राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-10
भीष्म कुकरेती
जल जीवन है । सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी । राजस्थान हो या गढ़वाल -कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य होता था। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग अलग हैं।
गढ़वाली-कुमाउंनी व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /8/2013
K.S Pangti , Lonely Furrows of Borderland -गीत संकलन
जल जीवन है । सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी । राजस्थान हो या गढ़वाल -कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य होता था। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग अलग हैं।
राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
राजस्थान में पानी की कमी है . पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वः इस गीत में दर्शाया गया है ।
सागर पानी लेने जाऊं ।
सागर पानी लेने जाऊं ।।
म्हारो इंगरू लो टीको , रंग उड़ उड़ जाए । सागर पानी लेने जाऊं ।
म्हारो बाजू बंद डोरा , लूमा खुल खुल जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
रतन जड़त म्हारो लूगड़ी मोती झर झर जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
हरी छींट को घाघरो मैलो होय होय जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
म्हारो कासनी सा डोला फीको पड़ -पड़ जाए ।। सागर पानी लेने जाऊं ।
गढ़वाली-कुमाउंनी व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
गढ़वाल -कुमाऊँ की पहाड़ियों में पानी की समस्या नही है , किन्तु दूरी एक समस्या तो थी । इसके अतिरिक्त पानी सोत्र के पास पानी अधिक होने से फिसलन भरा रास्ता एक विकट समस्या तो थी ही । गढ़वाल -कुमाऊं में पानी भरने के कई गीत प्रसिद्ध हैं। एक प्रचलित लोक गीत को देखिये
द्वी बालों को मै छै, पानी नै जाए ।
बुवारी गमस्वाली,पानी नै जाए ।
जल चिफालो , तू रड़ी मरललै ।
भट भूटी खौंल , पानी नै जाए ।
चौमास को दिन , पानी नै जाए ।
छेपड़ा छ्ल्याल , तू छली मरलै।
भूख रै जौंल , पानी नै जाए ।
द्वी बालों को मै छै, पानी नै जाए ।बुवारी गमस्वाली,पानी नै जाए ।
----------------अनुवाद -----------------------
दो बच्चों की मां है , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।
रास्ता फिसलन भरा है तू फिसल कर मर जायेगी।
भट भूजकर खायेंगे , पानी भरने न जा।
मेंढक छल्याएंगे तू डॉ कर मर जायेगी।
चौमास का समय है , पानी भरने न जा।
भूखे रह जायेंगे , पानी भरने न जा।दो बच्चों की मां है , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।
बहु गमस्वाली , पानी भरने न जा।
Copyright@ Bhishma Kukreti 26 /8/2013
सन्दर्भ -
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
लीलावती बंसल , 2007 , लोक गीत :पंजाबी , मारवाड़ी और हिंदी के त्यौहारों पर गाये जाने वाले लोक प्रिय गीत
डा नन्द किशोर हटवाल , 2009 उत्तराखंड हिमालय के चांचड़ी गीत एवं नृत्य ,विनसर पब क. देहरादून(अनुवाद सहित )
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