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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Wednesday, June 27, 2012

एक लेख जिसने कई बहसों /चर्चाओं को जन्म दिया

घपरोळ
                                                च छ थौ
                                    भीष्म कुकरेती
[यह लेख गढ़ ऐना १३ अप्रैल १९८९ व धाद, जुलाई १९९० में प्रकाशित हुआ था. इस लेख ने कई चर्चाओं को जन्म दे दिया था )
--- हाँ ! त !
थौ---हाँ -हाँ त
----हाँ ! हाँ भै हाँ !
छ- त ठीक ?
थौ- बिलकुल ठीक !
च-- भै अब रयुं बि क्या ?
छ- लगै द्यूं पवाण (शुरुवात करना ) ?
थौ--- हाँ आपी पवाण लगावा .
--- भै आप लगैल या आप लगैल क्या फरक पड़दु ?
छ- हाँ त मै सणि ब्वाळि गढवळि का खांमांखां मिलि छौ .
थौ-- छौ ना थौ ब्वालो
-- अर मै तै थौ से छौं च '
छ गौ मांस समान च .
- अर मै पर च से दमळ उपड़ी जान्दन.
थौ से मेरी द्वी कुली खाण बिसे जान्दन
थौ --अर मी च दिखुद त चक्कर आन्दन .
अर छौ सूणीक छरका लगि जान्दन
- म्यार चुसणा से .मीन त च इ बुलण
छ- चुसणा त तुम दुयूं तै चुसण पोडल. जब मी तर्क अर वितर्क से बतौल कि असली गढवळि 'छ' छ.
सिरीनग्र्या छ , अर गढवाळ को केंद्र श्रीनगर छौ.
थौ -तुम द्वी कुवा मिंढक छवां . गढ़वाळै आख़री राजधानी टिहरी थै.
- अरे रै होल्या राजधानी श्रीनगर या टीरी . हमर अडगै (इलाका) से त फार (दूर ) इ छया.हम फर कैकु बि रौब दाब नि छयो. हमकुण त नामो क राजधानी ...
छ- अबै प्रभाव की बात जाणि दे . राजधानी त राजधानी होंद.
थौ- टीरी थै राजधानी.
- कखि बि छे हम से त फार इ छे राजधानी .
छ- निर्भागी ! हमारो क्या दोष कि तुमर इलाका से दूर छै राजधानी?
थौ- दुर्जनों ! मै बि त ई इ बखणु थौ अबि तलक .
-- ये दांत तोड़ी द्योलू हाँ मि
छ- आँख फोड़ी द्योलू हाँ मि
थौ- नकद्वड़ फोड़ी द्योलू हाँ मि .
गढवळि-- ए दगड्यो ! किलै लड़णा छंवां ? किलै बौळयाणा छवां ?
- गढवळि भाषौ माणापाथिकरण मतबल मानकीकरण की मीटिंग च आज
छ- हाँ ! जब तलक माणापाथिकरण नि होलू बात अगनै कनै बढ़लि !
थौ- हाँ याँ पर मी बि सहमत छौं बगैर स्टैंडर्डा इजेसन क गढवाली लिखे इ नि जाण चयेंद. बगैर मानकीकरण से बडी परेशानी होलि
- हाँ हाँ बगैर माणापाथिकरण कु गढवळि भाषौ विकास हूँ मुश्किल च
छ- सै बात छ.
थौ- एक दम सै
गढवळि-- अच्छा च कु मतलब ?
छ- सलाणि छ जगा फर च लगांदन कबि कबि, कखि क खि
थौ- च माने छ
गढवळि-- थौ माने ?
- थौ माने छौ
छ- छ कु भूतकाल थौ ...
गढवळि-- लडै किलै?
सब्बि - अर लडै ? माणापथिकरण नि होलू त भाषा कन कैक होलि ? पैल मानकीकरण हूण चयेंद. तब गढवाली मा लिखेण चयेंद.
गढवळि-- ठीक ! त इन बतावा बल तुमन अब तलक कथगा ल्याख अर क्या ल्याख ?
- अरे ! लिखणा क मी तै जरुरत इ क्या च? लेखिक हूंद क्या च ?
छ : जु हम लिखदा इ त बहस किलै करण छौ? बहसौ कुणि टैम कख हूण छौ ?अर लेखिक क्वी मै तै तगमा थुका मीलल ?
थौ- लेखिक मीन अपण टाईमो बर्बादी करण ? अर लिखन कख ? क्वी ना त अखबार, ना क्वी माध्यम अर ना इ क्वी बंचनेरुं क्वी ढब अर ना पाठ्कुं क्वी बिज्वाड़!
गढवळि-- औ ! त जरा इन बथावदी कि तुम करदा क्या क्या छवां ?
- मि लगीँ पौद तै उपाड़िक फुंड भेळ चुलांदु
छ- मि , क्वी सीदो बाटो जाणो ह्वाऊ त मि वै तै भेळ उन्द धकल्याणो काम करदु.
थौ- लोगूँ कि पकीं फसल देखिक म्यरा अंदड़ म्वाट ह्व़े जान्दन . मि पकीं फसल पर बणांक लगान्दु .
गढवळि-- औ त गाडौ हाल इ छन. जावा पैल अपण अपण इलाका क बोल्युं मा खूब ल्याखो तब माणापथिकरण/मानकीकरण /स्टैंडर्डाइजेसन की छ्वीं लगाओ. भैंस गैबण ह्वाई नी च अर छ्वीं लगणा छन बल प्यूंस कै भद्वल पर बौणल!
-नोट-
१-इस लेख के विरुद्ध में श्री भगवती प्रसाद नौटियाल जी ने धाद , ओक्टोबर १९९० में 'पुरु दिदा ' नाम से व्यंग्य किया था बकौल डा अनिल डबराल," भगवती प्रसाद नौटियाल का व्यंग्य 'पुरु दिदा' प्रकाशित हुआ जिसमे पुरू नामक पत्र के माध्यम से भीष्म कुकरेती का उपहास किया गया-- जै कु नौ त भीसम जन बुल्यो भीसम पितामह को ओउतार हो पर काम देखा दों - कुल लड्योण्या छ्वीं ! अरे छोरा पैलि खै त ळी तब बाँध कुटरि. लेख्दी दां त बौंहड़ पडया रौंदन अर छ्वीं हो नी छन मानकीकरण की...
डा. अनिल लिखते हैं कि भगवती प्रसाद ने भीष्म कुकरेती को इस तरह नोचा लेकिन भीष्म कुकरेती ने 'घपरोळ' स्तम्भ के 'च छ थौ' शीर्षक में यह बात यूँ कही थी"
च - मि लगीँ पौद तै उपाड़िक फुंड भेळ चुलांदु
छ- मि , क्वी सीदो बाटो जाणो ह्वाऊ त मि वै तै भेळ उन्द धकल्याणो काम करदु.
थौ- लोगूँ कि पकीं फसल देखिक म्यरा अंदड़ म्वाट ह्व़े जान्दन . मि पकीं फसल पर बणांक लगान्दु .
२- धाद में फिर इस विषय पर अबोध जी, बाबुलकर, देवेन्द्र जोशी जी व लोकेश जी कि लम्बी बहसे हुईं अंत में लोकेश जी ने खा - बन्द क्रा मानकीकरण कि छ्वीं .
३- गढ़ ऐना में श्री अबोध बहुगुणा , श्री राजेन्द्र जुयाल व डा. भगवती प्रसाद जी कि बहस हुयी थी.
सन्दर्भ - डा अनिल डबराल - गढ़वाली गद्य परम्परा , २००७

Copyright@ Bhishma Kukreti 28/6/2012

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