स्व. पार्थ सारथी डबराल हिंदी के जाने माने व्यंग कार थे उनकी पुस्तक 'नानी मरी दादी युग की' एक युगीन कृति है
गढवाली में भी पार्थ सारथी डबराल ने चर्चरी-बर्बरी कविताएँ लिखीं थीं .
उनकी शब्द सामर्थ्य और कवित्व की एक झलक देखिये --
----कुछ्ना---
ब्वारी नौ च रुणक्या, अर ब्वारिक नौ च बिछना
सरा रात भर भडडू बाजे, खाण पीण को कुछ्ना
---निरपट्ट----
दुकानी मा /धण्या जीरो लीणा का बाद,
मीन दुकानदार तै पूछ - अर लौंग क्या भाव छ
वैन बोले पांच सौ रूप्या कीलो
पांच सौ रूप्या सुणिक मी घंघणे ग्यों
फिर मीन निरास ह्वैकी ब्वाल -
'हे राम दा, अब ट लौंग
कज्याण्यु की ही नाक पर दिखेली
मसालूं की लौंग कखन द्यखणै
वीं दुकानिम इ एक चबोड्या बुडड़ी बैठी छे ,
वा क्या ब्वाद- भुला ई नै फैशन मा ट
कज्याण्यु की नाक पर बी लौंग नि दिखेंदी
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