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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Monday, June 25, 2012

********वन नीति *******

कवि- डा, नरेंद्र गौनियाल
[वर्तमान वन नीति के खिलाफ गढ़वाली कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ कुमाउनी   कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ उत्तराखंडी कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ मध्य हिमालयी कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ हिमालयी कविता ;वर्तमान वन नीति के खिलाफ उत्तर भारतीय कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ भारतीय कविता ;  वर्तमान वन नीति के खिलाफ सार्क देशीय कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ एशियाई कविता ]
 
किन नीतिकारों ने
पहाड़ को
चीड के जंगलों से
ढक दिया है.
यहाँ के मूल वृक्ष
बांज,बुरांश,तिलंज को
हर्चाने का
किसने इन्हें
हक़ दिया है
रूखे हुए जंगल
सूख गए जल स्रोत
जन मानस हैरान
वन पालने वाला
वनों के निकट रहने वाला
गरीब किसान परेशान

नगर ,महा नगर में
बनती है नीति
वहाँ रहने वालों के अनुकूल
तो फिर
वन नीति
वनों के निकट रहने वालों
वनों को लगाने वालों
वनों को पालने वालों के
अनुकूल क्यों नहीं

जहां प्रदूषण है
प्रदूषणकारी  हैं
वहाँ कोई मानक नहीं
कटते रहते हैं हजारों पेड़
बनते रहते हैं बेहिसाब
कंक्रीट के भवन 

लेकिन पहाड़ में
अपने लगाये वन में भी
गाय-बकरी नहीं चर सकती
नहीं उठाया जा सकता
एक तिनका भी

जंगल के बीच
सदियों से गुजरने वाले रास्ते
चौड़े नहीं हो सकते
हजारों की आवादी
मीलों दूर पैदल
भटकने के लिए मजबूर
लेकिन
सड़कें नहीं बन सकती.

वन अधिनियम
सिर्फ हमारे लिए
पेड़ नहीं हटेंगे.
जमीन नहीं खुदेगी
अधूरी पड़ी सड़कें
आगे नहीं बढेंगी

पहले भी जंगल थे
जंगल से लगे गाँव थे
गाँव से लगे चारागाह थे
एक व्यवस्था थी
समुचित
न कोई दिक्कत
न कोई परेशानी

किस नीति के तहत
पूरे पहाड़ में
चीड के जंगल लगाये
आज खेतों के बीच में 
घर-आँगन में
चीड के भयंकर वन
उग आये हैं
जंगली जानवर
बन्दर,सूअर ,बाघ ,भालू
घर के अन्दर तक
घुस आये हैं

चारागाह ख़त्म हो गए
चीड की विकरालता ने
सम्पूर्ण पर्वत श्रृंखला पर
अपनी जड़ें जमा ली हैं
चौड़ी पत्ती के पारंपरिक वनों पर
दानव रुपी चीड का
तोप लगने लगा है
बांज,बुरांश,तिलंज आदि का
लोप होने लगा है

यहाँ का किसान
अपने पुश्तैनी खेत के किनारे पर खड़े
चीड का एक कतरा
अपने घर की टूटती धूर के लिए
नहीं काट सकता
घर के कच्चे फर्श-दीवारों को
लीपने के लिए
लाल-सफ़ेद मिटटी का एक ढेला
नहीं उठा सकता

पीढ़ियों से
जंगलों के बीच
पैदा हुए
बढे-पले लोग
जंगल से
एक पत्ता नहीं बीन सकते

यहाँ के रास्ते
चौड़े नहीं हो सकते
सड़कें नहीं बन सकती
क्योंकि
पर्यावरण का मामला है
वन अधिनियम लागू है

ये कैसी
कुरीति है
कुनीति है
वन एवं पर्यावरण को
सर्वाधिक सुरक्षित
रखने वालों पर
पर्यावरण रक्षा की
पड़ रही है
सबसे अधिक मार
उनकी अपनी जरूरत पर
नहीं कट सकती है
पेड़ की एक डाल
मगर  
स्वार्थवश
कुनीतिवश
सरकारी मुहर लगने से
चल सकती हैं हजारों आरियाँ
अनगिनित पेड़ों पर.

           डॉ नरेन्द्र गौनियाल ...
[वर्तमान वन नीति के खिलाफ गढ़वाली कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ कुमाउनी कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ उत्तराखंडी कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ मध्य हिमालयी कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ हिमालयी कविता ;वर्तमान वन नीति के खिलाफ उत्तर भारतीय कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ भारतीय कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ सार्क देशीय कविता ; वर्तमान वन नीति के खिलाफ एशियाई कविता ]

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