राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग-7
भीष्म कुकरेती
भारत बहुदेव पूजक देस है । भारत में मुसलमान संतों विभिन्न तरह से भी करता है और परिचय धार्मिक लोक गीतों में मिलता है ।
राजस्थानी धार्मिक लोकगीतों और संस्कृति पर इस्लामी धर्म प्रभाव
राजस्थानी समाज ने भी अन्य तरह विदेसी आकारंताओं , शासकों की सभ्यता , संस्कृति , दार्शनिकता और आध्यात्म को अपने में समाया । का निम्न पीर जी के श्रद्धायुक्त , भक्ति भावना भरा से सरोवर लोक गीत इस बात का उदाहरण है कि हिन्दू धर्म निरप्रेक्ष धर्म है और इस धर्म में पर्याप्त लचीलापन है -
पांचू हीरां का हाथ में गुलाब की छड़ी ।
पीरां दो न रुजगार मूं तो काल की खड़ी ।।
सातूं पीरां हाथ में गुलाब की छड़ी ।पीरां दो न रुजगार बंदी रात की खड़ी ।।
इस राजस्थानी लोग गीत में पीर बाबा के लक्षण के अलावा उनसे -सुख समृद्धि की प्रार्थना की गयी है ।
गढ़वाली-कुमाउंनी धार्मिक लोकगीतों और संस्कृति पर इस्लामी धर्म प्रभाव
यद्यपि का कुछ भाग छोड़ कर गढ़वाल और कुमाऊं पर मुसलमानी बादशाहों का राज किन्तु इस्लामी सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव गढ़वाली -कुमाउंनी समाज व संस्कृति पर पड़ा ।
निम्न सैद लोक गीत इस बात का प्रतीक है कि हिंदू धर्म कई संस्कृतियों का महासागर है ।
गढ़वाल कुमाऊं में मुसलमान पीरों या सैयदों को भुत के रूप में पूजा जाता है और तम्बाकू भेंट दिया जाता है। प्रकार के सैयद गीत गढ़वाल -कुमाउंनी में प्रचलित हैं । एक सैद्वाळी लोक गीत की झांकी इस प्रकार है । यह एक गीत है जिसे मुख्या जागरी गाता है व साथ में जागरी भौण पूजते हैं । डमरू और थाली के संगीत में सैयद पश्वा (जिस पर सैयद अत है ) नाचता है ।
सैद्वाळी लोक गीत
मुख्य गायक ------------------------------ ----------------सहयोगी गायक
सल्लाम वाले कुम ------------------------------ -------------सल्लाम वाले कुम
त्यारा वै गौड़ गाजिना ------------------------------ ---------सल्लाम वाले कुम
म्यारा मिंयाँ रतनागाजी ------------------------------ ------सल्लाम वाले कुम
तेरी वो बीबी फातिमा ------------------------------ ----------सल्लाम वाले कुम
तेरो वो कलमा कुरान ------------------------------ ---------सल्लाम वाले कुम ।
नर्तन व गीत समाप्ति के बाद जागरी या झाड़खंडी उस आत्मा से कहता है कि तुम्हारे तुम्हारी पूजा दी गयी है , तुम्हारी इच्छानुसार भोजन व तंबाकू दिया गया है अत: से बाहर चले जावो ।
इस तरह कहा जा सकता है की राजस्थानी , गढ़वाली -कुमाउंनी समाज पर मुसलमानी संस्कृति का पर्याप्त प्रभाव पड़ा जो कि लोक गीतों में भी उभर कर आया है ।
Copyright@ Bhishma Kukreti 23/8/2013
सन्दर्भ
डा। शिवा नन्द नौटियाल , 1981 , गढ़वाली लोकनृत्य-गीत
केशव अनुरागी , नाद नन्दिनी (अप्रकाशित )
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