उत्तराखंडी ई-पत्रिका की गतिविधियाँ ई-मेल पर

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

उत्तराखंडी ई-पत्रिका

Monday, August 19, 2013

तेरा हजार की मौज अर तेरा सौ कु फटका --

चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 
                             सि महेन्दर जब बि गाँ या कखि जात्रा मा जावो त  नि बि ह्वावू त साल भर तक अपण जात्रौ समळौण सब्युं तैं सुणाणु  रौंद । अर अपण जात्रा दगड़  विज्ञापनों जन एक स्लोगन या एक नारा चिपटांद नि बिसरद । जन कि गढ़वाळम   कूड़ि -पुंगड़ी उजड़ी गेन , गूणी -बांदर दिन मा गीत लगांदन अर सुंगर रात हंत्या जागर  सुणांदन या गढ़वाळ जाण ह्वावों तो शिमला -मनाली दिखणि चयेंद जना शब्द ।  

         याने महेन्दर जब मुंबई से उत्तरी भारतै  की सैर सपाटा कु जावो तो हम तैं साल भर तलक एक स्लोगन सुणण ही पोड़द  ।
              अबैं दै महेन्दर ड़्यार क्या ग्यायि कि दगड़म एक कनफणि सि आण -पखाण बणैक लायि । अब हमन साल भर तलक यो इ आण -पखाण बार -बार सुणण । अबै दै महेन्दर को बुलण च बल ' तेरा हजार की मौज अर तेरा सौ कु फटका' क्या हूंद मि जाणदु !

                                                           किस्सा -ए - तेरा हजार की मौज 
     
                     यां अब सि बुबाजीक पैलि बरखी  छे त बुबा बोलिक ड्यार जाणि पोड़ । अब इथगा दूर जाण ह्वावो त रिश्तेदारी निभाणि पोड़द  । अब म्यार सबि स्याळ -सडु भाई ड्यारा डूण रौंदन त  गाँ मा द्वी दिन से जादा रौण बेवकूफी अलावा कुछ नी च । त मि ड्याराडूणम छौ त सबि स्याळि अर सडु भायुंन एक दै क्या ब्वाल कि बुबाक बरखी से फारिक हूणै पार्टी हूण चयेंद । उंकी बात बि सै च अब साल भर की बरजात टुटणम झ्सका -फ़स्का -पार्टी -सार्टी हूणि चयेंद।   मीन सब्युं तै पार्टी दे । हम सौब मसूरी गेवां अर उख होटलम खूब मौज मस्ती कार । तेरा हजार मा इथगा मौज मस्ती कार कि मेरि सबि स्याळि बुलणा छा कि इथगा मटन -मच्छी ऊंन कबि नि खायि अर सबि सडु भायुंक बुलण छौ बल इथगा दारु वूंन यीं जिंदगी मा नि पे ।
    
                     पार्टी मा  स्याऴ-स्याऴयूं अर  सडु भाइयुंक मौज मस्ती से गाँ मा लग्युं  तेरा सौ रूप्या फटका तैं बि बिसरि ग्यों । मेरी वाइफ़ त ये तेरा सौ रुपया फटका तैं भुलण इ नि चांदी अर बुलणि रौंद कि - वा अपण बुबा की बेटी नी च जब तलक वा अपण द्यूराण -जिठाण से  तेरा सौ रूप्या नि उगालि । यू तेरा सौ रूप्या हमर जिकुड़ि पर इन करकणु च जन बुल्यां छै इंचौ  खुब्या पुड्युं ह्वावो ।  
                                             अफ़साना -ए -तेरा सौ रूप्या फटका
                                    
               अरे साबि जाणदन कि भाइ बांट क्या हूंद । भायुं बीच पाई-पाई अर रति-रति क हिसाब करे जांद पण अबै दै म्यार भयुंन  धोका दे द्यायि ।
  अरे मि तै पता हूंद बल म्यार तेरा सौ रूप्या डूबि जाला त मि कबि कबि कीसा उंद हात नि घऴदू ! ह्वाइ क्या च हम सबि भायुंन बुबाजीक बरखि कुण पैलि हिसाब लगाई आल छौ अर सब्युंन अपण अपण हिस्सा को नौ हजार एक सौ तिरासी रूप्या अर उनतालीस पैसा गां मा रौण वाळ भाइकुण भेजि आल छौ । अर फिर हम तैं बरखि  मा कुछ नि करण छौ बस मेमान जन शामिल हूण छौ । पण ऐन बरखि सूबेर पता चौल कि बामणु अर बैण भणजुं  बान एकै साफा अर एकै गिलास लाण त बिसरि गेंवां । अर ना हि यांक बान पैसा कट्ठा करे गे छौ । अब जगता सगती मा मि तै बजार जाण पोड़ अर ठीक सतरा सौ अड़तालीस रूप्या मा साफा अर गिलास लाण पोड़़ेन अर ये हिसाब से म्यार भायुं तैं मि तैं तेरा सौ रूप्या दीण छौ । बरखि स्याम तलक सही  हिसाबन निपडि गे । फिर रात जब मीन सब्युं से तेरा सौ रूप्या मांगीं तो सबि इना उनाक बात करण बिसे गेन । सबि बुलणा रैन बल सुबेर दे द्योला -सुबेर दे द्योला ।
 सुबेर मी तैं ड्याराड़ूण आण छौ अर म्यार बुलण पर बि कैन बि पैसा नि देन ।
              में से जादा मेरि वाइफ़ तै बुरु लगणु च बल खां -मा -खां तेरा सौ रुपया फटका लगी गे ।


Copyright@ Bhishma Kukreti 20 /8/2013 


[गढ़वाली हास्य -व्यंग्य, सौज सौज मा मजाक मसखरी  दृष्टि से, हौंस,चबोड़,चखन्यौ, सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं;- जसपुर निवासी  के  जाती असहिष्णुता सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; ढांगू वाले के  पृथक वादी  मानसिकता सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;गंगासलाण  वाले के  भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; लैंसडाउन तहसील वाले के  धर्म सम्बन्धी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;पौड़ी गढ़वाल वाले के वर्ग संघर्ष सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; उत्तराखंडी  के पर्यावरण संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;मध्य हिमालयी लेखक के विकास संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य;उत्तरभारतीय लेखक के पलायन सम्बंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; मुंबई प्रवासी लेखक के सांस्कृतिक विषयों पर गढ़वाली हास्य व्यंग्य; महाराष्ट्रीय प्रवासी लेखक का सरकारी प्रशासन संबंधी गढ़वाली हास्य व्यंग्य; भारतीय लेखक के राजनीति विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य;सांस्कृतिक मुल्य ह्रास पर व्यंग्य , जातीय  भेदभाव विषयक गढ़वाली हास्य व्यंग्य; एशियाई लेखक द्वारा सामाजिक  बिडम्बनाओं, पर्यावरण विषयों   पर  गढ़वाली हास्य व्यंग्य श्रृंखला जारी ...]  

No comments:

Post a Comment

आपका बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks for your comments