राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-8
भीष्म कुकरेती
गढ़वाली लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय
कुमाऊं- गढ़वाल में संगीत वाद्य यंत्र बजाने वाले औजी /दास, हुडक्या व बादी व्यावसायिक जाती के होते थे । दास या औजी ढोल -दमाऊ के विशेषज्ञ होते हैं , हुडक्या हुडकी व बादी ढोलक के ज्ञाता होते थे। ढोल धार्मिक अनुष्ठानो में एक आवश्यक वाद्य यंत्र है ।
Copyright@ Bhishma Kukreti 24/8/2013
एशिया में ढोल , ढोलक लोक संगीत का मुख्य अंग हैं । इसीलिए लोक ढोल या ढोलक विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं । यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल /ढोल विषयी गीत मिलते हैं ।
राजस्थानी लोकगीतों में ढोलक विषय
राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है । राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत , संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक सौन्दर्य उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का करती है । ढोलक बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है । नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी ।
थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
मै वारी जाऊं सा। मै वारी जाऊं सा।
बलिहारी जाऊं सा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
बादल म्हारो लंहगा जी , किरण है मारी मगजी ।
मै तारागण रा झुमकां झुमकती चलूंसा ।।थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
चालूं तो कहियाँ चालूँ चंद्रमा म्हारे लारे,
मै कोयल कूक सुनाती चलूंसा । थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो
मैं निर्मल पानी थे म्हारो छो किनारा
मैं कामणजारी नैनों मिलाती चलूंसा ।।
थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो ,मै वारी जाऊं सा।
गढ़वाली लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय
कुमाऊं- गढ़वाल में संगीत वाद्य यंत्र बजाने वाले औजी /दास, हुडक्या व बादी व्यावसायिक जाती के होते थे । दास या औजी ढोल -दमाऊ के विशेषज्ञ होते हैं , हुडक्या हुडकी व बादी ढोलक के ज्ञाता होते थे। ढोल धार्मिक अनुष्ठानो में एक आवश्यक वाद्य यंत्र है ।
निम्न गढ़वाली लोक गीत साक्षी है कि ढोल की थाप पर हिमालय थिरकता है ।
ढोल बाजी , त धिम्म त धिम्म । ढोल बाजी , त छन्न त छन्न ।
ढोल बाजी , त धम्म धम्म ।
ढोल बाजी , त थर्रा त थर्रा ।
ढोल बाजी , त आजी बजै द्ये ।
ढोल बाजी , भलु प्यारु मान्यन ।
ढोल बाजी , म्येरा कान खुलीग्या ।
ढोल बाजी , म्यरा मन हरीग्यो …… ….
ढोल बाजी , त धम्म धम्म ।
ढोल बाजी , त थर्रा त थर्रा ।
ढोल बाजी , त आजी बजै द्ये ।
ढोल बाजी , भलु प्यारु मान्यन ।
ढोल बाजी , म्येरा कान खुलीग्या ।
ढोल बाजी , म्यरा मन हरीग्यो …… ….
-------अनुवाद ------
ढोल बजा, त घिम्मा त घिम्मा ।
ढोल बजा, त छन्ना त छन्ना ।
ढोल बजा, त घिम्मा त घिम्मा ।
ढोल बजा, त थर्रा त थर्रा ।
ढोल बजा, त फिर बजा दे ।
ढोल बजा, त अच्छा प्यारा प्रतीत होता ।
ढोल बजा, त मेरे कान खुल गए ।
ढोल बजा, त मेरे मन का हरण हो गया । ……
कुमाउंनी लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय
ढोल बजा, त छन्ना त छन्ना ।
ढोल बजा, त घिम्मा त घिम्मा ।
ढोल बजा, त थर्रा त थर्रा ।
ढोल बजा, त फिर बजा दे ।
ढोल बजा, त अच्छा प्यारा प्रतीत होता ।
ढोल बजा, त मेरे कान खुल गए ।
ढोल बजा, त मेरे मन का हरण हो गया । ……
कुमाउंनी लोकगीतों में ढोल /ढोलक विषय
इसी तरह एक कुमाउंनी लोक गीत भी ढोल के बारे में इस प्रकार कहता है -
बिजैसार ढोल क्या बाजो ,
यो घूम -घूमा ढोल क्या बाजो
ढोल की शबद जो सुन ,
खोली को गणेश जो नाचे
बिजौ सार ढोल क्या बाजो ,
अनुवाद --
बिजैसार ढोल क्या बजा
घूम घूमा ढोल क्या बजा
ढोल के शब्द सुनकर खोली का गणेश नाचा
संगीत में वाद्य यंत्र व उनकी धुनों का उपयोग और प्रभाव पर राजस्थानी , गढवाली -कुमाउंनी क्षेत्रों में लोक गीत हैं ।
Copyright@ Bhishma Kukreti 24/8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून
डा शेर सिंह पांगती , जोहार के स्वर
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