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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Tuesday, June 26, 2012

डा. नरेंद्र गौनियाल की दो गढवाली कविताएँ

***असगुनी बत्ती***

गाडी मा
बत्ती लगण से
वूंकी त 
अपणी ही
बत्ती बुझी गे
तू बि अपणी खुटी
भुयां धैर
आज की देख
भोल की सोच
जमीन मा रहे कि
अगास देख
बिन फंकुड़ों का
सुद्दी न उड़
सुप्पा का फंकडु लगेकि
भ्याल का मुंड मा जैकि
फाळ नि मार

सिर्फ
अपणी पुट्गी
भ्वरनै फिकर मा नि रहे
तू जन प्रतिनिधि छै
जन कि सेवा कैर
गरीब लोगों तै नि ठग
पैदल हिट
कुंगली खुट्यूं
नि हिटेंदु त
गाड़ी मा जैले
पण
गाड़ी का बरमंड  मा
असगुनी बत्ती
नि लगै .
     डॉ नरेन्द्र गौनियाल

******घंघतोळ  ***** 
टोंटी पर पाणि
द्वी-चार घाम मा हि
सुक्की जान्द
बरखा हूण पर पाणि
अफ्वी ऐ जान्द

लापता बिजली
वीआईपी का ऐथर
सुरुक ऐ जान्द
अर वापस जाण पर
दगड़ी चलि जांद

चुनौ का टैम पर
नेता भग्यान
ठुला,नना,टिटपुन्ज्या
रिंगणा रंदीन
चुनौ का बाद
हर्चि जन्दीन
जनता
चकरे जांद
रकरे जांद

पक्ष-विपक्ष
विकास कि बात छोडि कै
कुर्सी-मैक चुटाणा रंदीन
एक-हैंका पर
कीच-कादौ
लपोड़ना रंदीन
मै रैंदु घंघतोल मा
क्य जि करूँ
कैका बटन पर
हाथ धरूँ
कैकि कपाळी मा
डाम धरूँ..
   
  डॉ नरेन्द्र गौनियाल     

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