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उत्तराखंडी ई-पत्रिका

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Friday, July 1, 2016

आमों के मौसम के बाद फ्लू का मौसम

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                                      आमों  के मौसम के बाद  फ्लू  का मौसम 
                                                         चबोड़ , चखन्यौ , चचराट :::   भीष्म कुकरेती   



  दिखे जावो तो फ्लू हमेशा बेमौसम बरसातौ तरां इ हूंद।  जड्डुं अर बरखा मा त फ्लू हूण नै बात नी च पर फ्लू तो रुड्युं मा बि सौरि जांद।  
जुकाम , सर्दी , बुखार , बंद नाक , नाक बिटेन पाणी बगण , छींक पर छींक आण , आंख्युं मा पाणी , लाल आँखि , बदन टूटण , खाई बाण आदि फ्लू की निसाणी च। 
        डाक्टरम जैल्या तो डाक़्टर बस इथगा इ बुल्दो कि कुछ ना वायरल इन्फेक्सन च।  अर वायरल इन्फेक्सन माने भूत जन लगण।  हूंद च पर वायरस दिखेंद नी अर भूत हूंद च पर दिखेंद नी।  बस द्वी महसूस हूंदन। 
    भूत अर फ्लू मा कुछ  साम्यता हूंदन। कुछ असमानता हूंदन अर द्वी परेशान करदन। 
  भूत कबि बि लग सकद तो फ्लू बि बगैर न्यूत  देकि ही आंद।  भूत हो चाहे फ्लू ! क्वी बि यूंकुण स्वागत गेट नि लगांदन किन्तु फिर बि यी लग इ जांदन। 
   भूतुं अर फ्लू दुयुंक मौसम हूंद।  पैलाक जमाना मा द्वी तीन दिनों मा गांव मा द्वी चार लोगुं पर भूत लग जांद छौ अर एक द्वी बाछी  कड़कड़ी ह्वे जांदी छे।  इनि जब फ्लू आंद तो सरा शहर का लोग खंसण मिसे जांदन। 
              अच्छा हाँ  ! भूत लग जावो तो दोष भूत तै नि दिए जांद अपितु मरीज पर  दोष दिए जांद कि स्या लाल साड़ी पैरिक वै गदन घास काटणो किलै गे , स्यु वै पत्थर मा किलै बैठ या स्यु कुबगत पर उनां  झाड़ा पिसाब ग्यायि  किलै च -एक घंटा टट्टी नि रोकी सकुद छौ  आदि आदि। इनि डाक़्टर त ना पर मरीज का परिवार वळ या पड़ोसी मरीज पर भगार लगांदन कि ऑफिस मा कै फ्लू का मरीज का  समिण बैठि  होलु , बगैर हाथ धुयाँ खाणा खै  होलु या कै फ्लू का दुख्यर तै  किस कर दे होलु आदि आदि। भूत का मरीज तै जोर से कोसे जांद कि तू उख किलै गे , तीन इन किलै कार तो फ्लू का मरीज तै बि डांटे जांद कि तीन इन किलै कार  आदि आदि। 
                                   डाक़्टर कबि नि बतांद कि यू फ्लू इन्फ्लूएंजा वायरस A ,  इन्फ्लूएंजा वायरस B या  इन्फ्लूएंजा वायरस C से हुयूं च , बस दवै दे दींदु।  उ त मरीज ही पुछद कि जी कै टाइपक फ्लू च तब जैक कबि डाक़्टर बथांदु कि टाइप A च B च या C च।  इनि भूत भगाण वळ तांत्रिक इन नि बतांद कि कै किस्मौ भूत लग्युं च।  उ त गांव वाळ इ तांत्रिक /झाड़ ताड़ दिंदेर तैं बतांदन कि फलण डाळ तौळक भूत ह्वालु , अलण गैर गदनक भूत ह्वालु या कै घटक सैद लग्युं होलु।  फिर तब जैक जोर जबरदस्ती मा तांत्रिक तैं सुदि मुदि बताण पोड़द कि कैं जगाकु भूत लग्युं च। 
                         जन आम जनता ही ना तांत्रिक बि नि बतै सकुद कि यू भूत छुट मुट भूत च या बड़ो भयंकर भूत च उनि आम खांसी अर इन्फ्लूएंजा फ्लू मा अंतर बताण  या अनुभव करण कठण काम च।   
              आम साधारण डाक़्टर बि फ्लू मरीज तै पैल छुटि मुटी दवै दींदु अर फिर धीरे धीरे तेज , अधिक असरकारक दवै बदलद। यदि दुसर तिसर दफै क दवै से बि फरक नि पड़दु त मरीज डाक़्टर ही बदल दींदु।   तांत्रिक बि पैल रंगुड़ या राई  मन्त्रिक दींदु , फरक नि   पोड़ त रख्वाळि  करद अर तब बि फरक नि पोड़ तो फिर कंडळी -कांडुं से पश्वा (मरीज ) तै झपोड़दू अर घट स्थापन जन मंत्र पढ़दु । यदि तब बि भूत नि हट तो मरीजका घरवळ दूर का बड़ा तांत्रिक बुलौंदन। 
                   उन मेरी राय च।  छुटि   मुटि खांसी हो अर आस पास फ्लू का दबदबा हो तो तुरंत डाक़्टरम भगण चयेंद।  अर यदि सचमुच मा भूत ही लग्युं च तो तांत्रिक याने मनोचिकित्सक का पास जाण जरूरी च।    
                                        उन भूतूँ  बारा मा त मि नि जणदु पर फ्लू का बारा मा मि बोली सकुद कि साफ सफै अर पौष्टिक भोजन से फ्लू की बीमारी का अवसर कम ह्वे जांदन।  

2/7/2016 ,Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India 
*लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ चरित्र , स्थान केवल हौंस , हौंसारथ , खिकताट , व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

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