती मज़बूरी की साफ़ झलक मिल्द ! बोल्या जी
वो बात नि छे !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कविता रचणो ढंग ढाळ देख्युं च. कै तरां अर कन परिस्थिति मा वो कविता गंठयांदा छया ?
पाराशर गौड़ - उन छोटी छोटी आंख्युं , बड़ा बड़ा कोथिक देखिनी ! वे कोथिकोमा कै किसमा का
उतार चड़ाव छा ! बकत की थपेड़ों ने उनकी राचनो थै वो धार दे ,वो धार दे जैकी बजह से
आज जब हम उनकी कबिता पडदा त इन लगाद की ये मनिख्ल कतका देखि
अर भोगी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कविता खौळ (कविता संग्रह) छपाण मा बि आप सरीखों हाथ होंदु छौ. क्या या बात सै छन?
पाराशर गौड़- मेरी भरसक कोशिश इ राय की जू क्वी भी अपणी माँ बोली की भी सेवा करद या कनु
च, अगर वैथे कवी मओं मदद चैन्द त मी अपनी तरफ बीटी जू भी हवे सका वेकि मओं
मदद करे जा ! उकी मदद जरुर काया उथे गड्वालीमाँ पैलू गड्वाली साहित्यिक पुरुष्कार "
स्वर्गीय पंडित टीकाराम गौड़ साहितिक पुरष्कार " से समानित कैरिकी दगड म कुछ
आर्थिक मदद कैरी !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं यांको मलाल छौ (जु नागराजा मा बि लिख्युं च, सैत ) बल धनाभाव क कारण नागराजा, अबोध जी क महाकाव्य भुम्याळ से पैलो नि छाप. क्या बात सै च?
पाराशर गौड़- सत्य बचन ! नागराजा भुम्याल से बहुत पैली उन लेखी याली छो ! उकु और मेरु
दुर्भाग्य ही छो की मी १९८३ ८४ माँ उनसे दूर ह्वेगे छो ! अगर मी रैंदु त यु महा काब्य वे
से पैली छपी जादू ! पर हूनी वल थै क्वी नि रोकी सकद ! जन अज्वाल थै समान मिली छो
वनी ये महा काब्य थै भी एक यु समान मिली जांदू !
भीष्म कुकरेती- महा कवि भगत बि छया अर सैत च ऑन पर क्वी दिवता बि आंदो छौ. डा. नन्द किशोर ढौंडियालौ जी न इनी ल्याख, गिरीश सुंदरियालौ न बि इनी ल्याख. आप त उंक दगड भौत रैन आपक क्या राय च?
पाराशर गौड़- जी हां ! नाराज आन्दु छो उन पर !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कवितौं पर आपकी विवेचना क्या बोलदी!
पाराशर गौड़- बिबेचना का वास्ता एक लम्बू समय चैद बस इतुगु ही बुलुलूकी उकी हर कबिता मेरा
पहाड़ की तस्बीर छन, एक आयना च जैमा लोग अपनी अनवार देख सक्दिन !
भीष्म कुकरेती- मिं देखी अबि बि भौत सा कवि कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ढंग ढौळ (शैली) तैं अपन्यौणा रौंदन जब कि आजै मांग च बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ब्युन्तौ विकास करे जाओ. क्या बात च कि हरीश जुयाल तैं छोड़िक इन कम इ हूणु च ?
पाराशर गौड़- शैली थै अपनानू कवी गलत बात नि, पर नक़ल कनी व अछी बात नि !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं पैलो टीका राम गौड़ पुरुष्कार मील. टीका राम गौड़ पुरुष्कार का बारा मा संक्षेप मा बतावा त ज़रा !
पाराशर गौड़- टीका राम गौड़ पुरुष्कार गड्वाली माँ उ लुख थै दिए गया या दिए जान्द जौन पहाड़ी
भाषा गध्य पद्य गीत संगीत नाटक अबिनय माँ काम करी ! ये से अभी तक
कन्हयालाल डंडरियाल जी, चंदर सिंह रही, कंकालजी, शारदा नेगी मवारी-गारी का लेखक
घिल्डियाल जी आदि लोग छन! गड्वाली माँ गड्वाली साहित्यकु - यु पौलू पुरुष्कार च जैमा
२००० रुपया अर शाल दिए जान्द !
भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी बारा मा कुछ हौरी जानकारी दी न चैल्या क्या?
पाराशर गौड़- वो एक बहुत ही सुल्ज्या अवम दूरदर्शी व्यक्ति छा !
भीष्म कुकरेती- नवाड़ी कवियों तैं कन्हैया लाल डंडरियाल जी से क्या सिखण चएंद ?
पाराशर गौड़-अपनी माँ बोली थै नि भूल्या ! माँ का बाद, बोली ही सबसे पवित्र अवम सबसे उत्तम हुन्द !
पाराशर गौड़-
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