भट्ट जी ! जु तुम नि पढ़दवां त यांको मतलब नी च कि हैंको लिख्वार लिखणु नी च !
(यदि कोई दुसरे साहित्यकार के साहित्य को नही पढ़ पाता तो इसका अर्थ नही साहित्य नही लिखा जा रहा है ! )
('संकल्प ' के लेख 'गढवलि गद्य लेखन कु इतिहास' पर एक कडुवी टिप्पणी )
आदरणीय प्रेम लाल भट्ट जी !
सादर नमस्कार .
आपको
लेख 'गढवलि गद्य लेखन कु इतिहास' , संकल्प (दिल्ली २०१२ पृष्ठ १८-२१) बांच
अर अफसोस ह्व़े कि आप सरीखा साहित्यकार बगैर पढया साहित्यौ इतिहास पर कलम
चलाणा छंवां.
खौंळेणै बात च कि आपकी नजर जादातर दिल्ली य एकाद गढवाल क
गद्यकारों पर ही गे अर आपन इतिहासकार की ज्वा जुम्मेवारी होंद वां पर ही
बट्टा लगै दे. आप बहुगुणा जी क 'गाड मट्येकी की गंगा' से आप अग्वाड़ी इ
नि बढया । 'गाड मट्येकी की गंगा' द्वी चार नाम जन कि नरेंद्र कठैत,
वीरेन्द्र पंवार, वीना बेंजवाल, प्रीतम अपछ्याण , कुलानन्द घनसाला ओम
प्रकाश सेमवाल जोडिक आपन गढवाली साहित्य को गद्य इतिहास ही लिखी दे.
अफ़सोस च कि 'गाड मट्येकी की गंगा' सन १९७५ ई. मा छपी छे अर
वांको परांत क्या नरेंद्र कठैत, वीरेन्द्र पंवार, वीना बेंजवाल, प्रीतम,
कुलानन्द घनसाला ओम प्रकाश सेमवाल इ गढवाली गद्य मा छन ?
गुरु जी क्या आप सरीखा सयाणो , दानो लिखंदेर तै बथाणै जरुरत
च कि इतिहास बैठिक कविता जन नि लिखे जांद बल्कण मा लोगु से संपर्क कौरिक
लिखे जांद?
अब जरा मी बथांदु कि आप सयाणा लोक ह्वेक बि कम मेहनती , कमअकली काम करण लग्यां छंवां
मोहन लाल नेगी क गढवाली कहान्यु तै अग्वाड़ी बढ़ाण मा च उथगा
नाम आज बि कै हैंको कथाकार को नी च . आज त थ्वडा भौत माध्यम अर
साहित्यकारों कि अच्छी नौकरी च त गढवळी साहित्य छपण सरल च फिर उत्तराखंड
सरकार को अनुदान बि उपलब्ध च . पण वै बगत जब मोहन लाल नेगी न किताब छपैन त
बड़ो कठण काम छौ.
क्या आप गढवाली कथाओं बिटेन भग्यान भगवती प्रसाद जोशी क नाम बगैर गढवाळी कथाओं कि कल्पना कौरी सक्दवां ?
क्या आप नि जाणदवाँ कि काली प्रसाद घिल्डियाल क मिळवाक बिसरी गवां जौन गढवळी कथाओं मा विचित्र चरित्र देन ?
क्या आप तै याद दिलाण कि गढवाली कथाओं मा सैत च सबसे जादा कथा
बालेन्दु बडोला कि छपीं छन अर बाल कथाओं लिखण मा बडोला जीक योगदान भौत च
?
जब आप गढवळी गद्य इतिहास मा अपणि वाहवाही
अपणो कवितौं से करी सकदवां त भग्यान प्रताप शिखर तै किलै बिसरवां जी ? क्या
जरुरी च कि लेखक आप तै किताब भेजो त वै इ तै आप गढवळी साहित्यकार
मानिल्या? 'कुरेडी फट गे ' कथा संग्रह मा वेदना भाव की कथाओं मूल्य गढवाली
कथों मा क्या च , यो ढुंढण साहित्यकार को नी च बल्कण मा इतिहासकार को च.
अर जब ढूंढ़णो सक्यात, पुन्यात, औकात नी च त भट्ट जी बुडेंद दै फोकट मा
साहित्यौ इतिहास लिखणो स्वांग त नि कारो. डा. उमेश चमोला कि क्या भूमिका च
? अप तै पता च? मि ज्ग्देस्श देवरानी, डा, आशा नेगी , अनसुया प्रसाद
डंगवाल आदि कि बात नि करदो कि सैत च आप पिछ्ला दस सालो से पढ़णा नि ह्वेला.
मि अपणि याने भीष्म कुकरेती क
बात त नि कौरी सकदो की म्यरो गढवळी कथाओं मा बि योगदान च वा अलग बात च की
आप इ ना भौत सा अखबारों संपादक बि लिखदन की भीष्म कुकरेती न क्या ल्याख ?
अब मि ऊँ तै क्या बथाऊं की जब वो पैदा ह्व़े छ्या तब हिलांस, बुरांस अर
अंज्वाळ बि छ्प्दी छे .अर भट्ट जी आप त हिलांस मा लिखदा बि छ्या अर पढ़दा
बि छ्या? पण अपण समौ पर कुसुम नौटियाल की कथों बात त कौरी सकुद की ना ?
चलो मानी लीन्दा कि भीष्म कुकरेती क बीस से बिंडी कथा छपींन
या कुसुम नौटियाल न चार पांच इ कथा छपेन अर चूँकि यूंक कथा संग्रह नि छप त
यूँ दुयूं योगदान पर कलम कम इ जाली .याँ पर आप तै माफ़ी मिली सकदी पण ए जी
जै गढव ळी इतिहास मा डा. महावीर प्रसाद गैरोला क नाम नि ह्वाऊ क्या वो
गढवाळी गद्य इतिहास माने जालो? डा. महवीर प्रसाद गौरोला त आपका समकक्षी
साहित्यकार छ्या त आप यूंक योगदान कनो बिसरी गेवां जी! जौं उपन्यास अर कथा
लेखिन. गढवाली मा दर्शन, आध्यात्म अर साम्यवाद को मिळवाक केवल डा. गैरोला
कि ही देन च . गढवाली मा दुसरो उपन्यास त डा. गैरोला क 'पार्वती' इ छ कि
ना ? अबि तक डा. गैरोला इ इन गढवाली भाषौ साहित्यकार ह्वेन जौंक द्वी
उपन्यास छपिन , हैंको उपन्यासों नाम च - असली पचैत राज.
बृजेंद्र नेगी क कति कथा संग्रह छपी गेन क्या यू आप तै नि पता?
आपन उपन्यासु बात करी त क्या दयाधर बमराडा अर हर्स पर्वतीय बगैर गढवाली उप्न्यासु छ्वीं लगी सकदन?
यदि
गढवाली गद्य को इतिहास लिखण त ऐतिहासिक गढ़वाली क पैलो (अर अब तलक बस एकी)
दैनिक 'गढ़ ऐना' बगैर ह्वेई नि सकदी अर सै त च आप तै पता बि नि होलू कि
'गढ़ ऐना' कब छपि छौ अर कब बन्द ह्व़े छौ अर फिर चले आप गढ़वाली गद्य का
इतिहास लिखने ! गढ़ ऐना मा समाचार क अलावा राजनैतिक, सामाजिक, व वैश्विक
विषयूँ पर लेख गढवळी साहित्य क बान एक उल्लेखनीय घटना च.
अब आपन जब गद्य की बात कार त मि आप तै बथाई द्यूं कि भगवती
प्रसाद नौटियाल, देवेन्द्र जोशी , डा. नन्द किशोर ढौंडियाल को समीक्षा मा
क्या योगदान च या बता ने जरुरात होली क्या? मि अपण बिसे याने भीष्म कुकरेती
क मा क्या बथौं कि सही माने मा किताबु समीक्षा अर इंटरव्यू कि शुरुवात
गढवाली मा मीन इ कौर छे.
आपन एक वाक्य से बतै दे कि आपको ज्ञान गढवळी साहित्य मा कथगा
च. आप लिखदन कि 'व्यंग्य का क्षेत्र मा भी अभी ना का बरोबर काम हुयुं च' त
मि आप तै बथांदु कि कथों संख्या कि दृष्टि अर शब्द संख्या कि दृष्टि से
गढवाली मा व्यंग्यो संख्या जादा च. खालीपन गढ़वाली कथाओं मा च ना कि
गढ़वाली व्यंग्य विधा मा .बिचारो पराशर गौड़ बेकार मा ब्यंग्य लेखिक इथगा
निसिणि करणु रौंद.
चूँकि आप कविता, नाटक अर कथाओं ता गद्य समजदवां अर निबंध, चरचाओं ,
रिपोर्टेज, सम्पादकीय, पत्रकारिता आदि तै साहित्य इ नि माणदवां त आप ता
क्या बथाण कि सबसे जादा गढवाली मा सम्पादकीय लेख इश्वरी प्रसाद उनियाल
का छन. सैत च आप जाणदा ह्वेला कि इश्वरी प्रसाद उनियाल गढ़ऐना का संपादक
छ्या अर आज रंत रैबार का संपादक छन. अर क्वी इ मदन गौड़ (जु अच्काल अमर
उजाला मा हल्द्वानी मा छन) अर डा. राजेन्द्र जुयाल (जु आजकल मेरट मा छन)
को योगदान कि बात क्या कौरल जु आंखू पर तेल डाळीक हिंदी-अंग्रेजी समाचारों
क अनुवाद कौरिक गढ़ ऐना क बान समाचार तैयार करदा छ्या.
भट्ट जी अप त मेरो बुबा जी क उमर का छंवां त आप तै मि अडै बि
नि सकुद कि इतिहास मा कलम तबी चलाण चयेंद जब आपम नब्बे टका ना सै अस्सी टका
साहित्य को ज्ञान हो. बुड्या या सयाणो होण से सहित्यौ इतिहास नि लिखे
सक्यांद बल्कण मा खोज से इतिहास लखे जांद .अर यांखु नि डा अनिल डबराल अर
डा. कोटनाला -कुटज भारती कि किताब पढ़ण जरोरी च
आपकू ही
सन्दर्भ ;
प्रेम लाल भट्ट, 'गढवलि गद्य लेखन कु इतिहास' २०१२ संकल्प, जी-४/८७ छुरिया मोहल्ला , पो तुगलकाबाद , नई दिल्ली ११००४४
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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